इस शहर को संस्कार ही नहीं है कि वो अपने वर्तमान की नींव को जाने, सिर्फ खोखले बैनरों में खुश रहता है। ऐसा शहर कभी सच्चा साहित्य स्तंभ या महानगर नहीं हो सकता।
इस विशेष अवसर पर मेरा अखिल भारतीय मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति के संस्थापक (जिनके नाम पर अब फीडर रोड हो गई है) एवं हिन्दी साहित्य को अपना मूक योगदान देने वाले नगर की महान गुमनाम विभूतियों को मेरा नमन।
मैं किसी के नाम नही बता सकता क्योंकि इस भावहीन नगर में उनका अपमान नहीं चाहता। -अनुराग, मनोरमागंज (इंदौर)