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मोदी की 'गंगा डुबकी' और पांच राज्यों के चुनाव

मोदी की 'गंगा डुबकी' और पांच राज्यों के चुनाव - PM narendra modi, Narendra modi, UP election, Banaras
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले एक ‘सांसद’ हैं, और सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य करने का मौलिक अधिकार है। सांसद नरेंद्र मोदी ने यही सब अपने संसदीय क्षेत्र काशी में भी किया। फर्क बस ये था कि सांसद के साथ साथ उनका प्रधानमंत्री वाला 'अक्स' भी वहां मौजूद था। काशी में नरेंद्र मोदी सांसद कम और ‘प्रधानमंत्री’ के अवतार में ज्यादा दिखाई दिए।

ये सब तामझाम पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए एक राजनीतिक स्टंट था, या इसके पीछे कोई और मंतव्य रहा, इसका राज खुलना अभी बाकी है।

प्रधानमंत्री के इस काशी दौरे ने कई बातें राजनीतिक तौर पर साफ कर दी। गंगा में प्रधानमंत्री की डुबकी लगाना इतनी आत्मविश्वास से भरी थी, जैसे वे हमेशा से गंगा में डुबकी लगाते आए हो। मोदी की ये गंगा में लगाई जाने वाली कोई पहली डुबकी नहीं है। इसके पहले भी वे कुम्भ में प्रयाग के संगम में भी डुबकी लगा चुके हैं। मगर प्रयाग और काशी की डुबकी में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई दिया।

प्रयाग की डुबकी के समय वे काले परिधान में थे, तो काशी की डुबकी उन्होंने भगवावस्त्र धारण करके लगाई। डुबकी से पहले उनके हाथों में गंगा के लिए तर्पण था, जो गंगा आराधना का प्रतीक है। उनकी काशी की यह डुबकी आगामी उत्तर प्रदेश की चुनावों के लिए एक खास संदेश छोड़ गई।

उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा का ट्रायल साबित होंगे, यह वे भी जानते हैं। यों कहा जाए कि इन राज्यों में होने वाले चुनावों के परिणाम भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘तीसरी पारी’ को निर्धारित करने में सहायक होंगे!

साथ ही यह भी कि क्या भाजपा अपने अकेले के दम पर फिर सत्ता में आएगी? क्या नरेंद्र मोदी का तिलिस्म कायम रहेगा? या इन चुनाव के परिणाम से भाजपा और मोदी के पतन की शुरुआत होगी? इन राज्यों के नतीजों से कई सवाल उठेंगे, तो कई सवाल समाप्त भी हो जाएंगे।

'कांग्रेस विहीन भारत' का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना साकार होने में या कांग्रेस को दरकिनार कर ममता बनर्जी की अगुवाई में मोदी और भाजपा के खिलाफ बनने वाले संभावित गठबंधन का भविष्य भी इन्हीं राज्यों के परिणामों से निर्धारित होगा? इस सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है।

यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणभेरी फूंककर स्पष्ट कर दिया कि भाजपा हिंदुत्व की ही राह पर चलेगी! भले ही राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व पर लोगों को अंतर समझा रहे हों।

भाजपा हिंदुत्व के अपने मूल आचरण को नहीं छोड़ सकती। सबका साथ सबका विकास का नारा देकर दोबारा सत्ता में आने वाली भाजपा ने भाजपा ने काशी के विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या राम मंदिर के निर्माण के साथ अपने उस दृढ़ संकल्प को दोहराया कि वह हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी है। काशी के बाद अब मथुरा की बारी का संदेश देकर  भाजपा ने यह तो साबित कर दिया कि भाजपा अभी भी हिंदुत्व के साथ है।

इतना ही नहीं काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के निर्माण में लगे मजदूरों पर फूलों की वर्षा और मजदूरों के कंधे पर हाथ रखकर प्रधानमंत्री ने अपने आप को गरीब मजदूरों का हमदर्द साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी! ये मजदूर और गरीब तबके के वोट बैंक को भी साधने की सफल कोशिश की है, जिसका असर उत्तर प्रदेश के चुनाव में परिलक्षित हो सकता है।

योगी और मोदी की जोड़ी यदि उत्तरप्रदेश को फिर भाजपा अपनी झोली में डाल लेती है, तो भाजपा देश की राजनीति में नया संदेश तो देगी ही, साथ ही प्रादेशिक स्तर के राजनीतिक दलों के लिए भी एक साफ संदेश होगा कि भाजपा का हिंदुत्व का एजेंडा सही है, और अन्य दलों को उसी को अपनाना होगा।

इन राज्यों के चुनाव परिणाम यह भी साबित कर देंगे कि प्रधानमंत्री के रूप में लिए गए देश के प्रति नरेंद्र मोदी के सारे निर्णय सही थे। पश्चिम बंगाल में 'दीदी' से शिकस्त खाने और किसानों के लिए लिए गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद यह समझना कि मोदी अब ताकतवर नहीं रह गए, बल्कि कमजोर हो गए हैं! तो यह राजनीतिक दलों की बड़ी भूल होगी।

इन दो शिकस्त के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ही आगामी राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव का शंखनाद करके यह दर्शा दिया कि वे तैयार हैं। उनका एजेंडा भी स्पष्ट है। न पाकिस्तान, न महंगाई, न कश्मीर और न तीन तलाक़।

इस बार हिंदुत्व ही भाजपा का चुनावी एजेंडा होगा। केदारनाथ, राम जन्म भूमि मंदिर, काशी विश्वनाथ और मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि भाजपा के एजेंडे पर थे और अभी भी हैं, और आगे भी रहेंगे। उन्होंने जो कहा उसे पूरा भी कर रहे हैं। लेकिन, जनता के मन की थाह पा लेना आसान नहीं है। सभाओं में आकर जयकारा लगाने वाली भीड़ मतदाता नहीं होती! इसलिए पांच राज्यों के चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट होंगे कि जनता के मन में क्या है!

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)
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