लोगों ने ये गलत धारणा बना रखी है कि भारत में सिर्फ मुसलमान ही हैं, जो गोमांस खाते हैं। यह बिलकुल ही निराधार सोच है। गोमांस खाने का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं है। यह बात ऋषि कपूर और मार्कंडेय काटजू ने सिद्ध कर दी है। ऋषि कपूर जैसे कई लोग गाय का मांस खाते हैं, जैसा कि अमरसिंह ने कहा कि मैंने जया बच्चन को गोमांस खाते हुए देखा।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश काटजू की तरह कई लोग गाय को पूजनीय या माता नहीं मानते। काटजू ने कहा था कि 'गाय सिर्फ एक पशु है, जो किसी की माता नहीं हो सकती।...मैं भी गोमांस खाता हूं।’ हालांकि शायद काटजू को यह नहीं मालूम कि गाय कम से कम बछड़े की माता तो होती ही है। आप किसी बछड़े की माता को खाते हैं तो यह भी तय है कि किसी जन्म में आप भी बछड़ा बनकर उस दर्द को झेलेंगे।
बहुत से हिन्दू गाय के मांस को खाने के पक्ष में हैं। यदि कोई हिन्दू गाय का मांस खाता हो और उसको छुपाता हो तो इस बारे में आप कैसे पता लगा सकते हैं या आप उसका क्या बिगाड़ लेंगे? ठीक उसी तरह यदि कोई हिन्दू प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की तस्करी करता हो तो आप उसका क्या बिगाड़ सकते हैं?
हाल ही में बीबीसी में एक स्टोरी छपी थी जिसका शीर्षक 'भैंस का दूध पीकर गाय बचाने के नारे' था। सचमुच देश में गायों की दशा दयनीय हो चली है। मात्र 600 रुपए में वह तस्करों के हाथों बिक जाती है। ये बेचने वाले लोग कौन हैं? गाय पर राजनीति करने वाले हिन्दुओं को क्या यह समझ में आएगा कि बेचारी गाय बरसात में भीगती, धूप में तपती और ठंठ में ठिठुरती रहती है। इस देश में विदेशी कुत्ते घरों में आराम फरमा रहे हैं और गायें सड़कों पर मारी जा रही हैं। ऐसी है आपकी गायों के प्रति भक्ति?
गायों को खाने के लिए क्या मिलता है? प्लास्टिक की पन्नी और फेंका गया बासी खाना। गायों को मां कहा जाता है, लेकिन उनकी देखभाल मां की तरह नहीं की जाती। जब गाय दूध देना बंद कर देती है या जब वह बूढ़ी हो जाती है तो यह सभी जानते हैं कि उसके साथ कैसा सलूक किया जाता रहा है। वह कैसे और कब बूचड़खाने पहुंच जाती है?
नगर पालिका ही आवारा गायों को पकड़ती है। भारत में कुल 3,600 बूचड़खाने सिर्फ नगर पालिकाओं द्वारा चलाए जाते हैं। इनके अलावा 42 बूचड़खाने 'ऑल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन' द्वारा संचालित किए जाते हैं, जहां से सिर्फ निर्यात किया जाता है। 32 ऐसे बूचड़खाने हैं, जो भारत सरकार के एक विभाग के अधीन हैं। क्या कभी इन बूचड़खानों का ऑडिट हुआ या कभी इन पर मॉनिटरिंग की गई की इनमें क्या कटता और क्या बिकता है? खैर...
गोमांस पर प्रतिबंध के पक्ष में मुसलमान समुदाय उतना ही तत्पर है जितना कि हिन्दू, लेकिन गोमांस पर वर्तमान में हो रही राजनीति के चलते अब इस मामले का सांप्रदायीकरण हो चला है जिसके चलते वर्षों से जम्मू और कश्मीर में लगे गोमांस पर प्रतिबंध के खिलाफ अब आवाज उठने लगी है। सबसे पहले कश्मीर के कट्टरपंथी निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद अली ने बीफ पार्टी का आयोजन करके हिन्दुओं की भावना को आहत कर राज्य में जनसमर्थन को बढ़ाया। इस इसकी राजनीति के चलते ही अब कथित रूप से गोमांस खाने या गाय की तस्करी के चलते या महज शंका के आधार पर ही आक्रोशित हिन्दू समुदाय द्वारा कुछ लोगों पर हमले हुए जिसमें उनकी मौत हो गई।
दिल्ली के निकट ग्रेटर नोएडा के दादरी में गोमांस खाने की अफवाह के कारण एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई जिसे मीडिया ने तब खूब जोर-शोर से उठाया, जब वहां असदुद्दीन ओवैसी ने पहुंचकर भड़काऊ बयान दिया। मीडिया ने इस घटना का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया। हालांकि जब कश्मीर में या पूर्वोत्तर में किसी हिन्दू का कत्ल हो जाता है, तब मीडिया वहां नहीं होती। वहां का कवरेज करने पर मीडिया पर सांप्रदायिक होने का आरोप लग सकता है। खैर...!
