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Christmas Special : ऐ इब्न-ए-मरियम! जल्दी आओ...

Christmas Special : ऐ इब्न-ए-मरियम! जल्दी आओ... - blog on Christmas
क्रिसमस की तैयारियां उरूज पर हैं। घर, दुकान, मकान और बाजार सभी में एक जोश सा नजर आ रहा है। मॉल अपनी सजधज में छोटी दुकानों को पीछे छोड़ देना चाहते हैं और शहर के अमीर लोग अपने लाव-लशकार सहित बड़ी-बड़ी कारों से उतर कर पता नहीं क्या-क्या खरीदने की चाह जहन में समेटे एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहते हैं। पूरे शहर को तुम्हारा ही तो इंतजार है और तुम!
 
खुदा जाने तुम हमें सुन भी पा रहे हो या नहीं। जरा देखो, पूरी कायनात से बेपरवाह खूबसूरत लड़कियों का झुंड ऑफिस, स्कूल, दफ्तर और कॉलेज के बाद शहर की शामों में रंग घोलता माहौल को अलिफ-लैलवी दास्तां का हिस्सा बना रहा है। बच्चे हाथों में गुब्बारे थामे अपने संगियों के संग उछलकूद मचा रहे हैं। रंगीन लट्टू और बेशुमार रंग बिखेरती बिजली की सुंदर लडियां तुम्हारी आमद में गुनगुना रही हैं 'रौशन हुई रात मरियम का बेटा उतर के जमीं पे आया'। कुल मिला कर सब ख्वाब्नाक है और तुम्हारी आमद का मुन्तजिर भी। मगर खुदा जाने लौह-ए-महफूज़ में तुम्हारी आमद का वक्त कब लिखा है। 
 
ओ मसीहा! क्या तुम्हें खबर है, शहर की सबसे रईस-सी कॉलोनी के सबसे महंगे से अपार्टमेन्ट के फ्लैट नम्बर 117 की राधिका दिन भर की थकन और शहर भर की गर्द समेटे काम से वापस आ गई है, और इस बेहद फराख दिल, खूबसूरत और जहीन सॉफ्टवेयर इंजिनियर को इसका शौहर किसी और औरत के लिए छोड़ कर चला गया है। 
 
अपने बच्चे के लिए खिलौने जमा करती इस मासूम ने अब अपने आंखों में ढेरों आंसू जमा कर लिए हैं। ऐ मरियम की आंखों की ठंडक! रोशनी में नहाए और लोगों की भीड़ से अटे पड़े इस शहर के परले सिरे पर एक आबाद सी कॉलोनी के तन्हां से मकान में रहने वाली मिसेस जूरानी, जिनके हंसने से उनके दाहिने गाल में गड्ढा पड़ता है और जो अपने शौहर के गुजर जाने के बाद बेहद तन्हा-सी किसी अनदेखे खुदा से मिल जाने की ख्वाहिश रखतीं हैं, को तुम्हारा मुझसे भी ज्यादा इंतजार है। उसकी तन्हाई के सदके, तुम ना आ सको तो तुम्हारा कोई मासूम मेमना ही उसे दे जाओ कि उसके बच्चे सात समंदर पार जा बसे हैं और उसे मोहब्बत की बेहद जरूरत है। 
 
ऐ परमेश्वर की रूह! वक्त तुम्हारी आमद का है, और बच्चे- बूढ़े सभी तुम्हारे मुन्तजिर हैं तो आते वक्त अपने पमेश्वर से उस दुखिया की फरियाद करते आना जो गली के आखिरी सिरे पर बने अपने फूस के मकान में बैठी दिन-रात अपने रब को याद करती रहती है। जिसका जवान-जहान पागल बेटा उसकी सबसे बड़ी आजमाइश बन बैठा है। हाड़ तोड़ने वाली इस ठंड में वह उस बुढ़िया का कम्बल गीला कर देता है। वह पूरी रात सजदे में पडी परमेश्वर से अपने गुनाहों की माफी मांगती है। 
 
