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मोदी की अमेरिकी यात्रा : अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नए अध्याय का निर्माण

modi in USA at state dinner
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अमेरिका ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजकीय यात्रा पर आमंत्रित करने के साथ जिस तरह स्वागत सम्मान किया, उनके प्रति राष्ट्रपति जो बाइडन, उनकी पत्नी जिल बाइडन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सहित संपूर्ण बाइडन प्रशासन और विपक्ष का जैसा व्यवहार रहा एवं जिस तरह के समझौते हुए वैसा पिछले अनेक वर्षों में नहीं हुआ।

किसी को याद नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की तरह का व्यवहार दूसरे वैश्विक नेता या देश के साथ अमेरिका में कब किया गया। मोदी को व्हाइट हाउस के अंदर ले जाने के लिए एक तरफ राष्ट्रपति बाइडन ने हाथ पकड़ा था तो दूसरी ओर उनकी पत्नी। बाइडन के साथ व्हाइट हाउस में पहली मुलाकात के समय पहली बार व्हाइट हाउस ने इतनी संख्या में भारतीय अमेरिकियों के लिए दरवाजे खोले थे। अमेरिका में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी और विपक्षी विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के बीच गहरे मतभेद और टकराव है किंतु भारत के साथ गहरे बहुपक्षीय रिश्तों और रणनीतिक साझेदारी को लेकर गजब एकता दिखी है। दोनों पार्टियों ने मोदी को अमेरिकी संसद को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया और संबोधन के दौरान उत्साहजनक तालियां एवं 15 बार स्टैंडिंग ओवेशन मिला। सांसदों में नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने और ऑटोग्राफ लेने की होड़ थी।

आलोचकों ने कहा है कि यह तो खरीदी हुई राजकीय यात्रा, संसद संबोधन एवं सम्मान था। इस प्रकार की आलोचना न केवल भारत को छोटा करना है बल्कि इस यात्रा के फलितार्थों, भारत अमेरिका संबंधों, भारत के विश्व में प्रभावी महाशक्ति बनने, अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने तथा आने वाले समय के लिए वैश्विक समीकरणों की दृष्टि से इसके विराट महत्व को कम करना होगा। इस यात्रा से 21वीं सदी के वैश्विक समीकरणों में बदलाव की शुरुआत हुई तथा ऐसी नई विश्व व्यवस्था की नींव पड़ी है जिसमें भारत अपनी क्षमता, विचारधारा और नेतृत्व की बदौलत निर्णायक भूमिका में दिखाई पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाशिंगटन के कैनेडी सेंटर में भारत और अमेरिका के शीर्ष कारोबारियों, समाजसेवियों और भारतीय अमेरिकी समुदाय के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत अमेरिकी साझेदारी सहूलियत पर नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास ,साझा प्रतिबद्धता और संवेदना पर आधारित है।

तीन दिनों की यात्रा में राष्ट्रपति बाइडन के साथ चार चरणों की मुलाकात के बाद दोनों देशों की तरफ से रक्षा, अंतरिक्ष, कारोबार व अत्याधुनिक प्रौद्यौयिगिकी में सहयोग की जो बड़ी घोषणाएं हुई, समझौते हुए वे सब दो देशों के बीच ही नहीं संपूर्ण विश्व के बदलते समीकरणों के परिचायक हैं। इस यात्रा से भारत अमेरिका संबंधों, अंतरराष्ट्रीय राजनीति एवं नई विश्व व्यवस्था की दृष्टि से नए दौर की शुरुआत हुई, नए अध्याय का निर्माण हुआ है। भारतीय वायु सेना के हल्के युद्धक विमान तेजस् की अगली पीढ़ी के विमानों में लगने वाला एफ414 इंजन को जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल के साथ मिलकर निर्माण करेगा।

सेमीकंडक्टर बनाने वाली माइक्रोन अहमदाबाद में प्लांट लगाने में 2.7 अरब डॉलर का निवेश करेगी तो अप्लाइड मैटेरियल्स भी 80 करोड़ डॉलर का निवेश करने जा रहा है। दोनों देशों द्वारा चांद, मंगल, अंतरिक्ष के दूसरे क्षेत्रों के रहस्य का पता लगाने के लिए साझा अभियान चलाना नए अंतरराष्ट्रीय परिवेश का ही परिचायक है। जो अमेरिका एक समय भारत को जीपीएस देने को तैयार नहीं था वह अंतरिक्ष में साझेदारी तक बढ़ गया। अभी तक रूस अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का सबसे निकट का साझेदार रहा है। भारत ने 2020 के आर्टेमिस समझौते पर भी हस्ताक्षर किए।

