जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन...
दादामुनि, अशोक कुमार ने अपने जीवन में पत्नी के अलावा सिर्फ नलिनी जयवंत से प्यार किया था। अपने घर की छत पर दूरबीन लेकर वे नलिनी को दूर से क़रीब महसूस किया करते थे। इस जोड़ी ने साथ-साथ कई फिल्में कीं। समाधि, संग्राम, नाज, मि. एक्स साथ-साथ बेशुमार फिल्में और परवान चढ़ता प्यार। फ़ासले भी सड़कों से लिपटे सफर की तरह थे, जो किसी रिश्ते के बिना भी, किसी मंजिल की तलाश के बिना भी सिमटे-सिमटे मुसा़फिर बने रहे। आखिरकार पत्नी शोभा देवी की ख़ातिर अशोक जी को अपने इश्क का, अपने सफर कर रुख मोड़ना पड़ा, एक अजनबी ख़ामोशी को ओढ़ना पड़ा। वो अफ़साना, जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।