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Written By Author अनवर जमाल अशरफ
Last Updated : मंगलवार, 24 दिसंबर 2019 (13:47 IST)

पाकिस्तान, सीरिया से भी ज्यादा बंद होता है भारत में इंटरनेट

पाकिस्तान, सीरिया से भी ज्यादा बंद होता है भारत में इंटरनेट - Internet ban in India 2019
दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट भारत में बंद किए जाते हैं– तानाशाह देशों से भी ज्यादा। नागरिकता कानून की आड़ में भारत में इंटरनेट लगातार बाधित हो रहा है और यह काम सरकार के आदेश पर हो रहा है। इंटरनेट सेवाएं क्यों बंद की जाती हैं – कानून व्यवस्था बनाने के लिए या विरोध को कुचलने के लिए।
 
भारत में इस साल अब तक अलग-अलग जगहों पर 100 से अधिक बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है, जिसमें कश्मीर में इंटरनेट पर जारी पाबंदी भी शामिल है। वहां लगभग पांच महीने से इंटरनेट बंद है, जो भारत (और संभव है कि पूरे विश्व) का सबसे लंबा इंटरनेट बैन है। internetshutdowns.in भारत में चल रहे इंटरनेट पाबंदी की डॉक्यूमेंटेशन पर काफी गंभीरता से काम कर रहा है।
 
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इंटरनेट पर रोक बहुत तेजी से बढ़ी है। भारत में साल 2014 में सिर्फ छह बार इंटरनेट शटडाउन हुआ, जबकि पिछले साल 134 बार इंटरनेट बंद किया गया। पूरी दुनिया में 196 बार इंटरनेट पर रोक लगी। दूसरे नंबर पर था पाकिस्तान – सिर्फ 12 बार ऐसा करने वाला देश। सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों ने पूरे साल में 10 बार भी इंटरनेट नहीं बंद किया।
 
जिस देश का प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया की बात करता हो, उसी देश में सबसे ज्यादा इंटरनेट पर लगाम लगाई जाती है। प्रधानमंत्री मोदी किसी जमाने में अपने नेट सेवी छवि की वजह से चर्चा में रहते थे – उन्हें इंटरनेट का महारथी और ट्विटर किंग के तौर पर जाना जाता था। लेकिन अब वह बात नहीं रही – उनकी छवि धीरे धीरे टूट रही है। जिस समय असम में इंटरनेट बंद रहता है, उस समय मोदी वहां की जनता को संबोधित करते हुए ट्वीट करते हैं। यह सोचे बगैर कि भला वहां के लोग इस ट्वीट को कैसे देखेंगे।
 
संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में एक प्रस्ताव पास किया है, जो इंटरनेट को मानवाधिकार की श्रेणी में शामिल करता है और सरकारों के इंटरनेट पर रोक लगाने को सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन बताता है। हालांकि यह प्रस्ताव नॉन-बाइंडिंग यानी बाध्यकारी नहीं है और भारत आसानी से यह तर्क दे सकता है। लेकिन लोकतांत्रिक देशों के सामने वह कोई तर्क नहीं दे पाएगा, जहां बड़े से बड़े आंदोलनों के बीच भी इंटरनेट पर रोक नहीं लगाई जाती है।
इस मामले में भारत का कानून बहुत साफ नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट कहती है कि छोटे स्तर के अधिकारी भी इंटरनेट सेवाएं देने वाली कंपनियों को एक-दो फोन करके किसी इलाके का इंटरनेट बंद करा सकते हैं। उनकी दलील होती है कि इंटरनेट के जरिए जिस तेजी से अफवाह फैलाई जा सकती है, उस तेजी से पुलिस और सरकारी अमला काम नहीं कर सकता है।

इसलिए सबसे आसान उपाय है कि इंटरनेट बंद कर दिया जाए। हालांकि उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि वे बीजेपी के आईटी सेल के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर पाते। बीजेपी आईटी सेल फेक न्यूज और फोटोशॉप तस्वीरें सोशल मीडिया पर फैलाने के लिए बदनाम है। इनमें से काफी मटेरियल भड़काऊ भी होता है। 
 
दुनिया भर के रिसर्चरों का दावा है कि इंटरनेट बंद करने से हिंसा या प्रदर्शनों को रोकने में कोई खास कामयाबी नहीं मिलती है। अलबत्ता काम धंधा जरूर चौपट हो जाता है। जम्मू कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स बताता है कि पांच महीनों में डेढ़ अरब डॉलर यानी कोई 100 अरब रुपए का नुकसान झेल चुका है। कई लोगों का कहना है कि सिर्फ ईमेल चेक करने और दूसरे जरूरी ऑनलाइन कामों को निपटाने के लिए उन्हें कश्मीर से जम्मू जाना पड़ता है।
 
मोदी सरकार को अपनी कथनी और करनी के बीच की दरार को कम करने की जरूरत है। उनके विरोध की जड़ इंटरनेट नहीं, बल्कि लोगों को विभाजित करने की नीतियां हैं। नागरिकता कानून और प्रस्तावित नागरिकता रजिस्टर काले कानून हैं और उनका पुरजोर विरोध होना चाहिए। (Image courtesy : internetshutdowns.in)
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 
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