Ahmedabad Serial Blast: 38 दोषियों को फांसी की खबर दिखाने में मीडिया की स्क्रीन इतनी धुंधली क्यों हो गई?
क्या वजह है कि इतिहास के सबसे बड़े फैसले 38 दोषियों को फांसी की खबर को कई न्यूज चैनल नहीं दिखा रहे हैं। भारतीय न्यायिक इतिहास में अहमदाबाद की सेशन कोर्ट ने शुक्रवार को जो फैसला सुनाया वो ऐतिहासिक है।
इस फैसले में कोर्ट ने 2008 में अहमदाबाद में हुए सीरियल बम धमाकों (Ahmedabad Serial Blast 2008) में 38 लोगों को एक साथ फांसी की सजा सुनाई। इसके पहले राजीव गांधी हत्याकांड के मामले में 26 लोगों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है।
न्यूज चैनल्स की हालत अक्सर बेहद पतली होती है, वहीं, इन दिनों अगर यूपी, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) नहीं होते तो मीडिया हर मामूली खबर को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता। हर मामले को सनसनीखेज परिधान पहनाकर उसके पीछे भागता, ऐसे में आतंकी हमले में 38 दोषियों को फांसी देने वाली गुजरात से खबर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिलचस्पी क्यों नजर नहीं आ रही है।
आखिर क्या वजह है कि इतने बड़े फैसले को सिर्फ एक ब्रेकिंग न्यूज में समेटकर न्यूज चैनल्स फिर से चुनावी बयानबाजी और मतदाताओं के रूझान पर आ गए।
वही मीडिया जिसे हर खबर में सनसनी का तडका बहुत पसंद है, अपराध और सेक्स स्क्ैंडल के स्कूप बहुत पंसद है, वही मीडिया आतंकी हमला, बम ब्लास्ट, टैरेरिस्ट अटैक, गुजरात दंगे और गोधरा कांड जैसे शब्दों, और उनकी फ्लेशबैक तस्वीरों की स्मृतियों को भुनाने के प्रति इतना उदासीन है।
ये वही मीडिया है जो जानवरों के रोमाचंक वीडियो मजे ले लेकर दिखाता है, ये वहीं मीडिया है जो टिकटॉक और इधर- उधर के रोमाचंक एक्सीडेंट की भयावहता दिखाकर लोगों को जागरूक करता है, उसी मीडिया पर 38 लोगों की फांसी की खबर टीवी के सबसे निचले हिस्से में स्क्रोल की जा रही है।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव (Assembely Election 2022) बेहद अहम हैं, ये देश की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे, लेकिन ये चुनाव तो अलग-अलग चरणों में चल ही रहे हैं, खबरें आ ही रहीं हैं, लेकिन जो फैसला प्रधानमंत्री मोदी के राज्य गुजरात से आया है, वो भी बडी संख्या में दोषियों को फांसी का इतना बड़ा फैसला है, तो मीडिया की स्क्रीन इतनी धुंधली क्यों हो गई है।