तुम जानते हो, शहर के बीचोबीच बने गर्ल्स हॉस्टल की पिंकी-टीना (न ना! होमो नहीं, रूममेट हैं ) दिल लगा कर पढाई कर रहीं हैं। (उन्हें नहीं पता ऊपर कौन है, शिव जी, वाहे गुरु, अल्लाह मियां या तुम, इसी से वे सारे मंदिर, मस्जिद, गिरजों और गुरुद्वारों में हो आती हैं।) 
 
मौसम के अनुसार और मौकों के हिसाब से सहूलियत देख कर वे एक-एक माह हर खुदा को मान लेतीं हैं। तुम्हें उनकी मेहनत का वास्ता जरा सिफारिश करते आना। इसी हॉस्टल की अंशु की तनख्वाह बढवाना भी जरूरी है। श्रीजा को कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हैं। उसने डबल शिफ्ट कर ली है। बाबूजी का इलाज जो कराना है। एन्सी अपनी ही शादी के लिए पैसे जमा कर रही है और उस पागल प्रेमी से शादी करने के लिए रुपया इकठ्ठा करते-करते वह हंसना भी भूल गई है। 
 
 
तुम्हें पता है, हॉस्टल का हरसिंगार सिर्फ उसके हंसने से ही फूलता है। अपने परमेश्वर से उसकी हंसी वापस लेते आना। रानू जिसके हंसने से बोगनबेलिया झूम उठता था ससुराल वालों से त्रस्त हो वापस आ गई है और ऋचा का फिर पीएमटी में सिलेक्शन नहीं हुआ है। ओ जीसस! जरा तो रहम करवा दो तुम्हे इनकी आंखों के चिरागों का वास्ता। 
 
इसी हॉस्टल की सांवली-सलोनी वार्डन, जिसे मोहब्बत या फिर हिमाकत में लड़कियां 'पथराई औरत' कहती थीं और जिसने मियां से तलाक़ हो जाने के बाद इसी हॉस्टल में पनाह ली थी, तुम तो जानते हो ना कि कैंसर की मरीज और मोहब्बत की भूखी उस औरत ने क्यों और किन हालातों में दम तोड़ा। उसकी नजरों में रुके और तुम्हारे अतिरिक्त किसी और के सामने कभी ना बहे उन आंसुओं के सदके, खुदारा! एक बार उसकी रूह के सुकून के लिए सिफारिश करते आना। 
 
इशू प्यारे! बड़े-बड़े मुल्कों की बड़ी-बड़ी वारदातों के बीच छोटे-छोटे लोग भी धड़क रहे हैं और इन्हीं नन्ही-नन्ही धडकनों की बनफ्शी उमंगों के चलते दुनिया की आबादी सात अरब से भी ज्यादा हो गई है। मसीहा! ये सात अरब और इनके मां- बाप, इनके घुटनों का दर्द और जहनों की टीसें, कमजोर बीनाई और कमजोर याददाश्तों के नन्हें-मुन्ने शिकवे, ये सब भी बदस्तूर लगे हुए हैं, तुम्हे इन्हें भी तो चंगा करना है। 
 
ऐ इब्न-ए-मरियम! जल्दी आओ! कहीं ऐसा ना हो कि आम गुजिश्तान सालों की तरह यह साल भी अपनी तमामतर वफाएं शहर के बेवफाओं के नाम कर हमेशा-हमेशा के लिए लौट जाए और हमारी तमाम दुआएं पंछियों की तरह परों में सिर दिए दिल की मुंडेर पर उदास बैठी रह जाएं। ऐ परमेश्वर की रूह! आओ कुबूलियत की हवा के झोंको के साथ, इससे पहले कि दर्द के पैमाने लबरेज हो, कराह उठे- इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई, मेरे दुःख की दवा करे कोई...!
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