• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. व्यंग्य
Written By WD

फागुन में बाल की खाल

फागुन में बाल की खाल -
-के.पी. सक्सेन
NDND
गुलाल भरी दाढ़ी मिर्जा ने रुमाल से झाड़ी, मूँछ में कंघी घुमाई, तरबतर कुर्ता कोने में निचोड़ा और मुँह में आधी गुझिया झोंककर लहर ली! बोले- 'तुम्हारी जान कसम भाई मियाँ, न मैंने आज तक छानी, न सिप लिया! उम्र भर रोजे नमाज का पाबंद! चाय और पान, तंबाकू छोड़ कोई नशा न किया! मगर होली के दिन तबीयत हेमा मालिनी हो ही जाती है! बदन ऐंठता है!

दिल करता है लालू प्रसाद की तरह लुंगी बांधकर गले में ढोलक डाल लूँ और इला अरुण की तरह कटी आवाज में गा पड़ूँ... 'लला फिर आईयो खेलन होरी!' ... गुझिया और मँगाओ! ...थोड़ी पोलीटिकल छेड़छाड़ और उखाड़-पछाड़ करूँ! कहाँ हुआ उनका, फागुनी दुमछल्ला मेरा! होली राइट टाइम!'

पान मुँह में झोंककर बोले- 'अल्ला होली में कुँआरों को मस्त रखे! अपने अटल जी बोले हैं, हम छोटी मछलियाँ नहीं, मगरमच्छ पकड़ रहे हैं! सुभान अल्लाह! डाले रहो काँटा, पंडित जी! शायद कोई कछुआ फंस जाए! मगरमच्छ अपना इंतजाम रखता है! तड़ से बाहर! फंसा कोई? जेल हुई किसी को? खैर आपके माथे लाल टीका गुलाल का! अमाँ भाई मियाँ, एक हैं राम विलास पासवान! अल्ला जीते रखे! दाढ़ी पर सुनहरा गुलाल लाइट मारता रहे!

बोले हैं कि लालू के मुकाबले बिहार के सारे अपराधी खड़े कर दिए जाएँ तो भी लालू का पलड़ा भारी रहेगा!... हम न कहते थे लालटेन, लालटेन है! इंडिया भर के खड़े कर दो, लालू दद्दा भारी हैं! चने का सतुआ खाते हैं, आमलेट नहीं! एक बार और मौका दे दो। बिहार का बर्लिन बना छोड़ेंगे!...'

मिर्जा ने आधी गुझिया मुँह में मुचमुचाई! मूँछ पर टंगी चिरौंजी हटाकर बोले- 'भाई मियाँ, इस होली में हेमा मालिनी ऊँची फेंक गईं! बोली हैं कि काश, मेरे गालों की तरह लालू सड़कें बनवा देते! तौबा-तौबा! क्यों अच्छे भले गालों में गड्ढे डलवाने लग पड़ी हो, मैडम? बेचारे धरमिंदर जी क्या कहेंगे?... सड़क-सड़क रहने दो! गाल संभाल कर रखो!...

उधर अपने बंगाल वाले ज्योति दा (ज्योति बसु) ऊँची फेंक गए हैं! बोले हैं कि हमने 'वाटर' की शूटिंग को मंजूरी दे दी है। भाजपा या दूसरे संगठनों ने बाधा डाली तो उसका मुकाबला करेंगे! कमाल है! इस भरपूर बुढ़ापे में भी उमंगों में क्या सोडा वाटर है! आप जीते रहिए, नेपोलियन! होली मुबारक... भालो भालो!

मिर्जा अब समोसों पर टूट पड़े थे! बोले- भाई मियाँ, सालभर का त्यौहार है। पेट का चाहे नगाड़ा बज जाए, पर माल खींचूँगा! नेताओं के देश में उगा हूं! भई अपने यू.पी. के मुख्यमंत्री बोले हैं कि मुख्यमंत्री पद काँटों का ताज है! या खुदा! चुभ रहा है क्या! आप इसे फागुन भर उतार कर मिर्जा के सिर पर रख दो! जैसे आप संभाल रहे हो! हम भी संभाल लेंगे!

मगर आप उतारो तब न! खैर! अब जब सब बोले तो अपने माकपाई दारजी सुरजीत साहब काहे चुप रहें! फरमाया है कि सोनिया ने भी गलती की थी, पर गैर भाजपा सरकार का रास्ता रोकने के सबसे बड़े दोषी मुलायमसिंह यादव हैं! अल्लाह मेरे, आपको पहलवानों से भी डर नहीं लगता, दारजी? बनी तो गैर भाजपा सरकार दो-दो बार! चंद दिनों में सूखकर छुहारा हो गई! बड़े तीर मार लिए! होली में शुभ-शुभ बोलो, पापा जी! सलाम... अहँ... लाल सलाम!'

NDND
मिर्जा ने ताबड़तोड़ तीन डकारें फेंकीं! बहू चाय रखकर बोली कि गुझिया और लाऊँ ? मिर्जा बोले- 'अल्ला खुश रखे! एक लिफाफे में रख दो! डकारें बंद होते ही घर जाकर खाऊँगा!' फिर चाय सुड़प कर बोले- 'यार रंग गुलाल की मस्ती में आदमी खुद बहक जाता है! गुजरी उमंगों के दरवाजों पर दस्तक देता है! हम उम्र वापस नहीं ला सकते, त्यौहार को क्यों न रंगों में डुबो दें...! इस लहक में जो कह गया, उसका न तुम बुरा मानना, न वे नेता जिन पर गुलाल छिड़का है! अब यह फागुनी लहर लखनऊ में नहीं तो क्या मरे पाकिस्तान में जाकर लेंगे?

इस उम्र में भी यार, ढोल की एक-एक थाप पर मन थिरकता है! महंगाई की मार भूलने और अभावों के आँसू पोंछने को कुछ तो हो! कल होली गुजर जाएगी! जली लकड़ियों की राख भर रह जाएगी! जिंदा रहे तो अगले साल फिर चहक लेंगे त्यौहार पर! ...मिर्जा ने जाते-जाते शेर पढ़ा- 'जिंदगी कुछ यों ही गुजर जाएगी ऐ दोस्त... कुछ तेरी याद में, और कुछ तुझे भुलाने में...' अल्ला खुश रखे! पाठकों को भी मिर्जा की बधाई! बाहर हुड़दंगी शोर था! मिर्जा लहराते बाहर निकल गए!

साभार-समांतर