यह 1967 के अंतरिक्ष समझौते पर आधारित अमेरिका द्वारा निर्मित एक गैर बाध्यकारी व्यवस्था है जो अंतरिक्ष में असैन्य शोध के मूल आदर्श व्यवहार के मापदंडों को निर्धारित करती है। अमेरिका बंगलुरु और अहमदाबाद में दो नए वाणिज्य दूतावास खोलेगा तो भारत सिएटल में। कारोबारी संभावनाएं नहीं हो तो वाणिज्य दूतावास खोलने का कोई अर्थ नहीं हो सकता। जनरल एटॉमिक्स के साथ 30 एमक्यू-9 बी प्रिडेटर यानी रीपर ड्रोन खरीदने पर भी सहमति इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह दुनिया का सबसे घातक मानवरहित विमान है जिसके अचूक निशाने व सटीक निगरानी को संपूर्ण विश्व स्वीकार करता है। अमेरिका ने उच्च शिक्षा हासिल भारतीय पेशेवरों के लिए ज्यादा सहूलियतों और सुविधाओं की घोषणा की। एच 1बी वीजा की संख्या बढ़ाई गई और नवीनीकरण भी अमेरिका के अंदर की हो जाने की घोषणा हुई। अमेरिका भारतीय छात्रों को भी उदारतापूर्वक वीजा देगा। पिछले वर्ष अमेरिका ने भारतीय छात्रों को करीब एक लाख 25 हजार वीजा जारी किए जो रिकॉर्ड है।

मोदी बाइडन के बीच शिखर वार्ता के बाद आतंकवाद और कट्टरता के बढ़ते खतरे पर जारी संयुक्त बयान में पाकिस्तान के लिए सख्त शब्दों का प्रयोग सामान्य बात नहीं है। बयान में सीमा पार आतंकवाद की निंदा के साथ कहा गया है कि पाकिस्तान सुनिश्चित करे कि उसकी जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए न हो। मुंबई हमले व पठानकोट हमले के दोषियों को सजा दिलाने की मांग के साथ संयुक्त राष्ट्र की तरफ से घोषित अलकायदा जैसे मोहम्मद लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने की अपील भी इसमें है। दोनों देशों ने आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एफएटीएफ के अंदर ज्यादा सहयोग करने की बात कही है। आतंकवाद के विरुद्ध इस तरह की स्पष्ट घोषणा और सहमति बताती है कि अमेरिका भारत के साथ किस सीमा तक आगे बढ़ने का निर्णय कर चुका है। अमेरिकी प्रशासन ने आतंकवाद को लेकर पहली बार इस तरह की सहमति किसी देश के साथ व्यक्त की और संयुक्त बयान जारी किया।

इस तरह समझौते, साझेदारी, सहमतियां और घोषणाएं निश्चित रूप से बदलते वैश्विक समीकरणों एवं नई विश्व व्यवस्था के परिचायक हैं। अमेरिका ने इसके पूर्व किसी भी देश के साथ इस तरह के खुले समझौते बिना अनुबंध और शर्तों के नहीं किए थे। जर्मनी और जापान के साथ उसके समझौते अनुबंध आधारित रहे हैं। निस्संदेह, अमेरिका के अपना रणनीतिक हित हैं,भारत के साथ संबंधों को लेकर उसकी हिचक खत्म हो गई है। सामरिक सहयोग में दोनों देश लगातार नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।  दोनों देश के सैन्य ठिकानों ,सुविधाओं तक पहुंच के साथ संवेदनशील सूचनाओं की साझेदारी अब ऐसे ठोस दौर में पहुंच गया है जहां से हम भावी वैश्विक तस्वीरों को आसानी से देख सकते हैं। भारत ने अमेरिका के साथ सबसे ज्यादा साझा सैन्य अभ्यास किया है। भारत की भूमिका क्वाड को सामरिक तेवर देने में भी महत्वपूर्ण रहा है इसे बाइडन ने अपने आरंभिक संयुक्त वक्तव्य में स्वीकार भी किया।

भारत विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या के साथ सबसे तेज गति से बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति है। भारत की बढ़ती हुई आर्थिक एवं सैन्य ताकत ने इसे एशिया और विस्तारित एशिया प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया है। अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा भी कि अमेरिका भारत साझेदारी ही हिंद प्रशांत क्षेत्र की शांति एवं सुरक्षा के मूल में है। यही क्षेत्र विश्व में राजनीतिक एवं आर्थिक केंद्र के रूप में उभर रहा है।

इसमें दो राय नहीं कि अमेरिका की चिंता चीन की बढ़ती आर्थिक एवं सामरिक ताकत है। चीन संपूर्ण विश्व में जिस तरह की आपूर्ति श्रृंखला स्थापित कर रहा है उसका मुकाबला भारत के बगैर आज के विश्व में संभव नहीं है। चीन भारत के लिए भी चिंता का कारण है। रूस और चीन की दोस्ती अमेरिका के लिए 21 वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। यूक्रेन युद्ध ने संपूर्ण विश्व के समक्ष नए प्रकार के खतरों और चुनौतियों को रेखांकित किया है। इनको ध्यान में रखें तो भारत अमेरिका के आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक साझेदारी तथा पृथ्वी, आकाश, पाताल सहित जीवन के हर क्षेत्र में सहयोग पर सहमति का महत्व समझ में आ जाएगा। व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में रणनीतिक संचार के समन्वयक जॉन किर्बी ने इस यात्रा का लक्ष्य भारत को चीन के मुकाबले पेश करना नहीं बल्कि विश्व के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रक्षा सहयोग सहित अन्य संबंधों को प्रगाढ़ करना बताया। वास्तव में विश्व को लेकर भारत और अमेरिका का दृष्टिकोण पूरी तरह समान नहीं हो सकता किंतु अनेक बिंदुओं पर सहमति है और इस दृष्टि से दोनों के बीच साझेदारी वैश्विक व्यवस्था के पुनर्निर्माण की क्षमता रखता है।
Edited: By Navin Rangiyal
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