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Bengal election: ममता का प्लास्टर, बंगाल चुनाव और राजनीति

Bengal election: ममता का प्लास्टर, बंगाल चुनाव और राजनीति - Mamta benarjee, bengal election
सच में देश में कोरोना के बाद सबसे चर्चित यदि हैं तो बंगाल के चुनाव। बुधवार शाम को ममता के चोटिल होने के बाद प्रदेश की राजनीति में एकाएक जो मोड़ आया, वह बेहद दिलचस्प और चुनाव को प्रभावित करने वाला भी हो सकता है।

ममता बनर्जी जिस तरह से चोटिल हुई वह अपने आप में चर्चित हो सकता है लेकिन दूसरी पार्टियों ने तुरंत उनके स्वास्थ्य के सुधार की कामना किए बिना ही सीधे नाटक, नौटंकी करने जैसे बयान देकर खुद के लिए कितना अच्छा, कितना बुरा किया यह वक्त बताएगा?

हां, घटना के बाद सामने आने वाले सत्य और तथ्य इस बार के बंगाल चुनाव के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं। कौन सही है, कौन गलत है यह तो जरूर सामने आएगा, लेकिन जिस तरह से समूचे बंगाल और पूरे देश में एक चर्चा शुरू हो चुकी है कि ममता बनर्जी अकेले ही अपनी पार्टी की स्टार प्रचारक हैं, वह भला ऐसा क्यूं जानबूझकर करेंगी? इसका जवाब होकर भी किसी के पास नहीं है।

हालांकि ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब सिवाय ममता के और किसी के पास नहीं हो सकता। नन्दीग्राम में जिस जगह उनकी गाड़ी का दरवाजा बन्द हुआ, वहां पर दो छोटे लोहे के खंबे सड़क पर गड़े हुए हैं, ताकि बड़े वाहन न निकल सकें। कहा जा रहा है कि बैठते वक्त इन्हीं में से एक खंबे से गाड़ी का दरवाजा टकरा कर तेजी से घूमा और ममता बाहर रहे पैर से टकरा गया।

जाहिर है चोट लगनी थी, लगी भी और वह गिरीं और घायल हो गईं। लेकिन यह सब अपने-अपने दावे हैं। सवाल यहां भी उठता है कि ममता बनर्जी को जेडप्‍लस सिक्यूरिटी मिली हुई है ऐसे में उनका दरवाजा खोलना, उन्हें उतरते और चढ़ते वक्त सुरक्षा देना व हिफाजत के लिए पूरा स्टाफ होने के बावजूद कैसे हुआ? सड़क में गड़े खंबे न दिखें बड़ा सवाल है। सच में सवाल जितने गंभीर हैं जवाब उतने ही सवालिया होंगे।

यह भी सही है कि ममता बनर्जी के पास खुद ही प्रदेश के गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है, ऐसे में उन्हीं की सुरक्षा में चूक थोड़ी पचने जैसे बात नहीं लगती। लेकिन यह भी सही है कि साल 2018 की ही एक रिपोर्ट बताती है उनकी जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा के चौथे चरण यानी डी जोन को मजबूत कर उसमें उनकी पर्सनल सिक्योरिटी के लिए 150 पुलिसवाले तैनात किए गए थे। ऐसे में फिर घूम फिरकर बात हमला कैसे हुआ पर ही आकर टिक जाती है?
इधर घटना के बाद देर रात ममता बनर्जी की मेडिकल की प्राथमिक रिपोर्ट भी आ गई जिसमें इस बात की तस्दीक है कि उन्हें चोट तो कई जगह आई है। जिसमें उनके बाएं टखने और पैर की हड्डियों में गंभीर चोटें हैं जबकि दाहिने कंधे, गर्दन और कलाई में भी चोटें है। उनके बाएं पैर में प्लास्टर भी चढ़ाया गया है और वो 48 घण्टे चिकित्सकों की गहन निगरानी में रहेंगी।

राजनीति में सहानुभूति का खासा दबदबा रहता है। कम से कम भारत में तो सहानुभूति ने कई बार कई-कई समीकरणों को बदला है। देश में अनेकों उदाहरण हैं जब सहानुभूति की लहर चलती है तो बड़े-बड़े दावे हवा हो जाते हैं। ममता बनर्जी के बारे में बंगाल क्या पूरा देश मानता है कि वो संघर्ष से नहीं डरती और चुनौतियों को झेलना उनकी फितरत है। ऐसे में यह घटना या दुर्घटना जो भी है आगे क्या मोड़ लेगी बेहद दिलचस्प होगा। हालांकि राजनीतिक पण्डितों के गुणाभाग में कल तक ममता बनर्जी और नन्दीग्राम का बीता बुधवार विषय जरूर नहीं रहा है, लेकिन अब यह भी जुड़ जाएगा और इस पर विश्लेषणों की भरमार होगी।

अभी तो ममता बनर्जी का अस्पताल से एक चित्र ही बाहर आया है जिसने लोगों को सोचने को विवश कर दिया है। हो सकता है कल उनके एक्स-रे, एमआरआई व दूसरी रिपोर्टें भी सामने आ जाएं जिन्हें कौन नकारेगा? हां, भले ही लोग घटना के प्रत्यक्षदर्शियों को लेकर बड़ी बातें कहें, संशय में हों और हर हाथ में मोबाइल होने के बावजूद एक भी वीडियो फुटेज को लेकर सवाल खड़े कर रहे हों।

लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि आज की राजनीति वही है जहां हर पल शह-मात का खेल हो और विरोधियों की हर चाल को नाकाम करने की कोशिशें। क्या पता कोई तस्वीर या वीडियो भी सामने आ जाए और दूध का दूध पानी का पानी हो जाए! शायद यही राजनीति है जहां किसी अवसर को खोया नहीं जाता है फिर भले ही वह कैसा भी हो। अब चुनाव आयोग को भेजी जाने वाली रिपोर्ट और अस्पताल से दीदी की छुट्टी के बाद के व्हीलचेयर से प्रचार के तौर तरीकों पर भी क्या सवाल उठेंगे?

प्लास्टर चढ़ने के बाद कुछ दिन तो रहेगा। सवाल यह है कि दीदी का प्लास्टर किस-किस की दीवार कमजोर करेगा और कितनों की ढ़हाएगा?  फिलाहाल 23 साल पहले 1 जनवरी, 1998 को कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस की स्थापना कर 10 वर्षों तक बंगाल जैसे राज्य की मुख्यमंत्री रहने वाली ममता बनर्जी पर मां, माटी और मानुष की कितनी कृपा होगी यह 2 मई को ही पता चलेगा।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी अभिव्‍यक्‍ति और राय है, बेवदुनिया डॉट कॉम से इससे कोई संबंध नहीं है)
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