नई दिल्ली। भारत में पिछले 8 साल में शिकार और अन्य कारणों से 750 बाघ मारे गए हैं। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 173 बाघों की मौत हुई है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। इसने कहा कि इन बाघों में से 369 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई तथा 168 बाघों की मौत शिकारियों द्वारा शिकार किए जाने की वजह से हुई। 70 मौतों के बारे में अभी जांच चल रही है, जबकि 42 बाघों की मौत दुर्घटना और संघर्ष की घटनाओं जैसे अप्राकृतिक कारणों से हुई।
एनटीसीए ने बताया कि 2012 से 2019 तक 8 साल की अवधि के दौरान देशभर में 101 बाघों के अवशेष भी बरामद हुए। इससे 2010 से मई 2020 तक हुई बाघों की मौतों का विवरण साझा करने का आग्रह किया गया था। हालांकि, इसने 2012 से लेकर आठ साल की अवधि का ब्योरा ही उपलब्ध कराया।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिसंबर में कहा था कि देश में पिछले चार साल में बाघों की संख्या में 750 की वृद्धि हुई और कुल बाघों की संख्या 2226 से बढ़कर 2976 हो गई है।
जावड़ेकर ने राज्यसभा में एक पूरक प्रश्न के जवाब में कहा था कि अब बाघों की संख्या 2976 है। हमें अपनी संपूर्ण पारिस्थितिकी पर गर्व होना चाहिए। पिछले चार साल में बाघों की संख्या में 750 की वृद्धि हुई है।
एनटीसीए द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पिछले आठ साल में मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 173 बाघों की मौत हुई। इनमें से 38 बाघों की मौत शिकार की वजह से, 94 बाघों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई और 19 बाघों की मौत का मामला अभी जांच के दायरे में है। छह बाघों की मौत अप्राकृतिक कारणों से हुई और 16 अवशेष भी मिले। मध्य प्रदेश में देश में सर्वाधिक 526 बाघ हैं।
प्राप्त सूचना के अनुसार, पिछले 8 साल में बाघों की मौत के मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा जहां 125 बाघों की मौत हुई। इसके बाद कर्नाटक में 111, उत्तराखंड में 88, तमिलनाडु में 54, असम में 54, केरल में 35, उत्तर प्रदेश में 35, राजस्थान में 17, बिहार और पश्चिम बंगाल में 11 तथा छत्तीसगढ़ में 10 बाघों की मौत हुई है।
एनटीसीए ने कहा कि इस अवधि में ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 7-7, तेलंगाना में पांच, दिल्ली और नगालैंड में एक-एक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में एक-एक बाघ की मौत हुई है।
इसने शिकार की वजह से बाघों की मौत का विवरण साझा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में 28-28 बाघ शिकार की वजह से मारे गए। असम में 17, उत्तराखंड में 14, उत्तर प्रदेश में 12, तमिलनाडु में 11, केरल में 6 और राजस्थान में तीन बाघों की मौत शिकार की वजह से हुई।
एनटीसीए ने आरटीआई आवेदन के जवाब में शिकार के चलते बाघों की मौत के मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी नहीं दी।
देश में लापता बाघों के ब्योरे से संबंधित सवाल के जवाब में इसने कहा कि उसके पास सूचना उपलब्ध नहीं है और आवेदक को वांछित सूचना हासिल करने के लिए बाघ अभयारण्य वाले 18 राज्यों के मुख्य वन्यजीव वार्डनों से संपर्क करने की सलाह दी।
वन्यजीव कार्यकर्ताओं ने आठ साल की अवधि में 750 बाघों की मौत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दोषियों को दंडित करने के लिए कड़े वन्यजीव प्रावधान होने चाहिए।
भोपाल के वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि शिकार और अन्य कारणों से इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौत हुई है। वन्यजीव अपराध में दोषी पाए जाने वालों को दंडित करने के लिए कड़े प्रावधानों की आवश्यकता है। (भाषा)