जयद्रथ आदि सहित अभिमन्यु के वध से युद्ध के सभी नियम टूटने के बाद बीआर चौपड़ा की महाभारत के 8 मई 2020 के सुबह और शाम के 83 और 84वें एपिसोड में बताया जाता है कि किस तरह अभिमन्यु की हत्या के बाद अर्जुन जयद्रथ का सूर्यास्त से पहले वध करने की शपथ लेता है और जब उसे पता चलता है कि जो भी उसका वध करके सिर भूमि पर गिरा देगा उसका सिर भी विस्फोट से टूकड़े टूकड़े हो जाएगा।
दोपहर के एपिसोड में अभिमन्यु की माता सुभद्रा के पास एक दासी अभिमन्यु का पत्र लेकर पहुंचती है। यह देखकर सुभद्रा प्रसन्न हो जाती है। जिसमें अभिमन्यु लिखता है कि कल युद्ध में पितामह भीष्म का आशीर्वाद मिला। पिताश्री की आंखों में गर्व के कई सूर्योदय हो गए और कहने लगे कि मैं तुममें अपना बालपन देख रहा हूं। यह पढ़कर सुभद्रा रोने लगती है।
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यह देखकर वहां सुभद्रा के पिता पहुंच जाते हैं और पूछते हैं कि क्या हुआ पुत्री? तब सुभद्रा बताती है पत्र के बारे में और कहती है कि पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगा जैसे अनगिनत बाण मेरे हृदय के आरपार हो गए हों। वहां अवश्य कोई दुर्घटना हुई है पिताश्री।
दूसरी ओर संजय से धृतराष्ट्र कहते हैं कि आज दुर्योधन ने अभिमन्यु के शव से संधि का मार्ग बिल्कुल बंद कर दिया। पांडव अभिमन्यु वध पर मेरे बचे हुए पुत्रों को कभी क्षमा नहीं करेंगे। यह रण तो मेरे वंश पर बहुत ही भारी पड़ेगा संजय।
उधर, चक्रव्यूह से दूर चले गए अर्जुन का त्रिगर्त देश के नरेशों से युद्ध चलता रहता है। वह दोनों कुमारों का वध कर देता है। तब अर्जुन कहते हैं कि अब चलिए वासुदेव। न जाने क्यूं अब मेरा मन रोने को कर रहा है। वहां अवश्य कोई दुर्घटना हुई है केशव। श्रीकृष्ण कहते हैं कि धर्मयुद्ध में धर्म की पराजय के अतिरिक्त किसी भी और होनी को दुर्घटना नहीं कहना चाहिए। यह कहकर श्रीकृष्ण रथ को युद्ध भूमि के शिविर की ओर ले चलते हैं।
इधर, एक सैनिक आकर युधिष्ठिर को सूचना देता है कि वीर अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गए। यह सुनकर युधिष्ठिर लगभग टूट जाते हैं। भीम, नकुल और सहदेव भी स्तब्ध रह जाते हैं। युधिष्ठिर कहते हैं कि हे भगवान मैं अर्जुन को कैसे समझाऊंगा?
श्रीकृष्ण और अर्जुन रात्रि में शिविर के पास पहुंचते हैं। उन्हें चारों ओर सन्नाटा नजर आता है। अर्जुन सहमे-सहमे से आगे बढ़कर एक सैनिक से पूछते हैं कि आज युद्ध में क्या हुआ? क्या महाराज युधिष्ठिर को बंदी बना लिया? सैनिक कहता है कि ऐसा तो नहीं हुआ लेकिन आचार्य द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की थी। यह सुनकर अर्जुन स्तब्ध हो जाता है। फिर अर्जुन पूछते हैं कि चक्रव्यूह पर अभिमन्यु ने तो आक्रमण नहीं किया था ना, बोलो सैनिक? सैनिक सिर झुका लेता है। यह देखकर अर्जुन दंग रह जाता है। तब दोनों तेज कदमों से शिविर की ओर जाते हैं।
शिविर में पहुंचते ही वे देखते हैं कि चारों पांडव सहित धृष्टदुम्न आदि आंखों में आंसू लिए मुंह लटकाएं बैठे हैं। अर्जुन एक-एक करके सभी को देखता है फिर उसकी नजर उस सिंहासन पर जाती है जिस पर अभिमन्यु बैठता था। वह खाली देखकर अर्जुन लगभग टूट जाता है। फिर भी वह युधिष्ठिर से पूछता है कि अभिमन्यु का स्थान रिक्त क्यों है? युधिष्ठिर कोई जवाब नहीं दे पाते हैं। अर्जुन सभी से रोते हुए यही सवाल पूछते हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं दे पाता है। तब श्रीकृष्ण उन्हें संभालते हैं और कहते हैं कि हमारा अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ है पार्थ। यह सुनकर अर्जुन दहाड़े मारकर रोने लगते हैं।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे बालक को द्रोण, कर्ण, कृतवर्मा, दुर्योधन, दु:शासन और शकुनि जैसे योद्धाओं के साथ अकेला युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ है। गर्व करो इस बात पर। तब अर्जुन कहते हैं कि किंतु केशव इस पांडव शिविर के महारथी क्या ये नहीं जानते थे कि मेरा अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं जानता है?
