बजट प्राइवेट स्कूलों के अखिल भारतीय संगठन नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) व प्राइवेट लैंड पब्लिक स्कूल एसोसिएशन ने सरकार की गलत शिक्षा नीतियों के खिलाफ एक देशव्यापी 'शिक्षा बचाओ अभियान' की घोषणा की है। 7 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में विरोध प्रदर्शन भी किया जाएगा। इस विरोध प्रदर्शन में देशभर से 1 लाख से अधिक स्कूल संचालकों, प्रिंसीपलों और अध्यापकों के शामिल होने का दावा किया गया है।
शिक्षा को लेकर लोगों के बीच में जागरूकता पहले से बहुत बढ़ी है और लोग अपने बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं। इसके लिए गरीब से गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को नि:शुल्क सरकारी स्कूलों की बजाए पैसे खर्च कर छोटे निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं। सरकार अपने स्कूलों की गुणवत्ता ठीक करने की बजाए छोटे स्कूलों पर नित्य नए नियम-कानूनों का बोझ डाल उन्हें बंद करना चाहती है।
दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित एक पत्रकार-वार्ता में निसा के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा कि 7 अप्रैल को रामलीला मैदान में हजारों स्कूलों से जुड़े लाखों लोग व्यापक प्रदर्शन करेंगे जिसका मकसद शिक्षा को बचाना है और उसकी खामियों को दूर करना है। सरकार की शिक्षण संस्थानों में दखलंदाजी बढ़ गई है और इसका राजनीतिकरण हो रहा है। सरकार की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा के क्षेत्र में भय का माहौल पैदा हो गया है। आज छात्र, अभिभावक, अध्यापक, प्रिंसीपल सभी भय के माहौल में जी रहे हैं जिससे गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करना असंभव होता जा रहा है।
उन्होंने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लाया गया था, लेकिन इस कानून ने नई समस्याएं पैदा कर दी हैं। सरकारी स्कूल में कोई दाखिला लेना नहीं चाहता जबकि दूसरी ओर सरकार हमारे स्कूल चलने ही नहीं देना चाहती है।
लैंड पब्लिक स्कूल एसोसिएशन के सचिव चन्द्रकांत सिंह ने दिल्ली सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि 16 जून 2017 को दिल्ली सरकार ने योगेश प्रताप सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था जिसका मकसद गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों को मान्यता देने संबंधी संभावनाओं के लिए नियमों को लचीला बनाना था जिससे कि छोटे स्कूल भी आगे बढ़ सकें।
मगर सूचना के अधिकार कानून से पता चला है कि इस कमेटी की अब तक कोई बैठक ही नहीं हुई है और न ही कोई सुझाव आया है। ऐसे में सैकड़ों स्कूलों को बंद करना दुर्भाग्यपूर्ण है। दिल्ली सरकार को छोटे स्कूलों के हितों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। इन स्कूलों में गरीब व दलित आबादी के बड़ी संख्या में छात्रों का नामांकन है तथा उनका भविष्य अधर में है।
वहीं पीएल पीस के अध्यक्ष प्रेमचन्द्र देशवाल ने कहा कि आरटीई के कारण हम गलत करने को मजबूर हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली में बड़े स्कूलों की फीस औसतन 4,000 रु. है। प्रति कक्षा फीस के रूप में वे 2 लाख रु. ले रहे हैं जबकि बजट प्राइवेट स्कूल में प्रति कक्षा 20,000 से 40,000 तक आ पाते हैं। ऐसे में वे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शिक्षकों को उतनी तनख्वाह दे पाने में असमर्थ होते हैं। कृपया हमें गलत काम के लिए मजबूर न किया जाए। कागजों पर कुछ और वास्तविकता में कुछ और!
प्राइवेट लैंड पब्लिक स्कूल एसोसिएशन ऐसे बजट निजी स्कूलों का संघ है, जो सीमित संसाधनों में शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए वर्षों से जनता की सेवा करते हुए आए हैं जिनकी फीस सामान्यता 200 से 1,000 रु. है और अगर उसका औसत देखें तो 500 रु. प्रति छात्र मासिक फीस है। लेकिन आरटीई कानून आने के बाद से हमारे स्कूलों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा होता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार का मकसद सब तक शिक्षा को पहुंचाना था लेकिन इसके कुछ नियम शिक्षा की राह में रोड़ा बन रहे हैं जिसका खामियाजा न सिर्फ हजारों स्कूलों के संचालक बल्कि लाखों शिक्षक और विद्यार्थियों के सामने भी संकट बन गया है।
शिक्षा को बचाने के उद्देश्य से 7 अप्रैल को रामलीला मैदान में व्यापक प्रदर्शन का आह्वान भी किया गया है जिसमें लाखों लोगों के आने की संभावना है