भ्रष्टाचार है और कहीं नहीं है
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अनिमेष चतुर्वेदी
प्रदेश के नए-नए बने शिक्षा मंत्री, हाल ही में आवंटित विशाल शासकीय आवास के बगीचे में अपनी पहली सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे। हाथ बाँधे दो सेवक तथा बिस्कुटों की प्लेट थामे पीए साहब सेवा में उपस्थित थे।‘बंगले में आपकी पहली सुबह मुबारक हो मंत्री जी।’ पीए साहब ने बिस्कुटों की प्लेट पेश की ही थी कि बाहर से ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद की एकल आवाज़ें सुनाई दीं। प्रश्नवाचक मुद्रा में मंत्री जी की भवें तनते पीए 'अभी देखता हूँ सर' कहते हुए मेन गेट की ओर झपटे, लेकिन पास आते हुए संतरी को देख रुक गए।‘बाहर एक आदमी नारे लगा रहा है सर।’ सलाम ठोकते हुए संतरी ने निवेदन किया।‘सर कहें तो साढ़े दस बजे बुलवा......’ पीए ने कहना चाहा।‘अकेला ही है?’ उनकी बात पूरी होने के पहले ही मंत्रीजी ने संतरी से पूछा।‘जी हाँ सर, अकेला ही है और एक पोस्टर भी उठाए हुए है, अँग्रेज़ी में लिखा है - रेमोवे करक्सन, या ऐसा ही कुछ।’‘रिमूव करप्शन’ बाहर झाँकते हुए पीए ने बताया।‘अच्छा तो बंद भ्रष्टाचार हटवाने आया है, वो भी अँग्रेज़ी में ? नए बंगले का पहला मुलाक़ाती है, भई बुलाओ।’ हँसते हुए मंत्री जी बोले। संतरी तुरंत आदेश का पालन करने दौड़ गया। मसले हुए से कपड़े पहने दो-तीन दिनों की बढ़ी दाढ़ी वाला युवक सामने प्रस्तुत हुआ। |
‘बंगले में आपकी पहली सुबह मुबारक हो मंत्री जी।’ पीए साहब ने बिस्कुटों की प्लेट पेश की ही थी कि बाहर से ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद की एकल आवाज़ें सुनाई दीं। प्रश्नवाचक मुद्रा में मंत्री जी की भवें तनते पीए 'अभी देखता हूँ सर' कहते हुए मेन गेट की ओर झपटे। |
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‘कहो भाई कैसे आना हुआ।’ मंत्री जी का मुलायम स्वर सुनाई दिया।‘बहुत करप्शन है सर, इसे हटवाइए’, लगभग दाँत पीसते से युवक ने कहा।‘जहाँ तक भ्रष्टाचार का सवाल है, तो भाई वह तो सब जगह है और कहीं नहीं है।’ मुस्कुराते हुए मंत्री जी ने जवाब दिया।‘म-मैं समझा नहीं सर’, उलझे स्वर में युवक बोला।‘सभी समझदार लोग यह समझते हैं।’ मंत्री जी कुछ गंभीर हुए।‘अच्छा इसे छोड़ो, बताओ तुम कहाँ से आए हो।’‘जी, उज्जैन से आया हूँ।’ उसने लड़खड़ाता उत्तर दिया।‘बिना टिकट आए हो?’ प्रति प्रश्न हुआ।‘सुबह की पहली बस से ये टिकट लेकर आया हूँ सर।’ जेब से टिकट निकालते हुए कुछ गुस्से से युवक बोला।‘तुम इतनी परेशानी उठाकर, उज्जैन से यहाँ मुझे ये बताने आए हो कि बहुत करप्शन है? बेकार बातें छोड़ो और सीधे-सीधे अपनी प्रॉब्लम बताओ।’ गंभीर मुद्रा में आदेश हुआ।
