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Last Updated : बुधवार, 15 नवंबर 2023 (15:22 IST)

आरक्षण, मुफ्त की रेवड़ी से लेकर बेरोजगारी तक, आज की राजनीति पर क्‍या कहते हैं युवा?

आरक्षण, मुफ्त की रेवड़ी से लेकर बेरोजगारी तक, आज की राजनीति पर क्‍या कहते हैं युवा? - What do the youth say about today politics?
- जसकीन कौर सलूजा
मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनावों का शोर है, ऐसे में राजनीति, नेता, नेताओं के चरित्र और चुनावी घोषणाओं व योजनाओं को लेकर भी बहस चल रही है। इस चुनाव में आरक्षण, शिक्षा, बेरोजगारी और मुफ्त की रेवड़ी जैसे विषय चर्चा में है। ऐसे में वेबदुनिया ने युवाओं से जानने की कोशिश की कि आखिर आज के युवा वर्तमान राजनीति, नेताओं की चुनावी घोषणाएं और राजनीति से जुड़े तमाम मुद्दों पर क्‍या सोचते हैं। जानते हैं क्‍या कहते हैं युवा।
swarnika bhati
लड़कियां राजनीति में आएंगी तो उनकी नेतृत्‍व क्षमता पता चलेगी
स्वर्णिका भाटी ने वेबदुनिया को बताया कि आज का युवा दो भागों में विभाजित है। एक जिसे राजनीति से जुड़ना है उसमे भविष्य देखना चाहता है और दूसरी और एक ऐसा समूह जिसे राजनीति से कोई मतलब नहीं, उसे राजनीति का कोई ज्ञान नहीं। वह बॉलीवुड सेलिब्रिटीज की पूरी जानकारी रखता है, लेकिन कोई नेता क्या कार्य करता है, देश में कौनसी नई योजना आई है उस पर वह अल्पज्ञ है। लेकिन युवा सरकार से अपना हित जरूर चाहता है, वह चाहता है की उसे पढ़ाई में छात्रवृत्ति मिले, समय आने पर सही काम मिले, और परीक्षाएं समय से हो तथा उनमें पारदर्शिता हो।

कुछ लोगों का मानना है कि राजनीति लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है लेकिन मेरा मानना है कि जब तक लड़कियां खासकर युवा लड़कियां राजनीति में नहीं उतरेंगी तब तक उनकी नेतृत्व क्षमता समाज को पता नहीं चलेगी। मां अहिल्या उदाहरण है कि महिलाएं बेहतर शासक बन कर उभरी हैं, रही बात सुरक्षा की तो यदि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं राजनीति में आएंगी तो सुरक्षा को लेकर उठ रहा सवाल ही खत्‍म हो जाएगा।

सरकारी योजनाएं लोगों को लुभाने का जरिया
गिरिजा वाधवानी ने बताया कि आज का युवा यह सोचता है कि अपना बहूमूल्य मत उन्हीं को देना चाहिए जो केवल चुनावी मौसम में नजर ना आए जो सदैव अपनी जनता के बीच सक्रिय रहकर उनके हित के लिए कार्य करें।
आज की राजनीति ड्रामेटिक्स से काफी प्रभावित है, आजकल की राजनीति में इमोशनल टच ज्यादा देखने को मिलता है, कोई लाडली बहन का नाम लेकर अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहता है तो कोई मामा बनकर अपने प्रदेश पर राज करना चाहता है। आज के लीडर्स टेक्नोलॉजी फ्रेंडली होने के साथ ही ऑन द स्पॉट प्रहार करने वाली राजनीति पर ज्यादा विश्वास करते हैं। सरकारी योजनाएं लोगों को लुभाने का एक अच्छा जरिया बन गई हैं, जिसके द्वारा जनता को उसे योजना का फायदा तो होता ही है साथ ही साथ राजनीतिक पार्टी और राजनेताओं का प्रमोशन माउथ पब्लिसिटी के द्वारा बहुत आसानी से हो जाता है।
girija wadhwani
रील्‍स या रियल की राजनीति : गिरिजा ने बताया कि आज के युवाओं को ऐसी राजनीति चाहिए जो केवल पैसों तक सीमित ना रहे। अगर कोई पार्टी 1250 रुपए दे रही है तो दूसरी पार्टी कहती है कि हमारी सरकार आने पर हम 1500 तो ये न सिर्फ युवाओं के लिए अपितु पूरे राष्ट्र के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। आज के नेता इस प्रकार के होने चाहिए जो युवाओं की मूलभूत सुविधाओं को प्रदान करने साथ ही ऐसी योजनाओं को लागू करें जो युवाओं के बेहतर भविष्य निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में भी मदद करें।

वास्तविक रूप से आज जरूरत है उसे बदलाव की जिसके लिए जनता अपना बहुमूल्य मत एक प्रत्याशी पर विश्वास करके देती है। अगर जनता किसी प्रत्याशी को चुन रही है तो उस प्रत्याशी का सर्वप्रथम दायित्व होता है कि वह प्रत्येक मत का सम्मान करते हुए जनहितैषी नीतियों द्वारा प्रत्येक जन का कल्याण करें। आज बदलाव है असत्य की राजनीति से सत्य की राजनीति पर जाने की, आज जरूरत है रील की राजनीति से रियल की राजनीति की तरफ जाने का।