यह सुनकर भीम कहते हैं कि हम सब यह जानते थे अनुज। किंतु जयद्रथ नरेश ने अकेले ही हम सब को रोक लिया। तब श्रीकृष्ण कहते हैं सिंधु नरेश अकेला नहीं था अर्जुन उसके साथ महादेव का वरदान था। उसने यह वरदान पाया था कि एक दिन युद्ध में वह पार्थ के अतिरिक्त चारों भाइयों पर भारी पड़ेगा। आज का दिन उसी वरदान का दिन था। यह सुनकर अर्जुन उठता है और पूछता है कि मेरे पुत्र का शव कहां है?
श्रीकृष्ण आदि सहित सभी पांडव
दूसरे शिविर में पहुंचते हैं जहां अभिमन्यु का शव रखा होता है। जिसके आसपास द्रौपदी, उत्तरा और सुभद्रा विलाप करती हुई नजर आती हैं। तब अर्जुन वहां अभिमन्यु को छाती से लगाकर कहता है कि वत्स मैं तुम्हें वचन देता हूं कि यदि कल सूर्यास्त से पहले मैंने जयद्रथ का वध नहीं किया तो मैं अग्नि समाधी ले लूंगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण, द्रौपदी सहित सभी पांडव दंग रह जाते हैं।
फिर अभिमन्यु का दाह संस्कार करते हुए दिखाया जाता है। जहां दुर्योधन, द्रोण आदि सभी आते हैं। द्रोण के पास अर्जुन जाकर हाथ जोड़कर कहता है कि मेरे पुत्र के अंतिम संस्कार में आपका स्वागत है। पास खड़ा दुर्योधन कहता है कि इसके बाद तुम्हारा नंबर है।... अर्जुन द्रोण से पूछता है कि मेरा पुत्र आप सभी से लड़ते हुए घबराया तो नहीं था ना आचार्य द्रोण?
तब द्रोण कहते हैं कि हे कुंती पुत्र अर्जुन! आज रणभूमि में वीर अभिमन्यु जैसा और कोई योद्धा नहीं था। हममें से कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था जो उसके हाथों से घायल ना हुआ हो। ये वृद्ध ब्राह्मण तुम्हारे पुत्र को प्रणाम करने आया है। मेरे और युधिष्ठिर के बीच केवल वही था। यदि वह ना होता तो मैं युधिष्ठिर को बंदी बना चुका होता और युद्ध समाप्त हो गया होता। इसके बाद सभी अभिमन्यु के चरणों में फूल चढ़ाकर चले जाते हैं। अंत में सिंधु नरेश जब फूल चढ़ाने आते हैं तो अर्जुन चीखता है। तुम नहीं सिंधु नरेश। तुम नहीं। तुम मेरे पुत्र के शव को हाथ नहीं लगाओगे। युधिष्ठिर रोकता है, लेकिन अर्जुन जयद्रथ से कहता है महादेव की सौगंध जयद्रथ, तुम कल का सूर्यास्त नहीं देखोगे और यदि तुमने कल का सूर्यास्त देखा तो मैं अग्नि समाधि ले लूंगा।...जयद्रथ यह सुनकर वहां फूल फेंककर चला जाता है।
रात्रि के शिविर में द्रोण से मिलने के लिए जयद्रथ आता है और अर्जुन की शपथ की बात करता है। तब द्रोण कहते हैं कि तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। इधर, शकुनि बताता है कि जयद्रथ के साथ उसके पिता का श्राप भी चल रहा है। तब शकुनि जयद्रथ की कथा सुनाते हैं।
जयद्रथ ने एक दिन तपोवन में अपने पिता के चरण स्पर्श किए और कहा कि मुझे वो आशीर्वाद दीजिए पिताश्री जो शांतनु ने गंगा पुत्र भीष्म को दिया था। तब उनके पिता कहते हैं कि न तुम गंगा पुत्र हो और न मैं शांतनु। मैं तुम्हें इच्छामृत्यु का वरदान नहीं दे सकता, किंतु मैं तुम्हें एक श्राप का कवच अवश्य पहना सकता हूं। हे पुत्र जो तेरे कटे हुए सिर को भूमि पर गिराने का कारण बनेगा उसके सिर में उसी समय एक विस्फोट होगा जो उसकी मृत्यु का कारण बनेगा।
शकुनि यह शाप कथा सुनाकर कहता है कि इसलिए इस युद्ध का कल तो अंतिम दिन है। यदि अर्जुन जयद्रथ का वध न कर पाया तो वह अग्नि समाधी ले लेगा और यदि कर दिया तो उसका सिर फूट जाएगा। इसलिए कल का दिन तो शुभ ही शुभ है भांजे।... तभी वहां सिंधु नरेश आ जाते हैं और वे कहते हैं कि मैं तो आज ही सिंधुदेश जाने की सोच रहा हूं। तब शकुनि कहते हैं कि ये आप क्या कह रहे हैं? आपकी सुरक्षा के लिए कल पूरी कौरव शक्ति अर्जुन के बाणों से बचाने में लगेगी। दुर्योधन भी सिंधु नरेश को समझाता है। सिंधु नरेश का विचार बदल जाता है।
