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Written By Author अरविन्द तिवारी
Last Modified: सोमवार, 5 अक्टूबर 2020 (19:12 IST)

ज्योतिरादित्य सिंधिया का भगवा फोटो सेशन

राजबाड़ा 2️ रेसीडेंसी

ज्योतिरादित्य सिंधिया का भगवा फोटो सेशन - Saffron photo Session of Jyotiraditya Scindia
बात यहां से शुरू करते हैं : 14 महीने पहले जब मध्यप्रदेश काडर के आईपीएस अफसर अनिल धस्माना रिसर्च एंड एनालिसिस विंग रॉ के चीफ पद से सेवानिवृत्त हुए थे तब यह माना जा रहा था कि वे संभवतः किसी राज्य के राज्यपाल बनाए जाएंगे। जब ऐसा नहीं हुआ तो लगा कि भी यह नाम भी राज्यपाल बनने की कतार में खड़े लोगों की लंबी लाइन में कहीं गुम हो गया, लेकिन काम करने वाले की हर जगह कद्र होती है। इसी का लाभ धस्माना को मिला और विदेश की प्रतिष्ठित संस्था एनटीआरओ के हेड हो गए। इस पद के लिए उनका चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने किया। धस्माना को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से नजदीकी का भी फायदा मिला।
 
सिंधिया का भगवा फोटो सेशन : बीजेपी के रंग में पूरी तरह रंग चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उपचुनाव की तैयारी के लिए जबरदस्त भगवा फ़ोटो सेशन करवाया है। अपने समर्थकों की मांग पर सिंधिया ने 10 दिन पहले बाकायदा बीजेपी के रंग और कमल के फूल छपे दुपट्टे में कई एंगल से फ़ोटो खिंचवाकर अपने समर्थकों को भेजे हैं ताकि वे अपने प्रचार सामग्री, होर्डिंग्स, बैनर में उपयोग कर सकें। वैसे सिंधिया की ओर से समर्थकों को यह संदेश साफ है कि जो भी प्रचार सामग्री बने वह बेहद संतुलित हो और जिससे सबको साथ लेकर चलने की ध्वनि परिलक्षित हो।
 
सत्ता बदलते ही उतरा ही रंग : मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के जाने और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन अफसरों ने तेजी से रंग बदला था उनमें मुख्य सचिव रहने के बाद रेरा का अध्यक्ष पद सुशोभित कर रहे एंटोनी डिसा भी शामिल थे। छिंदवाड़ा और जबलपुर के पुराने संबंधों का फायदा उठाकर डिसा कमलनाथ के प्रशासनिक सलाहकार की भूमिका में भी आ गए थे और कई महत्वपूर्ण पद स्थापनाओं में उनकी खासी दखल रही। जिसने आईएस दाणी को पीछे धकेल उन्हें मुख्य सचिव बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी वह भी इस दौर में जमकर उपकृत हुई। बदलते रंग के कारण डिसा भाजपा के निशाने पर तो थे ही और यही कारण है कि कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही उन्हें रेरा का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा। 
 
मैडम का दबदबा : मनीष रस्तोगी के मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव के रूप में मौजूद रहने का फायदा तो निश्चित तौर पर दीपाली रस्तोगी को मिलना ही है। वाणिज्यिक कर विभाग में मैडम की उपस्थिति का एहसास होने लगा है। यह मैडम के तीखे तेवर का ही नतीजा है कि नागेश्वर सोनकेसरी जैसे वजनदार सहायक आबकारी आयुक्त को 6 महीने में ही धार से रवानगी डालना पड़ी। दरअसल वित्त के साथ ही आबकारी महकमे का प्रभार देख रहे मंत्री जगदीश देवड़ा एंजियोप्लास्टी होने के कारण इन दिनों स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। मंत्री जी द्वारा आगे बढ़ाई गई एक सूची को प्रमुख सचिव पहले ही नकार चुकी थीं और इस बार जो सूची बनी उसमें सिर्फ और सिर्फ मैडम की ही चली। 
 
