क्या बच्चा सिर्फ मां की जिम्मेदारी है?
स्त्री के लिए मां बनने से बढ़कर और कोई खुशी नहीं होती है। मातृत्व धारण करते ही उसे अपनी पूर्णता का अनुभव होने लगता है। समाज में मां का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। ये सारी बातें कहने और सुनने में बहुत गरिमामय और सुखद लगती हैं किंतु प्रायः सच इसके विपरीत मिलता है।
प्रायः यह पढ़ने-सुनने में आता है कि निर्दयी मां ने अपने नवजात शिशु को कचरे में फेंका। ऐसे समाचार पढ़ते ही एक निर्दयी युवती की तस्वीर सबकी आंखों में तैर जाती है। किंतु उस नवजात शिशु का पिता? उसके बारे में कितने लोग विचार करते हैं?
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शिशु का जन्म और उसका लालन-पालन यदि अकेली मां की जिम्मेदारी है तो उस समय यह धारणा कहां जाती है जब कोई अविवाहिता मां बनती है। एक ओर सामाजिक सोच अविवाहित मां को बदचलन, कुलटा आदि नाना प्रकार के नामों से विभूषित करती है और दूसरी ओर इन्हीं लांछनों से घबरा कर अपने शिशु को त्यागने की पीड़ा सहने वाली युवती को निर्दयी करार दे दिया जाता है। गोया, चित भी मेरी पट भी मेरी। शिशु के जन्म के जिम्मेदार पिता को कोई नहीं ढूंढ़ता है। सारे लांछन मां की झोली में डाल दिए जाते हैं।