Last Modified: नई दिल्ली ,
मंगलवार, 22 जनवरी 2013 (17:41 IST)
गणतंत्र दिवस पर तैनात रहेंगे डॉग स्क्वायड
गणतंत्र दिवस के मौके पर राजधानी दिल्ली की सुरक्षा की जिम्मेदारी बॉबी, लिली और रोज़ी जैसे कुछ खास सुरक्षाबलों पर होगी। दिल्ली मैट्रो में यात्रा के दौरान आप इन्हें आसानी से देख सकते हैं।
ये खास सुरक्षाबल कोई और नहीं बल्कि सीआईएसएफ के जांबाज़ ‘डॉग स्क्वायड’ के खोजी कुत्ते हैं जो किसी भी खतरे को सूंघकर भांप लेने में माहिर हैं। कई संवेदनशील स्थानों के साथ-साथ यह ‘डॉग स्क्वायड’ दिल्ली मैट्रो में भी सुरक्षा पर चौकसी रखेंगे।
दिल्ली मैट्रो की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल (सीआईएसएफ) के कमांडेंट अरुण सिंह कहते हैं, डॉग स्क्वायड का फायदा यह है कि इसके प्रशिक्षित कुत्ते खतरे को तुरंत भांप जाते हैं, जिससे हमें कार्रवाई करने में मदद मिलती है। विशेष अवसरों पर तो हमें बाहर से सुरक्षाबलों को मंगाना पड़ता है, लेकिन ‘डॉग स्क्वायड’ में ऐसे प्रशिक्षित कुत्तों की हमारे पास पर्याप्त संख्या है।
उन्होंने कहा, हमारे पास ऐसे करीब 30 से 40 प्रशिक्षित कुत्ते हैं। पूरे भारत में और कहीं किसी यूनिट के पास इतना बड़ा ‘डॉग स्कवायड’ नहीं है। अरुण सिंह ने कहा, हमारे पास ‘डॉग स्क्वायड’ में ज्यादातर सूंघकर सचेत करने वाले स्नीफर कुत्ते हैं, जिनमें लेब्रा डॉग, जर्मन शेफर्ड, अमेरिकन कॉकर, इंग्लिश कॉकर जैसी प्रजातियों के कुत्ते हैं। ये नस्लें भले ही विदेशी हों लेकिन इनका प्रजनन भारत में ही हुआ है। इन नस्लों के कुत्ते बहुत आज्ञाकारी होते हैं।
उन्होंने आगे बताया, डॉग स्क्वायड में ज्यादतर मादाओं को लिया जाता है क्योंकि ये काम में तो अच्छी होती ही हैं साथ ही इनसे ब्रीड कराने (प्रजनन कराने) में भी मदद मिलती है। इनसे दो तरह से काम लिए जाते हैं, एक मोबाइल होते हैं यानी वे मैट्रो ट्रेन के अंदर घूमकर सुरक्षा का जायज़ा लेते हैं और दूसरे स्टैंडिंग होते हैं जो कि स्टेशन पर रहकर सुरक्षा की चौकसी करते हैं।
सीआईएसएफ में ‘डॉग स्क्वायड’ का कार्यभार संभाल रहे एसके सिंह ने कहा, इन कुत्तों को छह माह तक प्रशिक्षण दिया जाता है और आठ से दस साल सेवा लेने के बाद इन्हें रिटायर कर दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि इनके रिटायर करने के बाद इन्हें सीआईएसएफ से अलग कर दिया जाता है बल्कि रिटायर हो जाने के बाद भी इनकी पहले जैसी ही देखभाल की जाती है। दिल्ली मैट्रो के शुरू होने के समय से ही सीआईएसएफ ‘डॉग स्क्वायड’ का प्रयोग कर रही है। इनका प्रयोग समय-समय पर मॉक ड्रिल जैसे कार्यों में होता रहता है।
एसके सिंह ने कहा, इन कुत्तों के खाने, पीने, सोने और टीके की पूरी व्यवस्था सीआईएसएफ देखती है। समय-समय पर सरकारी या निजी चिकित्सक इनकी पूरी जांच करते हैं। एक कुत्ते के खान-पान, टीकाकरण पर हर महीने करीब चार से पांच हजार रुपए का खर्च आता है। ‘डॉग स्क्वायड’ के लिए सीसीआई द्वारा चयनित कुत्तों को ही लिया जाता है। यह क्लब कुत्तों की नस्ल के बारे में जांच कर उसकी पुष्टि करता है।
उन्होंने बताया, एक कुत्ते पर एक संचालक होता है लेकिन फिर भी इनके खो जाने या चोरी हो जाने की आशंका के कारण सभी कुत्तों के गले में रेडियो कॉलर (माइक्रोचिप) लगाई जाती है। इनके संचालक के चयन की भी प्रक्रिया है और जो इस प्रक्रिया को पूरा करता है उसे ही उनका संचालक नियुक्त किया जाता है।
सीआईएसएफ के जनसंपर्क अधिकारी हेमेंद्र सिंह ने कहा, सीआईएसएफ में ‘डॉग स्क्वायड’ का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में भी किया जाता है। इन डॉग स्क्वायड में ज्यादातर भौंकने वाले और थोड़े हिंसक कुत्तों को लिया जाता है। इन्हें प्रशिक्षण भी इस तरह से दिया जाता है कि कोई भी संदिग्ध सामान देखते ही ये भौंक कर सचेत करें या अपराधी पर काबू पा सकें।
सीआईएसएफ के मुताबिक पूरी दिल्ली में सीआईएसएफ के 20 हजार से अधिक सुरक्षाबल तैनात हैं और सिर्फ दिल्ली मैट्रो की सुरक्षा के लिए साढ़े चार से पांच हजार सुरक्षाकर्मी तैनात हैं, लेकिन इनके अलावा ‘डॉग स्कवायड’ से भी सुरक्षा का जायज़ा लिया जाता है। दिल्ली में संवेदनशील स्थानों के साथ एयरपोर्ट, विशिष्ट व्यक्तियों और दिल्ली मैट्रो की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ के ऊपर ही है जहां विशेषतौर पर ‘डॉग स्क्वायड’ की तैनाती की जाती है। (भाषा)