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Last Updated :नई दिल्ली , गुरुवार, 24 दिसंबर 2015 (20:34 IST)

वर्ष 2015 में 'आप' ने रचा चुनावी इतिहास

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नई दिल्ली। अभूतपूर्व जनादेश के साथ सत्ता तक पहुंचने वाली 'आप' में इस साल घमासान मचा रहा और इसमें अलगाव, निष्कासन और त्याग पत्रों का सिलसिला जारी रहा। साथ ही केन्द्र और उप राज्यपाल के साथ 'आप' सरकार का एक कटु सत्ता संघर्ष भी चलता रहा।
नवंबर में अपनी स्थापना की तीसरी वर्षगांठ मनाने वाली पार्टी इस साल में राजधानी में भाजपा विरोधी ताकत बनकर उभरने में सफल रही।
 
पिछले साल लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करने और दिल्ली में एक भी सीट हासिल ना कर पाने वाली पार्टी ने अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 67 सीटों पर फतह हासिल करके अपने आलोचकों को अचंभित कर दिया।
 
महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू कश्मीर में भाजपा के चुनावी सफलता के बाद आप ने भगवा पार्टी के विजय रथ को रोक दिया, हालांकि तुरंत ही आप में पूर्व से चल रहे कुछ मतभेद उभरकर सामने आ गए।
 
बाहरी दिल्ली में कापसहेड़ा में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में केजरीवाल खेमे ने पार्टी के संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पर ‘पार्टी-विरोधी’ गतिविधियों में संलिप्त रहने को लेकर हमला किया। खेमे ने दोनों पर चुनाव के दौरान पार्टी को हराने के लिए काम करने का भी आरोप लगाया जिसका इन दोनों ने खंडन किया। 
 
योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण प्रत्याशियों के चयन के और पार्टी में केजरीवाल के बढ़ते कद के खिलाफ थे। संयोगवश, भूषण और यादव पार्टी के संस्थापक सदस्य थे और सभी शक्तिशाली राजनीतिक मामलों की कमेटी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे। दोनों पक्षों ने संयम बरता लेकिन मतभेदों को दूर करने का उनका प्रयास असफल रहा। केजरीवाल ने दोनों को पीएसी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाले जाने पर जोर दिया।
 
दोनों को पार्टी के पीएसी से हटा दिया गया। इसके बाद 28 मार्च को विवादित राष्ट्रीय परिषद की बैठक आयोजित की गई जहां पर भूषण और यादव ने केजरीवाल समर्थकों पर अपने समर्थकों के साथ मारपीट करने का आरोप लगाया। उसके बाद दोनों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया गया।
 
आखिरकार अप्रैल में दोनों को उनके समर्थकों अजीत झा और आनंद कुमार के साथ पार्टी से निकाल दिया गया। इसके बाद कई सदस्यों को पार्टी से निकाला गया या उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इनमें से कई लोग भूषण और यादव द्वारा गठित की गई स्वराज अभियान में शामिल हो गए।
 
मयंक गांधी, क्रिस्टिना सामी जैसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कई सदस्‍यों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया, जबकि राकेश सिन्हा, विशाल लाठे जैसे अन्य लोगों को निलंबित कर दिया गया।
 
पार्टी ने अपने लोकपाल एडमिरल (सेवानिवृत्त) एल रामदास को भी हटा दिया। उन्होंने ‘एक व्यक्ति-एक पद’ का सवाल उठाया था जबकि केजरीवाल सरकार और पार्टी दोनों की अगुवाई कर रहे थे।
 
आंतरिक विद्रोह के कारण आप ने अपने दो सांसदों धरमवीर गांधी और हरिंदर सिंह खालसा को भी ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निलंबित कर दिया।
 
आप के दिल्ली में तिमारपुर के विधायक पंकज पुष्कर ने भी बगावत कर दी और सार्वजनिक रूप से भूषण एवं यादव के स्वराज अभियान के साथ जा खड़े हुए। (भाषा)