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Last Modified: शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022 (11:14 IST)

रूप चतुर्दशी 2022 : नरक चतुर्दशी अभ्यंग स्नान के मुहूर्त, महत्व और उपाय एक साथ

Roop Chaudas 2022
Narak chaturdashi 2022 date: नरक चतुर्दशी को रूप चौदस, काली चौदस और छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करके पूजा की जाती है। इस बार नरक चौदस का पर्व 24 अक्टूबर 2022 सोमवार के दिन मनाया जाएगा। क्योंकि सूर्योदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है। आओ जानते हैं कि क्या है अभ्यंग स्नान के मुहूर्त। इस दिन का महत्व और उपाय।
 
नरक चतुर्दशी तिथि 2022 | Narak chaturdashi start and end date 2022: त्रयोदशी तिथि 23 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 03 मिनट तक रहेगी इसके बाद नरक चतुर्दशी प्रारंभ होगी जो अगले दिन यानी 24 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। उदया‍ तिथि के मान से नरक चतुर्दशी का त्योहार 24 अक्टूबर 2022 सोमवार को मनाया जाएगा।
 
सूर्योदय कब होगा : मुंबई के समय अनुसार प्रात: 06:35 पर सूर्योदय होगा।
अभ्यंग स्नान समय मुहूर्त : प्रात: 05:04:59 से 06:27:13 तक।
 
रूप चौदस पर स्नान का महत्व : कहते हैं कि इस दिन श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने मिलकर नरकासुर का वध किया था। वध करने के बाद उन्होंने तेल से स्नान करके शरीर और मन को शुद्ध किया था। तभी से यह प्रथा चली आ रही है। इस दिन इस यम पूजा, कृष्ण पूजा और काली पूजा होती है। इस दिन अभ्यंग स्नान करने से सौंदर्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा करने से नरक से मुक्ति मिलती हैा।  नरक चतुर्दशी के दिन दिन संध्या काल में दीये के प्रकाश से अंधकार को प्रकाश पुंज से दूर कर दिया जाता है। इसी वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति, सौंदर्य और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है। 
Narak Chaturdashi Roop Chaudas
नरक चतुर्दशी के सरल उपाय | Narak chaturdashi ke upay:
 
1. इस दिन प्रातःकाल में सूर्योदय से पूर्व उठकर उबटन लगाकर नीम, अपामार्ग यानी चिचड़ी जैसे कड़ुवे पत्ते डाले गए जल से स्नान करें। उक्त कार्य नहीं कर सकते हैं तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान किया जाता है। प्रात: स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है। इससे सौंदर्य और ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होती है। स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा में मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा अब तक किए गई सभी पापों का नाश होकर स्वर्ग का रास्ता खुल जाता है।
 
2. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। उनकी पूजा से सभी तरह का संताप मिट जाता है और व्यक्ति बंधन मुक्त हो जाता है।
 
3. इस दिन काली चौदस भी रहती है अत: इस दिन कालिका माता की विशेष पूजा करने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है और हर तरह का संताप मिट जाता है।
 
4. इसी दिन यम की पूजा करने के बाद शाम को दहलीज पर उनके निमित्त दीप जलाएं जाते हैं जिससे अकाल मृत्यु नहीं होती है।
 
5. इस दिन को शिव चतुर्दशी भी रहती है अत: दिन में भगवान शिव को पंचामृत अर्पित किया जाता है। साथ में माता पार्वती की पूजा भी की जाती है।
 
6. इस दिन सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने घरों के दरवाजों पर चौदह दीये जलाकर दक्षिण दिशा में उनका मुख करके रखते हैं तथा पूजा-पाठ करते हैं।
 
7. इस दिन हनुमान जयंती भी रहती है अत: हनुमान पूजा करने से सभी तरह का संकट टल जाता है और निर्भिकता का जन्म होता है।
 
8. इस दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इस दिन राजा बलि (महाबली) को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से वामन पूजा की जाती है। अनुसरराज बलि बोले, हे भगवन! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करेगा, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। ऐसे वरदान दीजिए। यह प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! ऐसा ही होगा, तथास्तु। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ।
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