अपने भड़काऊ बयानों के लिए प्रसिद्ध ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सदर असदुद्दीन ओवैसी ही सबसे पहले उत्तरप्रदेश के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव में गाय का गोश्त घर में होने की अफवाह के बाद पीट-पीटकर कत्ल कर दिए गए अखलाक के यहां गए थे। उनके जाने के बाद ही इस मुद्दे को सियासी बल मिला। उनके वहां जाने के बाद तो राजनेताओं के आने-जाने की लाइन लग गई थी। अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल की भूमिका इसमें बहुत अहम रही। ये दोनों ही अपने साथ मीडिया का जमावड़ा लेकर गए थे। मीडिया 'आप' द्वारा दी गई विशेष सूचना पर विशेष ध्यान रखता है।
खुद के ही शासन में घटी इस घटना से आजम खान इतने तिलमिलाए कि उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हम इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाएंगे। बस फिर क्या था शिवसेना और हिन्दू संगठन के लोग भड़क गए। शिवसेना ने कहा कि यह देशद्रोह है। आजम को देश के किसी भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। निर्वाचन आयोग उन्हें अयोग्य घोषित करे। 'सामना' में शिवसेना ने कहा कि मुलायम सिंह यादव की धमनियों में जरा-सी भी राष्ट्रभक्ति हो तो वे आजम खान को घर बिठाएं।
नेताओं के जाने और उनके भड़काऊ बयान देने के बाद बेचारी 'गाय' सत्ता के केंद्र में आ गई और अब उसकी रक्षा कर रहे हिन्दू के लिए जीने और मरने का प्रश्न बना दिया गया। इसका ही परिणाम था कि पहले भी गाय के तस्कर पकड़े जाते थे, लेकिन तब मीडिया का ध्यान इस ओर कभी नहीं गया।
हाल ही में हिमाचल में एक ट्रक में गायों को भरकर ले जाया जा रहा था जिसे बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया। पकड़े गए कुछ तस्कर तो भागने में कामयाब हो गए लेकिन जो ट्रक ड्राइवर पकड़ाया था उसको इस कदर पीटा गया कि गंभीर हालत में उसकी अस्पताल में मौत हो गई। बस ये दो घटनाएं काफी थीं राजनेताओं और मीडिया के लिए।
राजनेता एक ओर जहां थोड़े से समूह के बीच बयान देते हैं, वहीं मीडिया उनके बयानों को 125 करोड़ लोगों के बीच ले जाकर दिनभर पूरे देश में प्रसारित कर एक समुदाय विशेष के मन में नफरत का विस्तार करता है। क्या मीडिया भड़काऊ बयान को दिनभर प्रसारित करने के लिए उतना ही दोषी नहीं है जितना कि देने वाले हैं? क्यों नहीं मीडिया को भी भड़काऊ बयान देने वालों की श्रेणी में रखा जाता है? मात्र सांप्रदायिक, भड़काऊ और विवादित बयानों को प्रसारित करने वाले न्यूज चैनल इस देश में असंतोष की आग को भड़काकर कौन-सा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं?
हमने देखा है कि मीडिया ने किस तरह लालू प्रसाद यादव के बीफ वाले बयान को दिनभर दिखाकर लोगों के मन में पीड़ा पैदा कर दी थी। दुख तो तब और बढ़ गया, जब उनकी पार्टी के नेता रघुवंश प्रसाद ने कहा कि पुराने जमाने में ऋषि-मुनि भी बीफ खाते थे। हालांकि रघुवंश प्रसाद यह नहीं बता पाए कि किस वेद और पुराण की किस ऋचा में यह लिखा है। रघुवंश लालू की ही बात का समर्थन कर रहे थे। लालू प्रसाद यादव ने कहा कि हिन्दू भी खाते हैं बीफ।
गाय पर भाजपा के भड़काऊ नेता भी पीछे नहीं रहे। भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि यदि मां का अपमान होगा तो हम मार देंगे या मर जाएंगे। साक्षी महाराज ने कहा कि जैसे खुद की हमारी मां है, भारत हमारी मां है, वैसे ही गौ भी हमारी माता है।
कुछ चंद लोगों के बयानों को प्रसारित करके समूचे हिन्दू या मुस्लिम समाज के मन में नफरत का विस्तार करना कहां तक उचित है? आम मुसलमान या हिन्दू नहीं समझता है कि यह बयान देने वाले लोग हिन्दुओं या मुसलमानों के ठेकेदार नहीं हैं, यह तो राजनीति के चलते बयानबाजी हो रही है और यह राजनीति के चलते ही हत्याएं हो रही हैं।