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औरत का सच्चा रूप है माँ
बचपन में लोरियाँ सुनाती माँ हर आहट पर जाग जाती माँ आज गुनगुनाती है तकिये को लेकर भिगोती है आँसू से उसे बेटा समझकरस्कूल जाते समय प्यार से दुलारती माँ बच्चे के आने की बाट जोहती माँ अब रोती है चौखट से सर लगाकर दुलारती है पड़ोस के बच्चे को करीब बुलाकर कल तक चटखारे लेकर खाते थे दाल-भात को और चुमते थें उस औरत के हाथ को आज फिर प्यार से दाल-भात बनाती है माँ बच्चे के इंतजार में रातभर टकटकी लगाती माँ लाती है 'लाडी' बड़े प्यार से लाडले के लिए अपनी धन-दौलत औलाद पर लुटाती माँ आज तरसती है दाने-पानी को यादों और सिसकियों में खोई रहती माँ लुटाया बहुत कुछ लुट गया सबकुछ फिर भी दुआएँ देती है माँ प्यार का अथाह सागर है वो औरत का सच्चा रूप है माँ औरत का सच्चा रूप है माँ ....