युवक घबरा गया और अपना आवेदन-पत्र सामने रखकर मशीनी अंदाज़ में शुरू हो गया।‘सर मैं ग्रेजुएट हूँ। मैंने वहाँ अमुक ओपन यूनीवर्सिटी फ़ैकल्टी में एल.डी.सी. के पद के लिए आवेदन किया है। लेकिन रजिस्ट्रार साहब के पीए ने कहलाया है कि नौकरी चाहिए तो साहब को दस हजार देने पड़ेंगे।’‘दस हजार ? बस ? एल.डी.सी. के पद के लिए तो कम ही हैं, दो दो।’‘बहुत गरीब हूँ सर, पिताजी मजदूरी करते हैं और मैं ट्यूशन। मैं दस हजार रुपए इकट्ठे नहीं कर सकता सर।’ दयनीय मुद्रा में हाथ जोड़े युवक बोला।‘तो ऐसा कहो कि नौकरी चाहिए और पैसे नहीं हैं। बेकार करप्शन की बातें करते हो। मेरे साथ आओ।’ अपना प्याला रखकर मंत्री जी अंदर चल दिए और सभी उनके पीछे हो लिए।अपने भव्य आवासीय ऑफिस में पहुँचकर अपनी कुर्सी की पुश्त पर प्यार से हाथ फेरते हुए मंत्री जी मुड़े और युवक से पूछा, ‘ये कालीन देख रहे हो?’‘जी सर,’ नीचे बिछे शानदार लाल कालीन को देखते हुए युवक बोला।‘जानते हो ये कितने का है?’‘पता नहीं, पर बहुत ही मँहगा लगता है सर’, युवक के लिए अंदाज़ लगाना भी मुश्किल था।‘ठीक कहा। अच्छा, तुम अपने रजिस्ट्रार साहब को जानते हो?’‘जी हाँ सर, मैं तो उनका स्टूडेन्ट भी रहा हूँ।’‘बहुत अच्छे। सुनो, इस पर रखी टेबल उठाकर कोने में रख दो।’‘जी,’ सकपकाए युवक ने चुपचाप टेबल हटा दी।‘इस कालीन को लपेट लो।’‘जी?’ इस बार युवक अचकचा गया‘डरो नहीं, इसे गोल लपेट लो।’ मंत्री जी के कहेनुसार युवक ने कालीन लपेट लिया।‘अब इसे उठाकर अपने कंधे पर रख लो।’ युवक ने चुपचाप आदेश का पालन किया। पीए तथा सेवकगण भी हतप्रभ, लेकिन चुप थे।
‘अब ध्यान से मेरी बात सुनो। इस कालीन को लेकर उज्जैन जाओ और सीधे रजिस्ट्रार के घर पहुँचो। वहाँ जाकर ये कालीन उनके सामने बिछा देना, फिर उनके पैर छूकर कहना कि ये उनके लिए उपहार है। तुम्हारे रजिस्ट्रार की सात पुश्तों ने भी इतना महँगा कालीन नहीं देखा होगा। बस तुम्हें नौकरी मिल जाएगी।’‘जी-सर।’ हामी भरते युवक की आँखों में चमक उभर आई।‘तुम्हारा नाम-पता तो ये रहा।’ युवक का आवेदन देखते हुए मंत्री जी बोले। ‘अपने रजिस्ट्रार का भी नाम-पता हमारे पीए को नोट करवा दो, और नौकरी मिलते ही इन्हें फोन करके बता देना। अब जाओ।’ उसका आवेदन अपने पीए के हवाले करते हुए मंत्री जी मुड़े और बंगले के भीतर चले गए।‘चलो, बाहर हमारे ऑफिस में’, पीए बोले। कालीन उठाए युवक उनके पीछे चल दिया।मंत्री जी के कहेनुसार युवक सीधा उज्जैन स्थित रजिस्ट्रार के बंगले पर पहुँचा और उनके सामने कालीन बिछाकर उनके पैर छूकर खड़ा हो गया।‘अरे, तुम कौन हो और ये सब क्या है? रजिस्ट्रार ने शानदार कालीन को ललचाई नजरों से देखा। ‘हमें कोई कालीन-वालीन नहीं खरीदना है भैया।’‘है बहुत ही खूबसूरत’, वैसी ही ललचाई आँखों से कालीन देखते हुए पास बैठी उनकी श्रीमती जी के मुँह से निकला। ‘कितने का है?’‘युवक ने तुरंत मैडम के पैर भी छुए और हाथ जोड़कर रजिस्ट्रार से कहा- ‘सर मैं राकेश, बी.एस.