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जन्माष्टमी पर्व की प्रासंगिकता

जन्माष्टमी पर्व की प्रासंगिकता - My Blog
किसी भी वस्तु, तथ्य या बात की प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करती है कि तत्कालीन परिस्थितियों में वह बात, तथ्य या वस्तु कितनी उपयोगी हो सकती है।

 
द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण के नाम का ध्यान मात्र ही उनकी विविध कलाओं और लीलाओं का बोध व सुखद अनुभूति कराता है। कृष्ण केवल अवतार मात्र न थे, अपितु एक युगनिर्माता, पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक एवं प्रबंधक गुरू भी थे। सांस्कृतिक मूल्यों का विलुप्त होना या प्रासंगिकता खो देना युग विशेष की मांग होता है। झूठ, मक्कारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, धंधाखोरी, रेप, वर्तमान अराजकता की स्थिति में कृष्ण का दर्शन अथवा कृष्ण द्वारा कही बातें आज भी कितनी उपादेय हो सकती हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात है।
 
जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष को कम कैसे किया जाए, असंख्य तनावों के बावजूद जीवन को समरसता की स्थिति में कैसे लाकर जीने योग्य बनाया जाए, ऐसे कुछ तथ्य एवं बातें हैं जो द्वापर युग में कृष्ण ने अपने दर्शन द्वारा बताई, आज भी उपयोगी हो सकती हैं।
 
इस लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारी शासकों से मुक्ति कैसे पाई जाए, यह जानने के संदर्भ में प्रस्तुत रूप से कृष्ण का दर्शन उपादेय है। अन्याय के विरोध में आवाज उठाते हुए अत्याचारी शासक की नीतियों का दमन करना चाहिए, जैसे कृष्ण ने कंस की नीतियों का दमन किया। प्राय: हर युग में ऐसा होता है, जब कोई शासक अनीति पर चलता है, तो जनता उसकी नीतियों का पर्दाफाश कर विद्रोही आवाज उठाती है, उसका दमन करती है।
 
नवसृजन एवं नवकल्याण के प्रणेता कर्मयोग की शिक्षा देने के साथ कर्तव्य बोध एवं जिम्मेदारियों के निर्वहन की भी शिक्षा देती है। "निष्काम कर्म" करने की जो प्रेरणा कृष्ण ने दी, वह तनाव एवं कुंठा से मुक्ति दिला सकती है। आज युवा वर्ग में कर्म के फल की इच्छा महतीय स्थान रखती है, वही उसके क्रियाकलापों का केंद्र बिंदु है। यदि वह निष्काम भाव से कार्य करे, तो युवा वर्ग अपराध बोध आदि कुत्सित वर्जनाओं से छुटकारा पा सकता है।
 
'अमीर और गरीब' की खाई को पाटने में "कृष्ण-सुदामा मैत्री" से संबंधित दर्शन उपादेय हो सकता है, यदि कृष्ण की भांति धनी वर्ग भी गरीब और निम्न आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता पहुंचा सकता है। यदि द्वापरयुगीन कृष्ण- सुदामा मैत्री भाव समाज आज के समाज में दिखाई देने लगे, तो वर्ग-भेद का अंतर समाप्त हो जाए। इस समर्पण भाव के द्वारा मित्रों के बीच भी संबंध सुधर सकेंगे। 
 
किसी भी प्रबंधन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस प्रबंधन का नेता कितना उर्जावान, वाकपटु, चातुर्यवान, विवेकशील एवं नेतृत्व व्यक्तित्व वाला है । एक प्रबंधक में व्यवस्था के समस्त कर्मचारियों को एक सूत्र में पिरोकर चलने का गुण होना चाहिए। 
 
इसके साथ छोटी-मोटी हरकत को नजरअंदाज कर अच्छे कार्य का फीडबैक देना चाहिए, गलत करने पर दंड का प्रावधान ऐसा हो, कि अन्य लोगों को सीख मिले। कृष्ण भगवान रण क्षेत्र में अर्जुन को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए उसे युद्ध के लिए तैयार करते हैं। वर्तमान में शिक्षक नैतिक तथा अनैतिक बात में अंतर बताकर छात्र को सही मार्ग पर ला सकते हैं।
 
कला एवं संगीत प्रेमी कृष्ण का बांसुरी प्रेम वर्तमान काष्ठ कला के विकास की ओर इंगित करता है। मोर पंख धारण करना, उनकी ललित कला के प्रति पारखी दृष्टि तथा गाय प्रेम पशुधन की ओर संकेत करता है। गौधन रक्षा के द्वारा आजीविका चलाई जा सकती है, साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा भी की जा सकती है। आज भी हम गोबर से लिपे हुए घर देखते हैं।  
 
इस प्रकार हम देखते है कि आज की परिस्थितियों में यदि कृष्ण भगवान के द्वारा बताई गई बातों का अनुसरण किया जाए तो काफी हद तक तनाव एवं विक्षोभ को कम किया जा सकता है तथा युवा वर्ग के बीच अकल्पित वर्जनाओं को समाप्त किया जा सकता है।
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