शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. महात्मा गांधी
  4. Poem On 30 January
Written By

पुण्यतिथि विशेष : महात्मा गांधी पर 5 प्रेरक कविताएं

पुण्यतिथि विशेष : महात्मा गांधी पर 5 प्रेरक कविताएं - Poem On 30 January
Mahatma Gandhi Poems
 
1. 30 जनवरी पर कविता
 
प्रात:काल का समय, रोजमर्रा की जिंदगी, 
उलझी अंगुलियां-दिमाग, स्वत: चलते, 
मस्तिष्क पर थोड़ा जोर डाला, कुछ याद आया, 
खींचकर पर्स से, चेकबुक बाहर निकाली।
 
मेरा योगदान! गुरुओं के लिए उपहार था खरीदना, 
हाथ में कलम, चेक पर कुछ शब्द भरे, कुछ संख्या, 
तारीख पर कलम सरकी कौंध गया मेरा भीतर, 
लाठी लिए चादर ओढ़े, एक आकृति उभरी मस्तिष्क में।
 
आज तीस तारीख है, पुण्यतिथि महान गुरु की, 
वो अच्छे आदमी थे, कहीं पढ़ा था, 
वे अहिंसा के गुरु, आजादी के गुरु, 
सच्चाई के मापदंड, अच्छाई के प्रतिबिम्ब।
 
उन्नीसवीं सदी के, बीसवीं सदी के महानायक, 
जब अच्छी जनता की आत्मा में उनका वास था, 
अच्छे नेता अच्छाई के लिए, जिनकी कसमें खाते थे, 
तपती धूप का आंचल ओढ़, तपती सड़क पर कठोर कदम बढ़ाते। 
 
आजादी के चमकते सूरज की ओर बढ़ चले थे, 
अहिंसा की लाठी और सत्य की चादर ओढ़े,
कठिन राहों पर, अच्छी जनता ने पीछे चलकर, 
कई बलिदान दे, दिया था अपना योगदान।
 
इक्कीसवीं सदी की तीस तारीख है, लिख रही हूं मैं एक चेक, 
दे रही हूं अपना योगदान, गुरु दक्षिणा के रूप में, 
अपनी आज की युवा पीढ़ी के गुरुओं के प्रति।
 
सत्तर साल के युवा भ्रष्टाचार के प्रति,
जो अब बहुत बलवान हो चुका है,
वो अच्छा आदमी अब बूढ़ा हो चला है, 
देश के पाठशालाओं में, विश्वविद्यालयों के हर कोने में, 
तस्वीरों में सज चुका है।
 
प्रात:काल के व्यस्त उलझे क्षणों में, 
मूक आत्मा के दो आंसू आंखों के कोरों से, 
रास्ता बना बाहर टपक पड़े, 
सरकती कलम ने तारीख भर दी तीस जनवरी!
 

 
2. 'बापू' फिर से जन्म लें
 
-शोभना चौरे 
 
मेरे घर के आसपास
जंगली घास का घना जंगल बस गया है।
 
मैं इंतजार में हूं,
कोई इस जंगल को छांट दे,
मैं अपने मिलने वालों से हमेशा,
इसी विषय पर बहस करता,
कभी नगर निगम को दोषी ठहराता,
कभी सुझाव पेटी में शिकायत डालता,
और लोगों को अपने जागरूक नागरिक होने का अहसास दिलाता।
 
इस दौरान, जंगल और बढ़ता गया, 
उसके साथ ही जानवरों का डेरा भी जमता गया, 
गंदगी और बढ़ती गई फिर मैं, 
जानवरों को दोषी ठहराता पत्र संपादक के नाम पत्र लिखकर। 
 
पड़ोसियों पर फब्तियां कसता (आज मैं इंतजार में हूं)।
शायद 'बापू' फिर से जन्म ले लें, 
और ये जंगल काटने का काम अपने हाथ में ले लें। 
ताकि मैं उन पर एक किताब लिख सकूं,
किताब की रॉयल्टी से मैं मेरे 'नौनिहालों' का घर' बना दूं।
 
उस घर के आसपास फिर जंगल बस गया, 
किंतु मेरे बच्चों ने कोई एक्शन नहीं लिया,
उन्होंने उस जंगल को, 
तुरंत 'चिड़ियाघर' में तब्दील कर दिया, 
और मैं आज भी शॉल ओढ़कर सुबह की सैर को जाता हूं,
'चिड़ियाघर' को भावनाशून्य निहारकर, 
पुन: किताब लिखने बैठ जाता हूं, 
क्योंकि मैं एक लेखक हूं। क्योंकि मैं एक लेखक हूं।
 

 
3. बापू हमारे देश में
 
बापू हमारे देश में
नेता हैं खादी के वेश में
प्रजातंत्र के रखवाले हैं
देश इनके हवाले है
किसान आत्महत्या करता है
शिक्षक काम के बोझ से मरता है
जनता भूख से बदहाल है
बापू देश का यह हाल है
न्याय बहरा गूंगा है
जनसेवकों ने जनता को ठगा है
जनतंत्र में भ्रष्टाचार है
हर पत्र में यही समाचार है
देश में संप्रदायवाद एवं जातिवाद है
क्षेत्रवाद एवं भाषावाद है
आतंकवाद एवं नक्सलवाद है
परिवारवाद एवं अवसरवाद है
देश में कई बेईमान है
फिर भी हमारा भारत महान है
सड़कों पर लगता जाम है
यह समस्या आम है
नाम के लिए हर कोई मरता है
काम कोई नहीं करता है
बापू आजाद भारत की यह कहानी है
यह हिंदुस्तान की जनता की जुबानी है। 
 

4. बापू जैसा लडूंगा मैं
 
- राममूरत 'राही'
 
बापू जैसा बनूंगा मैं,
राह सत्य की चलूंगा मैं।
 
बम से बंदूकों से नहीं,
बापू जैसा लडूंगा मैं।
 
जब भी कांटे घेरेंगे,
फूल के जैसा खिलूंगा में।
 
वतन की खातिर जीता हूं,
वतन की खातिर मरूंगा मैं।
 
आपस में लड़ना कैसा,
मिलकर सब से रहूंगा मैं।


5. कविता : गांधी, भारत मां की शान है
 
- डॉ. प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
 
देश की संतान है
भारत मां की शान है 
सत्य-अहिंसा हमें सिखाता 
गांधी उसका नाम है।
 
गोरों को भगाने वाला 
सबको न्याय दिलाने वाला
स्वच्छता का पाठ पढ़ाता 
गांधी उसका नाम है।           

Mahatma Gandhi  

ये भी पढ़ें
लिखे जाने से पहले ‘कविता’ लेखक की ‘आत्मा’ में गूंजती है