मंगलवार, 3 सितम्बर 2024
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क्षण और अनंत काल्पनिक गणना के दो बिन्दु है!

क्षण और अनंत काल्पनिक गणना के दो बिन्दु है! - Momentum and infinity are two points of imaginary calculation
Human potential : मनुष्य की अवधारणाएं गजब की है। अवधारणाओं का जन्म कल्पना करने की मानवीय क्षमता से हुआ है। मानवीय क्षमता के दो आयाम हैं। पहला शारीरिक और दूसरा मानसिक या वैचारिक। शारीरिक क्षमता की एक सीमा है जो मनुष्य मनुष्य में बदलती रहती है। पर मानसिक या वैचारिक क्षमता की कोई अंतिम सीमा रेखा नहीं है। मनुष्य की वैचारिकी की कथा हर तरह से अनंत रूप- स्वरूप में प्रत्येक मनुष्य के मन में समाई हुई है। शारीरिक क्षमता और वैचारिक क्षमता एक तरह से साकार निराकार की तरह ही है। हमारे शरीर से हम अकेले शारीरिक क्षमता के आधार पर कोई कार्य सम्पन्न नहीं कर सकते। मानसिक तरंगों की उत्पत्ति से ही शारीरिक गतिविधियां जन्म लेती है।
 
हमारे मन में हर बिंदु हमेशा दो रूप-स्वरूप में ही जन्म लेता है। इसलिए ही जीवन हमेशा गतिशीलता का पर्याय बना रहता है। जीवन की अभिव्यक्ति जीव से हुई है या इसे हम इस तरह भी कह सकते हैं जीव, जीवन की साकार अभिव्यक्ति है। जीवन और जीव क्षणिक भी है और अनंत श्रृंखला के वाहक भी है। अनन्त में समायी ऊर्जा से जीवन की उत्पत्ति हुई या ऊर्जा का साकार स्वरूप जीव है और जीव की गतिशीलता में जीवन समाया हुआ है। सजीव और निर्जीव यो तो ऊपर ऊपर से चेतना और जड़ता के बाह्य या सूक्ष्म स्वरूप है, फिर भी जड़ का सूक्ष्मतम भाग भी ऊर्जा का सूक्ष्मतम स्वरूप हैं यों तो एकसमूचा जगत चेतना या ऊर्जा का अनंत प्रवाह है।
 
जो स्थिति बूंद और समुद्र की है वही स्थिति क्षण और अनंत की है। बूंद में समुद्र का अंश समाया है और समुद्र में बूंदें विलीन है। न बूंद में समुद्र दिखाई देता है और न ही समुद्र में बूंदें अपना अस्तित्व या साकार स्वरूप दिखा पाती है। यही हाल समुद्र और लहरों का भी है। समुद्र से लहरें हैं या लहरों से समुद्र का स्वरूप अभिव्यक्त होता है! बूंद और समुद्र या लहरें और समुद्र एक दूसरे में इस तरह घुले मिले हैं कि प्रत्यक्ष तौर पर दोनों का मिला-जुला रूप ही अभिव्यक्त होता है पृथक-पृथक नहीं। यही स्थिति क्षण और अनन्त की भी है, सिद्धांत: दोनों अलग अलग दिखाई पड़ते या अनुभूत होते हैं पर मूल रूप से अलग न हो एक कल्पना के दो छोर ही है। कल्पना हमेशा निराकार ही होती है पर मनुष्य अपनी कल्पनाओं को साकार स्वरूप देना जीवन का लक्ष्य समझता है। जीव और जीवन भी इसी तरह एक दूसरे में समाए हुए हैं।
 
जीव बूंद हैं, तो जीवन लोकसागर जिसमें वनस्पति जगत भी शामिल हैं। इस जगत में एक जैसे दो जीव नहीं है और न हीं दो वनस्पति एक समान, जीव और वनस्पतियां अंतहीन विभिन्नताओं का अखंड सिलसिला है। एक ही वृक्ष की एक जैसी दो शाखाएं या पत्तियां भी नहीं होती है फिर भी इतनी विभिन्नताओं में जीवन की एक रूपता है जन्म और मृत्यु की अनन्त श्रृखंला। जन्म जीव का साकार स्वरूप है तो मृत्यु साकार स्वरूप का निराकार में समाहित हो पुनः अनंत में विलीन हो जाना है। जगत में मौजूद जीवन और जीव में अनंत विभिन्नताओं के अस्तित्व में होने पर भी जीवन और जीव में एक निरंतर एकरूपता दिखाई देती है।
 जीवन ऊर्जा की एक अनोखी श्रृंखला की तरह है। जिस में कहीं न कहीं, कोई न कोई जीव तो हर क्षण जन्मता और मृत्यु को प्राप्त हो निराकार में विलीन हो जाता है पर जीव और जीवन की अंतहीन साकार श्रृंखला अनवरत जारी रहती है। जीव के अंदर भी अनगिनत कोशिकाओं के जन्म और मृत्यु का अनवरत सिलसिला जारी रहता है। जीव का अंदरूनी जगत और बाह्य जगत जीव के साकार स्वरूप में होते हुए भी निराकार है।
 
निराकार जगत की गतिशीलता का कोई ओर-छोर नहीं होता। फिर भी जगत में निरंतर चलने वाली गतिविधियां अदृश्य होने के बाद भी समूचे जगत के अनंत जीवों के जीवन चक्र को क़ायम रखने का काम बिना रुके या थके करती ही रहती है। जीवन सरल है पर आज इस दुनिया के सारे मनुष्य अपनी कल्पनाओं के साकार स्वरूप में दिन-प्रतिदिन तरह तरह के संशोधन, संवर्धन करने में लगे हुए हैं। इस कारण इस दुनिया में आजतक जहां वनस्पति जगत सघनता से प्रचुरता के साथ कायम है, वहां-वहां जीव और जीवन का प्राकृतिक स्वरूप मौजूद है। पर जहां जहां दुनियाभर में मनुष्य की बहुलता है वहां-वहां मनुष्यकृत जटिल जीवन साकार स्वरूप में अभिव्यक्त होने लगा है।
 
मनुष्य की अधिकांश कल्पनाएं क्षणभंगुर होने के साथ जटिल ही होती है और इसी से जीवन का प्राकृतिक क्रम टूटता आभासित होता है। पर मनुष्य की बसाहट की सघनता क्षीण होने पर जीवन का प्राकृतिक स्वरूप पुनः साकार स्वरूप में परिवर्तित होने लगता है। मनुष्य और शेष जीव जिसमें वनस्पति जगत भी शामिल हैं, में मूलभूत अंतर यह दिखाई देता है कि मनुष्येत्तर जीव जंतु और वनस्पतियों का जीवन प्रारंभ से प्राकृतिक अवस्था में ही चलता रहा है और रहेगा। पर मनुष्य की कल्पना शक्ति सहजता से सहजीवन से अलग मनुष्यकृत आभासी दुनिया में जीवन जीने की भंयकर भूख को शांत करने के लिए जटिलतम आभासी जीवन के मकड़जाल में उलझता ही जा रहा है।