देशमुख भी पसंद तो डीजीपी की ही हैं : अप्रैल में जब इंदौर के आईजी को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई थी तब सबसे ऊपर नाम ए साईं मनोहर का था पर इंदौरी नेताओं को उनसे परहेज रहा। यह नाम विशुद्ध प्रशासनिक स्तर पर डीजीपी विवेक जौहरी की ओर से आगे बढ़ा था। फिर कई नाम इस सूची में जुड़ते गए और एक स्थिति यह बनी कि विवेक शर्मा को ही बरकरार रखा जाए। पर ऐसा संभव नहीं हुआ और आखिरकार 1995 बैच के योगेश देशमुख तमाम नामों को दरकिनारर कर इंदौर के आईजी बनाए गए। खुलासा यह हुआ है कि देशमुख भी डीजीपी की पसंद पर ही इंदौर भेजे गए हैं और कई मौकों पर अपनी काबिलियत साबित कर चुके साईं मनोहर को भी भोपाल में वह मुकाम हासिल हो गया है जिसके वह हकदार थे। 
 
भिसे को मिल सकती हैं अहम भूमिका : सालों तक सुमित्रा महाजन के खास सिपाहसलार रहने के बावजूद जयंत भिसे की वह कद्र नहीं हो पाई जिसके वे हकदार थे। संघ के इस खांटी कार्यकर्ता ने भी एक अलग राह पकड़ ली थी और जो जिम्मेदारी सौंपी जाती थी उसका ईमानदारी से निर्वहन करते रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में महू से उषा ठाकुर की जीत में भी वे पर्दे के पीछे अहम भूमिका में थे। अब ठाकुर संस्कृति मंत्री हैं और संघ अपने इस प्रिय कार्यकर्ता को संस्कृति विभाग से जुड़े एक बड़े प्रकल्प में अहम भूमिका में देखना चाहता है। बात संघ ने आगे बढ़ाई है और अनुमोदन मंत्री के नाते उषा ठाकुर को ही करना है, ऐसे में कोई दिक्कत आगे दिखती नहीं। 
 
कांग्रेस में मध्यप्रदेश की अनदेखी : पहली बार ऐसा हो रहा है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में मध्यप्रदेश का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। CWC में स्थाई आमंत्रित सदस्य के रूप में दिग्विजयसिंह की जरूर वापसी हुई है, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों में मध्यप्रदेश के किसी नेता को जगह नहीं मिल सकी है। ऐसा तब है जब मध्यप्रदेश, कांग्रेस के उन गिने-चुने राज्यों में से जहां कांग्रेस का पर्याप्त जनाधार और वोट बेस बचा हुआ है। एक समय पीसी सेठी, अर्जुन सिंह, विद्याचरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, मोतीलाल वोरा, दिग्विजयसिंह, कमलनाथ, सत्यव्रत चतुर्वेदी, सुरेश पचौरी जैसे लोग राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में मध्यप्रदेश की पहचान माने जाते थे। तो क्या माना जाए कि मध्यप्रदेश में नेतृत्व की सेकंड लाइन तैयार करने पर कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया....।
 
इसलिए नहीं की कमलनाथ ने बौद्ध की परवाह : ऐसे समय में जब 28 सीटों पर उपचुनाव सामने हो और उसमें से करीब एक दर्जन सीटों पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की अहम भूमिका हो महेंद्र बौद्ध का कांग्रेस छोड़कर बसपा के टिकट पर भांडेर से मैदान में आ जाना कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाला ही होना चाहिए था। मध्यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति में दिग्विजय सिंह के खासमखास माने जाने वाले बौद्ध विधानसभा चुनाव में अपने बजाए रक्षा सिरोनिया को तवज्जो दिए जाने से पहले ही नाराज चल रहे थे। रही सही कसर भांडेर से उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में फूल सिंह बरैया के नाम की घोषणा ने पूरी कर दी। कहा तो यह भी जा रहा है कि मध्यप्रदेश तो छोड़िए ग्वालियर-चंबल इलाके में ही अब बौद्ध का वह दबदबा नहीं रहा था और इसी कारण इस कठिन दौर में भी कमलनाथ ने भी उनकी परवाह नहीं की। 
 
चलते चलते : हितानंद शर्मा के प्रदेश भाजपा में सहसंगठन महामंत्री की भूमिका में आने के बाद वीडी शर्मा और सुहास भगत की युति, वजनदार तिकड़ी में तब्दील होती नजर आ रही है। 
 
पुछल्ला : जबलपुर, सागर और चंबल संभाग के नए कमिश्नर को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इंदौर के दो पूर्व कलेक्टर इसके मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। जरा पता करिए।