अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पूर्व महिलाओं के लिए भला इससे बेहतर तोहफा और क्या होगा, कि उनकी सेहत के साथ-साथ दर्द को भी समझा जाए और उसके प्रति उचित प्रतिक्रया भी दी जाए। ब्रिटेन की को-एक्जिस्ट कंपनी ने दिया है महिलाओं को यह सम्मान, सुरक्षा और सेहत से भरा तोहफा। सुनने में भले ही कुछ अटपटा सा लगे लेकिन यह विषय हमेशा ही विचारणीय था।
दरअसल ब्रिटेन की इस कंपनी ने महिलाओं के लिए खास तौर से पीरियड पॉलिसी बनाई है जिसमें महिलाओं द्वारा माहवारी के समय छुट्टी का प्रावधान रखा गया है। इस पॉलिसी के तहत महिला कर्मचारियों को अब माहवारी का दर्द सहते हुए काम करने की अनिवार्यता नहीं होगी।
इस दौरान वे ऑफिस से छुट्टी ले सकती हैं या काम के घंटों में फेरबदल कर सकती हैं, और इस छुट्टी को सिक लीव यानि अस्वस्थता के दौरान लिए जाने वाले अवकाश में शामिल नहीं किया जाएगा। इसी कड़ी में हाल ही में चीन की एक कंपनी में भी डॉक्टर का पत्र दिखाने पर पेड लीव यानि वैतनिक अवकाश के लिए भी सहमति जताई गई है। इसका एक फायदा यह होगा कि सिक लीव में कटौती नहीं होगी, लेकिन इस छुट्टी की भरपाई उन्हें बाद में अपने कार्य को पूरा कर करना होगा।
वैसे भी महिलाएं अपने कार्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होती हैं और उसे पूरा करने की तत्परता उन्हें पुरुषों के बराबर लाकर खड़ा करता है। लेकिन माहवारी के दौरान दर्द की कराह को अंदर रखकर वह बाहरी कार्य के दबाव से भी जूझती है। इस समय उसे मानसिक और शारीरिक स्तर पर विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन फिर भी वह अपने कार्य को प्रभावित किए बगैर, निष्ठा के साथ पूरा करती हैं जो बेहद सराहनीय है।
महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं और माहवारी के दौरान भी कार्य की वही गुणवत्ता उसे इस स्तर से भी कहीं आगे ले जाता है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यहां पर सवाल यह उठता है, कि जो महिलाएं अपने दर्द को दरकिनार कर उन 5 दिनों में भी कार्य के प्रति उतनी ही समर्पित होती हैं, जितनी सामान्य दिनों में, क्या उनके प्रति सिर्फ ब्रिटेन या अन्य कुछ देशों की विशेष कंपनियों की ही जिम्मेदारी बनती है? क्या महिला कर्मचारी और उनकी सृजनात्मक क्षमता से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं वैश्विक विषय नहीं है? उनके सर्मपण के प्रति क्या हमारे विकासशील देशों की इतनी भी जवाबदेहिता नहीं, कि उस विशेष समय में उन्हें काम के दबाव से राहत दी जा सके?
उल्लेखनीय है कि सिर्फ ब्रिेटेन ही नहीं बल्कि जापान में 1947 से यह प्रावधान जारी है और दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और ताइवान जैसे देशों में भी महिला कर्मचारियों के लिए माहवारी के दौरान छुट्टी का प्रावधान है। फिर बाकी विकसित और विकासशील देश संवेदना के स्तर पर कैसे पिछड़े रह गए, यह विचारणीय है।
भारत की ही बात की जाए, तो आज भी कई इलाकों में महिलाएं माहवारी के दौरान रसोई घर में प्रवेश नहीं करती। इसका वैज्ञानिक कारण उसे शारीरिक और मानसिक आराम देना ही है। यह तर्क उसकी सेहत से जुड़ा है न कि किसी अंधविश्वास से। महिला सशक्तिकरण, महिला प्रोद्यौगिकीकरण या महिला सुरक्षा के मुद्दे पिछले कुछ समय से काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं, लेकिन क्या महिलाओं की तकलीफ को समझे बिना महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
फिलहल ब्रिटेन में महिलाओं की सेहत के लिहाज से यह एक सराहनीय कदम है, जो कि उठाया ही जाना चाहिए। इसके लिए कोई विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता होनी चाहिए। सृष्टि की सृजनकर्ता की सेहत से आखिर समझौता क्यों?