नेताओं को PR टीमों ने भगवान बना दिया
प्रथमेश व्‍यास ने बताया कि आज की राजनीति पहले से कहीं ज्यादा जटिल और बनावटी हो चुकी है। नेताओं को उनकी PR टीमों ने भगवान बना रखा है। आज युवा सोशल मीडिया के कॉमेंट सेक्शन में अपने विचार रख रहा है। वहां जो जनमत मिलता है, उससे सटीक कोई मीडिया हाउस, कोई सर्वे नहीं दे सकता। पार्टियों ने धर्म को हथियार बना लिया है। सभाओं में नेताओं द्वारा राम, रावण, हनुमान से लेकर धृतराष्ट्र, अहिरावण तक के उदाहरण दिए जा रहे हैं। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जहां मतदाता बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार आदि मुद्दों से हटकर धर्म रक्षा की सोच रहा है।
prathmesh vyas
नेता पढ़ा लिखा हो तो अच्छा। अश्विनी वैष्णव, नितिन गडकरी, सुब्रण्यम, जयशंकर आदि पढ़े-लिखे हैं, इसलिए इनका काम बोलता है। हर नेता के लिए स्नातक कंपलसरी हो। नामांकन दाखिल करने से पहले चुनाव समिति उनका भी इंटरव्यू ले। इन सबसे बढ़कर एक बात, मतदाता पार्टी, हिंदुत्व, प्रधानमंत्री का चेहरा इत्यादि से हटकर प्रत्याशी को जानकर वोट डाले।

प्रथमेश कहते हैं कि नेता 5 वर्षों के कार्यकाल में काम करता नहीं है। इसलिए चुनाव के पूर्व पैसे बांटने पड़ते हैं। लाड़ली बहना योजना बुरी नहीं हैं। लेकिन, जिस तरह लागू की गई, वह सरकार की नीयत साफ दर्शाता है। आय प्रमाण पत्र नहीं मांगे गए, कई समृद्ध परिवार की महिलाओं ने भी लाभ उठा लिया। इसी रथ पर कांग्रेस भी सवार हो गई, 1500 देने की घोषणा कर दी।

मध्यप्रदेश 4 लाख करोड़ कर्ज़ में दबा : युवा नौकरी के लिए आंदोलन करने लगे, तो सीखो कमाओ योजना निकाल दी। और इन योजनाओं का प्रचार PR टीम और इनफ्लूएंसर्स को पैसे देकर ऐसा करवाया कि जनता सोचे कि इससे बेहतर कुछ है ही नहीं। इन्ही मुफ्त की रेवड़ियों के चलते मध्यप्रदेश करीब 4 लाख करोड़ के कर्ज़ में दबा हुआ है। नेताओं की गाड़ियों के पेट्रोल, उनकी सभाओं, सोशल मीडिया के पोस्टरों- रीलों पर जितना खर्च हो रहा है, उतने में कई अस्पताल, स्कूल बनकर खड़े हो जाएं।

मेरिट से समझौता करोगे तो पुल गिरेंगे : जहां तक बात राजनीति की है तो मैंने अपने स्कूल या कॉलेज में किसी लड़की को ये कहते नहीं सुना कि उसे राजनीति में जाना है। क्योंकि राजनीति इतना सॉफिस्टिकेटेड प्रोफेशन नहीं है। इतनी गंध मची है, इसलिए सेफ भी नहीं कह सकते। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को उनके पति महिला सीट के चलते टिकट दिलवा तो देते हैं, लेकिन राज वे ही करते हैं। दिनभर चूल्हा- चौका संभालने वाली गृहिणी क्या जाने योजना और उनके क्रियान्वयन के बारे में? लेकिन, फिर महिलाओं का राजनीति में आना देश के लिए वरदान है।
अंत में, आरक्षण पर अगर कहूं तो बस इतना ही कि पढ़ाई में दो, नौकरियों में नहीं। मेरिट से समझौता करोगे तो पुल गिरेंगे, ट्रेनें पटरी से उतरेंगी और काम का स्तर गिरेगा।

जाति नहीं, आर्थिक स्थिति पर तय हो आरक्षण
श्रद्धा पाटीदार ने बताया कि आरक्षण कई मायनों में सही साबित हुआ है लेकिन कहीं ना कहीं बदलते दौर के साथ आरक्षण के नियमों में बदलाव भी जरूरी है। आज भी अगर देखा जाए तो नीची जाति या एससी-एसटी वर्ग के लोगों के साथ उसी प्रकार का भेदभाव होता आ रहा है जैसा कि देश की आजादी से पहले होता था। और अब इस भेदभाव ने एक नया चेहरा भी ले लिया है गरीबी और अमीरी का। जहां पहले ज्यादातर जात-पात के नाम पर भेदभाव किया जाता था, आज अमीर गरीबों के साथ भी भेदभाव कर रहे हैं। इसलिए अब आरक्षण को जात-पात तक सीमित न रखते हुए, एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर नियमों में बदलाव किए जाने चाहिए।
shradhha patidar
श्रद्धा बताती हैं कि वहीं अगर हम बात करे महिलाओं के राजनीति में हिस्सेदारी की तो जब देश की आधी आबादी महिलाएं हैं तो देश की राजनीति में भी महिलाओं की बराबर भागीदारी होनी चाहिए। मगर जब बात ज़मीनी हकीकत की आती है तो कईं बार महिलाओं को राजनीति के मामले में सक्षम नहीं समझा जाता। यह भी देखा गया है की कई महिलाएं चुनाव जीतने के बाद केवल कागज़ी तौर पर ही बागडोर संभाले होती हैं, लेकिन असल में राजनैतिक मुद्दों पर विचारों से लेकर हर छोटा बड़ा फैसला उनके पति या पिता द्वारा लिया जाता है। अब ऐसी स्थिति को जानने के बावजूद अगर कोई महिला अपने कदम आगे बढ़ती है तो उसे असक्षम ठहराया जाता है। मगर अब इस देश की युवा नेता सक्षम और तैयार है देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान देने के लिए और आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए।
Edited By : Navin Rangiyal
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