सोमवार, 28 अप्रैल 2025
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OMG! इस समाजसेवक के पास हैं इतनी डिग्रियां...

Alok Sagar
- कीर्ति राजेश चौरसिया 

देशभर में इन दिनों एजुकेशन मार्कशीट डिग्री को लेकर विवाद चल रहा है। कभी देश के प्रधानमंत्री मोदी, तो कभी मानव संसाधन विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी, तो कभी किसी राज्य के मंत्री, विधायक डिग्रियों की चर्चाओं में रहते हैं और मुद्दों का बाजार गर्म रहता है! लोगों में डिग्रियों को लेकर होड़ मची हुई है। लेकिन एक ऐसा भी शख्‍स है जो अपनी योग्‍यता (डिग्री) को छुपाकर लोगों की सेवा करने में लगा हुआ है। 
मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में रहने वाले आलोक सागर एक ऐसे शख्स हैं, जो अपनी योग्यता (डिग्री) छुपाकर लोगों की सेवा करने में लगे हुए हैं, आप अगर इनके और इनकी डिग्रियों के बारे में जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे!
 
 आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर आलोक सागर जनजातियों के बीच अपनी योग्यता (डिग्रियां) छुपाकर रह रहे हैं। उन्होंने आज 32 वर्ष बाद अपनी योग्यता का ब्‍योरा तब दिया, जब उन्हें पुलिस ने थाने बुलाया। 
 
सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग मोदी की मानें तो मूलत: दिल्ली के रहने वाले आलोक सागर पिछले 32 वर्षों से बैतूल और होशंगाबाद जिले के जनजातीय गांव में गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहे हैं।
 
आलोक सागर ने 1990 से बैतूल जिले के जनजातीय गांव कोचामाऊ को अपना बसेरा बनाया हुआ है, वे यहां जंगलों को सुन्दर और हराभरा करने में लगे हुए हैं। 
 
बैतूल जिले की घोडाडोंगरी विधानसभा में उप चुनाव होने वाले हैं, इस दौरान पुलिस सुरक्षा के मद्देनजर इस बात का पता कर रही है कि संबंधित क्षेत्र में कोई बाहरी और असामाजिक व्यक्ति तो नहीं रह रहा है। और इसी के मद्देनजर शाहपुरा थाने की पुलिस ने आलोक सागर को सोमवार को थाने बुलवा भेजा और पुलिस ने सागर को गांव छोड़ने को कहा साथ ही चेतावनी दी कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे और नहीं गए तो उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा।
 
आलोक सागर ने बताया कि उन्होंने सन् 1973 में आईआईटी दिल्ली से एमटेक किया, 1977 में ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी टेक्सास, अमेरिका से शोध डिग्री ली। इसके अलावा टेक्सास यूनिवर्सिटी से पोस्ट डॉक्टरेट की तथा डलहौजी यूनिवर्सिटी, कनाडा में फेलोशिप की है। उन्होंने 1982 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में प्रोफेसर की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया।
 
आलोक सागर ने बताया कि वे जनजातियों के बीच काफी अरसे से काम कर रहे हैं और आज 32 वर्ष बाद पहली बार ऐसा मौका आया है, जब उन्हें अपनी शैक्षणिक योग्यता का हिसाब देना पड़ा है। 
 
तो वहीं शाहपुरा थाने के प्रभारी राजेंद्र धुर्वे का कहना है कि विकासखंड की बैठक में यह बात सामने आई थी कि कोचामाऊ में एक अनजान वृद्ध व्यक्ति कई वर्षों से रहता है, जिसकी किसी को कोई सटीक जानकारी नहीं है और इसी के चलते उन्हें बुलाया गया था, मगर वे अपना पहचान पत्र तक नहीं दिखा पाए। 
 
उन्होंने अपने को जहां का निवासी बताया और पता दिया है, उसकी तस्दीक की जा रही है। उन्होंने अपनी कोई डिग्री या शैक्षणिक दस्तावेज भी पुलिस को अब तक नहीं दिखाया है। मामले में जांच की जा रही है, जो भी होगा माजरा सामने आएगा।