शाम के एपिसोड कर शुरुआत गांधारी और कुंती के दु:खपूर्ण वार्तालाप से होती है। दोनों मिलकर एक-दूसरे को सांत्वना देते हैं। इधर, अर्जुन रात्रि में एक बार फिर भीष्म पितामह के पास जाते हैं और वे अभिमन्यु वध की बात बताते हैं। दूसरी ओर द्रौपदी समझाती है उत्तरा को अपने गर्भ में पल रहे शिशु को संभालों। तुम सो जाओ पुत्री।
अगले दिन के युद्ध में अर्जुन कहते हैं कि हे वासुदेव आप मुझे जयद्रथ की ओर ले चलें। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज तो सभी महारथी उनकी सुरक्षा में लगे हैं। तुम कैसे उन तक पहुंच पाओगे पार्थ? तुम भरतवंशियों को प्रतिज्ञाएं करने में इतनी रुचि क्यों है? जयद्रथ का वध आवश्यक है किंतु इसके लिए तुम्हें प्रतिज्ञा में बंधने की जरूरत नहीं थी। अब तुम्हारी आंखें लक्ष्य से अधिक सूर्य पर होगी। अर्जुन कहता है कि लेकिन अब तो मैं शपथ ले चुका केशव।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज जयद्रथ आचार्य द्रोण के कमल व्यूह के भीतर है जो यहां से 12 कोस की दूरी पर है। अर्जुन कहता है कि आप मुझे जयद्रथ की ओर ले चलिए।
इधर, धृतराष्ट्र
कहते हैं कि ये कैसी शपथ ले ली अर्जुन ने। फिर वे कहते हैं कि ये युद्ध तो देवकीनंदन कृष्ण करवा रहे हैं संजय।
उधर, अर्जुन द्रोण की सेना पर घातक हमला करते हुए कमल व्यूह तोड़कर सिंधु नरेश की ओर बढ़ता है। यह देखकर दुर्योधन द्रोण के पास जाता है और उनके सामने चिंता व्यक्त करता है और कहता है कि जाइये आप सिंधु नरेश की सुरक्षा कीजिए। द्रोण कहते हैं कि मैं यहां रुककर अब युधिष्ठिर की प्रतिक्षा करूंगा क्योंकि इस समय अर्जुन उसके साथ नहीं है। इसलिए उसे बंदी बनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। इसलिए सिंधु नरेश की रक्षा के लिए तुम जाओ। यह सुनकर दुर्योधन वहां से चला जाता है।
उधर, श्रीकृष्ण रथ रोकते हुए कहते हैं कि मेरे अश्व थक गए हैं पार्थ और थके हुए अश्व तुम्हारे रथ को विजयश्री की ओर नहीं ले जा सकते। यह कहते हुए श्रीकृष्ण रथ से उतर जाते हैं और अपने अश्व को सहलाने लगते हैं। अर्जुन भी रथ से उतरकर घबराकर कहते हैं कि परंतु केशव अब सूर्यास्त को बहुत देर नहीं है केशव। श्रीकृष्ण कहते हैं हां तो अब क्या करें।
तभी वहां दुर्योधन आकर अर्जुन को सावधान कर देता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि दुर्योधन अर्जुन अभी अपने रथ पर नहीं है। और युद्ध के जो नियम बने थे उसमें से एक नियम यह भी था कि किसी पैदल पर कोई महारथी आक्रमण नहीं करेगा।
तब दुर्योधन कहता है कि वो नियम पितामह ने बनाए थे मैंने नहीं वासुदेव। मेरे नियम यह है कि शत्रु जहां मिले, जैसा भी मिले उसका वध कर देना चाहिए। ऐसा करके वह तीर छोड़ने लगता है। यह देखकर अर्जुन रथ से अपना धनुष निकालकर वह भी तीर छोड़ने लगता है और दुर्योधन को घायल कर देता है।
फिर अर्जुन और श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर वहां से निकल जाते हैं। तब रास्ते में श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसका ध्यान रखना पार्थ की जयद्रथ का सिर कटकर भूमि पर ना गिर जाए। उसके पिता का यह वरदान था कि जो उसका सिर काटकर भूमि पर गिरा देगा स्वयं उसके सिर में विस्फोट होगा और वह टूकड़े-टूकड़े हो जाएगा। इसलिए ऐसा वाण चलाना पार्थ कि जयद्रथ का सिर कटकर उसके पिता की ही गोदी में गिर जाए। यही उसकी मुक्ति का मार्ग है। अर्जुन कहता है कि ऐसा ही होगा केशव।
तभी श्रीकृष्ण शंख बताते हैं। यह शंख की आवाज सुनकर जयद्रथ कहता है कि यह दुर्योधन भी आज मेरा वध करवाए बिना मानेगा नहीं। वह सैनिकों को आदेश देता है कि आप लोग अर्जुन का रथ रोको। फिर जयद्रथ आसमान में देखकर कहता है कि यह सूर्यास्त क्यों नहीं हो सकता।
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