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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 6 जनवरी 2023 (19:07 IST)

2023 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में ‌‌‌‌जाति की राजनीति को साधने में जुटे शिवराज और कमलनाथ

2023 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में ‌‌‌‌जाति की राजनीति का साधने में जुटे शिवराज और कमलनाथ - Shivraj and Kamal Nath engaged in caste politics in 2023 Madhya Pradesh assembly elections
भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनावी साल का आगाज होते ही सियासी दलों ने कास्ट पॉलिटिक्स शुरु कर दी है। 2023 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस में जातियों को रिझाने की होड़ लग गई है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने जहां भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर राजपूत समाज के सम्मेलन का आयोजन किया तो दूसरी सतना में विपक्षी दल कांग्रेस ओबीसी समाज का सम्मेलन कर एक बड़े वोट बैंक को लुभाने की कोशिश की। 
 
दरअसल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की सियासी चौसर पर अब जातिगत और समुदाय विशेष की राजनीति केंद्र में आ गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल जातियों को रिझा कर  अपने वोट बैंक को मजबूत कर 2023 की चुनावी नैय्या पार लगाने की कोशिश कर रहे है।

भोपाल में राजपूत समाज का सम्मेलन-
चुनावी साल में वोट बैंकं को साधने के लिए  गुरुवार को राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर राजपूत समाज के सम्मेलन का आयोजन किया गया। राजपूत समाज के सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजपूत समाज की कई मांगों को पूरा करते हुए कई बड़ी घोषणाएं की। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने महाराणा प्रताप की जयंती पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश करने का एलान किया। इसके साथ भोपाल के मनुआभान की टेकरी पर रानी पदमावति की मूर्ति स्थापित करने के लिए भूमिपूजन भी किया। दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री निवास पर राजपूत समाज का सम्मेलन ऐसे समय किया गया जब 8 जनवरी को भोपाल में करणी सेना ने जंबूर मैदान में बड़ा सम्मेलन करने का एलान कर ऱखा है।
 
सतना में कांग्रेस का ओबीसी सम्मेलन- 
मध्यप्रदेश में सत्ता वापस पाने के लिए कांग्रेस ने ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए सतना में ओबीसी सम्मेलन किया। सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि मैं वचन देता हूं कि जब भी हमारी सरकार केंद्र में आएगी तब हम संविधान संशोधन करके पिछड़ा वर्ग की सही जनगणना करवाएंगे और पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करवाएंगे। कमलनाथ ने कहा कि उन्होंने मध्यप्रदेश में अपनी सरकार के दौरान पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिया था लेकिन भाजपा जानबूझकर कोर्ट में मामले को ले गई और पिछड़ा वर्ग को आऱक्षण का लाभ मिलने में रूकावट की। 

दरअसल मध्यप्रदेश में ओबीसी वोट बैंक पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। वर्तमान में प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। वहीं मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79  प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटर 2023 विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका निभाने जा रहे है। 

उमा भारती का बयान चर्चा में- 
मध्यप्रदेश में चुनावी साल में गर्माई जाति की राजनीति में पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के एक बयान ने भी खूब सर्खियों बटोरी थी। भोपाल में लोधी समाज एक कार्यक्रम में उमा भारती ने कहा कि चुनाव में मेरी सभाएं होगी, पार्टी के मंच पर आऊंगी, लोगों का वोट मांगूगी, लेकिन मैं यह नहीं कहूंगी की लोधियों तुम भाजपा को वोट करो। उमा भारती ने आगे कहा कि अगर आप पार्टी के कार्यकर्ता नहीं है, अगर आप पार्टी के वोट नहीं है तो आपको सारी चीजों को देखकर ही अपने बारे में फैसला करना है। यह मानकर चलिए कि प्यार के बंधन में तो हम बंधे हुए हैं, लेकिन राजनीतिक बंधन से मेरी तरफ से पूरी तरह से आजाद हैं।
 
आदिवासी वोटर बनेगा गेमचेंजर?- 
ओबीसी के साथ विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी वोटरों को रिझाने में भाजपा और कांग्रेस दोनों एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। दरअसल मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोटर  गेमचेंजर साबित होता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। 
दलित लगाएंगे बेड़ा पार?- 
मध्यप्रदेश में दलित राजनीति इस समय सबसे केंद्र में है। छिटकते दलित वोट बैंक को अपने साथ एक जुट रखने के लिए भाजपा लगातार दलित नेताओं को आगे बढ़ रही है। बात चाहे बड़े दलित चेहरे के तौर पर मध्यप्रदेश की राजनीति में पहचान रखने वाले सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शामिल करना हो या जबलपुर से सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा भेजना हो। भाजपा लगातार दलित वोटरों को सीधा मैसेज देने की कोशिश कर रही है।
 
दरसल मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) के लिए 35 सीटें रिजर्व है। वहीं प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते है। मध्यप्रदेश में 17 फीसदी दलित वोटर बैंक है और विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के साथ यह वोट बैंक एकमुश्त जाता है वह सत्ता में काबिज हो जाती है।

भाजपा में संभावित बदलाव में भी जाति फैक्टर-मध्यप्रदेश में चुनावी साल में भाजपा में होने वाले संभावित बदलाव पर भी जाति की राजनीति का असर दिखाई देने की पूरी संभावना है। जनवरी के दूसरे पखवाड़े में सरकार और संगठन में होने वाले संभावित बदलाव में आदिवासी या ओबीसी चेहरों का दबदबा देखने को मिल सकता है।