सी. में आपका स्टूडेंट था। यह तो आपके लिए गुरु-दक्षिणा लाया हूँ।’‘अरे वाह ! बैठो-बैठो बेटा’, रजिस्ट्रार की मुद्रा एकदम प्रेमपूर्ण हो गई। अरे सुनती हैं, बच्चा इतना भारी बोझ उठाकर लाया है, कुछ चाय-वाय तो...’‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप लोग आराम से बैठें।’ कालीन पर नजरें जमाए श्रीमती जी उठीं और फौरन भीतर चली गईं।‘अरे बेटा राकेश, अब ये सब तकलीफ करने की क्या जरूरत थी। कहो, कुछ काम-वाम है क्या ?’ नकली बत्तीसी दिखाते हुए रजिस्ट्रार बोले।‘जी सर, वो एल.डी.सी. की वैकेन्सी के लिए मैंने भी एप्लाय किया है। यदि आपकी कृपा हो जाए...’ युवक ने भी हाथ जोड़कर असली दाँत निपोर दिए।‘अरे कल ही ऑफिस आकर अपाइन्टमेंट लेटर ले लो, और ऊपर वाले का नाम लेकर सोमवार से जॉइन करो।’ युवक तुरंत उनके पैरों में लोट गया। चाय-नाश्ते की ट्रे लिए नौकर के साथ आती श्रीमती जी एवं रजिस्ट्रार की नजरें मिलीं और उनके मध्य अर्थपूर्ण विचारों का खुशनुमा आदान-प्रदान हुआ।अगले ही दिन राकेश को नियुक्ति-पत्र प्राप्त हो गया। सोमवार को पहले दिन की नौकरी के बाद शाम को ही उसने मंत्रीजी के पीए को फोन कर अपनी विजय-गाथा सुना दी। पीए ने तुरंत यह खबर मंत्री जी को दी।
‘बढ़िया। अब उज्जैन का दौरा निकालिए। पहले महाकाल के दर्शन करेंगे, यूनीवर्सिटी का इन्सपेक्शन भी हो जाएगा और हाँ, लंच रजिस्ट्रार के घर पर करेंगे।’ मुस्कुराते मंत्री जी की मुद्रा अर्थपूर्ण थी। पीए भी मुस्कुराते हुए- ‘यस सर’, कहते हुए फोन की ओर चल दिए।मंत्री जी ने उज्जैन का दौरा किया और लंच के लिए रजिस्ट्रार उन्हें अपने बंगले पर ले गए। लंच रुम में वही कालीन बिछा था, और टेबल पर दस्तरख़्वान सजाए श्रीमती रजिस्ट्रार सेवा में उपस्थित थीं। लंच शुरू हुआ। मंत्री जी तर माल चरते हुए कालीन की तारीफ़ किए जा रहे थे।‘बड़ा शानदार नमूना है। कितने का ख़रीदा?’‘ज-जी-वह, इनके एक मित्र ने उपहार में दिया था,’ श्रीमतीजी के मुँह से निकल गया।‘किस्मत वाले हैं आप लोग, जो ऐसे मित्र मिले। कश्मीर का है कि ईरान का?’‘जी- कह नहीं सकता।’ रजिस्ट्रार सकपका गए।‘ऊँट की खाल का लगता है, या शायद पश्मीने का है। क्यों?’ मंत्री जी ने गंभीर मुद्रा में आँखें रजिस्ट्रार के चेहरे पर गड़ा दीं।‘सर, मुझे तो बिलकुल भी आइडिया नहीं है।’ रजिस्ट्रार के माथे पर पसीना आ गया।‘लगता है, आपने इसके पहले कालीन देखे ही नहीं। खैर, शायद आपको मिर्च लग गई है, पसीना पोंछ लीजिए। भाभी जी, इन्हें पानी पिलाइए।’ अपनी हँसी दबाए मंत्री जी उठ खड़े हुए।‘आपके कार्यालय में काफ़ी अनियमितताएँ मिलीं।’ कार का दरवाजा खोले खड़े रजिस्ट्रार से मंत्रीजी बोले। ‘हमारे यहाँ भी आपकी काफ़ी शिकायतें हैं, विशेषकर नियुक्तियों के मामले में। मामला गंभीर है। एक-दो दिन में ही आकर मिल लीजिए। वैसे लंच अच्छा था, और आपका कालीन देखकर तो मजा ही आ गया।’ मंत्री जी अपने पीए के साथ बैठे और रजिस्ट्रार के चेहरे पर धूल उड़ाती कार चल दी।‘कल सुबह ही राजधानी चलना है, और हाँ, कालीन अच्छे-से साफ करवाकर डिग्गी में रखवा दीजिए।’ रजिस्ट्रार ने धूल मिश्रित पसीना पोंछते हुए साथ खड़े अपने पीए से कहा।इस घटना को तीन साल बीत गए। एक दिन अपने कक्ष में अतिथियों से घिरे बैठे मंत्री जी आगंतुकों से मिल रहे थे कि वही युवक, इस बार साफ-सुथरी हालत में फिर उनके सामने उपस्थित हुआ। मंत्री जी उसे फौरन पहचान गए।‘अरे तुम? हमारे बंगले के पहले मुलाकाती? एल.डी.सी. उज्जैन, है न?’ मंत्री जी मुस्कुराए। पहचान लिए जाने से गद्गद युवक ने - ‘जी हाँ सर’, कहते हुए कुहनियों तक हाथ जोड़ दिए। सभी ने उत्सुकता से युवक पर नजरें जमा दीं।‘कहो इस बार कैसे आए?’ मंत्री जी ने पूछा।‘सर बहुत करप्शन है, सर कुछ कीजिए।’ युवक घिघियाया।‘फिर वही बात। मैंने तुम से कहा था न, करप्शन सब जगह है और कहीं-कहीं नहीं है?’ मंत्री जी नाराज हो गए।‘सर, आपकी बात मैं न तब समझा था और न ही अब समझा हूँ।’ युवक पुनः घिघियाया।‘तुम इतने समझदार होते तो एल.डी.सी. नहीं, मंत्री होते।’ उनकी बात बूरी होने के पहले ही कक्ष में चापलूसी भरे ठहाके गूँज गए।‘खैर करप्शन-वरप्शन छोड़ो, तुम तो अपनी समस्या बोलो।’ मंत्री जी गंभीर थे।
‘सर, वो नौकरी में तीन साल हो गए हैं। रिजर्व कोटे का हूँ, इसलिए प्रमोशन भी ड्यू हो गया है। लेकिन-लेकिन-’, युवक ने आसपास देखा।‘लेकिन क्या? ठीक से बोलो।‘’ मंत्री जी ने डपटा।‘सर, वो इस बार वाइस-चांसलर साहब पच्चीस हजार माँग रहे हैं।’ युवक गला साफ़ करते हुए बोला।‘प्रमोशन के लिए पच्चीस हजार ? रेट तो ठीक-ठाक ही लगते हैं, तो दे दो। तीन साल में इतना तो बचाया ही होगा ?’‘कहाँ सर। नौकरी लगते ही शादी हो गई। दो छोटे बच्चे हैं, बूढ़े माँ-बाप हैं, बिलकुल बचत नहीं हो पाती है सर, उलटा कर्ज ही बना रहता है।’ युवक गिड़गिड़ाया।‘तो ऐसा कहो कि पैसा नहीं है और प्रमोशन चाहिए। बेकार में करप्शन की बातें करते हो।’मंत्री जी उठ खड़े हुए। सभी उनके साथ खड़े हो गए।‘आप लोग जरा यहीं ठहरिए’, मंत्री जी ने अतिथियों से कहा, ‘और तुम मेरे साथ आओ।’युवक को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए वे अंदर के कमरे में चल दिए। युवक पीछे हो लिया। अंदर पहुँचकर मंत्री जी ने नीचे बिछे उसी कालीन की ओर इशारा करते हुए युवक से कहा- ‘इसे पहचानते हो?’‘ये, ये तो वही है सर!’ युवक आश्चर्यचकित था।‘हाँ, ये वही कालीन है। फिर से टेबल हटाओ, इसे लपेटो और उज्जैन ले जाकर इस बार वाइस चांसलर साहब के घर पर बिछा देना। तुम्हें प्रमोशन मिल जाएगा। बस जाने के पहले मेरे पीए को अपना और वाइस चांसलर का नाम-पता नोट करवा देना।’ मंत्री जी मुस्कुरा रहे थे।‘आप महान हैं सर।’ गद्गदायमान युवक उनके चरणों में गिर पड़ा। पैरों के नीचे दबा लाल कालीन भी चुपचाप मुस्कुरा दिया।