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Written By ND

गरीबी मिटाने की कसम...!

गरीबी मिटाने की कसम...! -
- शिव शर्मा
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अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन-दिवस पर मंत्रीजी ने अलसुबह बिना नाश्ता किए ही स्कूल में झंडावंदन किया एवं गरीब बच्चों की गरीबी मिटाने की शपथ ली एवं उन गरीब बच्चों से भी शपथ दिलवाई कि वे गरीबी मिटाकर ही दम लेंगे।

उन्होंने अपने मार्मिक भाषण में कहा- 'प्यारे बालकों, आज मैंने भी अभी तक कुछ अन्न-जल ग्रहण नहीं किया है। मैं आज शपथ लेता हूँ कि तब तक अन्न-जल नहीं ग्रहण करूँगा, जब तक आपको आज जलेबी-पोहे का नाश्ता उपलब्ध नहीं हो जाता। प्रतिदिन आपको जली हुई रोटियाँ और दलिया मिलता है। किंतु आज का महत्व कुछ अलग है।

आज पूरे विश्व ने गरीबी उन्मूलन करने का दृढ़ संकल्प लिया है। दुनिया भर की गरीबी मिटाना मेरे बस की बात नहीं है, क्योंकि मैं अभी अपने ही राज्य का मंत्री हूँ। जब पूरे देश एवं विश्व का नेता बन जाऊँगा तब पूरे विश्व से इस ससुरी गरीबी को मिटाकर ही दम लूँगा। आज यह शपथ आपके समक्ष ले रहा हूँ।'
अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन-दिवस पर मंत्रीजी ने अलसुबह बिना नाश्ता किए ही स्कूल में झंडावंदन किया एवं गरीब बच्चों की गरीबी मिटाने की शपथ ली एवं उन गरीब बच्चों से भी शपथ दिलवाई कि वे गरीबी मिटाकर ही दम लेंगे।


गरीबी मिटाने की सरकारी योजनाओं पर उन्होंने इतना प्रकाश डाला कि वे थककर चूर हो गए। उन्हें प्रधानाध्यापक के कक्ष में आराम कुर्सी पर लिटाया गया। तत्पश्चात उनके लिए पाँच सितारा होटल से मँगाए गए ब्रेकफास्ट बॉक्स से निकले नाश्ते को परोसा गया, जिसमें चीज-सैंडविच, कार्नफ्लेक, ड्राय-फ्रूट्स एवं फ्रेश-फ्रूट्स का ज्यूस उन्हें पिलाया गया। तब जाकर गरीबी के विरुद्ध उनका आक्रोश कम हुआ। यही नहीं उनका मेडिकल चेकअप भी हुआ।

उनकी गरीबी मिटाने की चिंता को समाचार पत्रों ने प्रथम पृष्ठ पर सचित्र छापा। लोग आश्वस्त हुए कि अब उनकी गरीबी को मिटने से कोई रोक नहीं सकेगा। अखबारों ने यह भी टिप्पणी लिखी कि गरीबी मिटाने की चिंता में उनके वजन में भी काफी गिरावट आई है। यह शुभ समाचार ही है।
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विश्व भुखमरी सूचकांक में 118 देश प्रमुख हैं। उनमें भारत का स्थान 94वाँ बताया जाता है। अर्थात प्रसन्नता की बात है कि 93 देश, भारत से भी अधिक भुखमरे अभी शेष हैं। जब पूरे विश्व में निर्धन लोग बहुसंख्यक हैं तो भारत के 110 करोड़ लोगों में से 80 प्रतिशत गरीब हैं, यह जानकर भी हमें तसल्ली हुई कि 20 प्रतिशत तो भारतवासी अमीर हुए हैं। इनमें सबसे अव्वल नेता-मंत्री, अफसर, उद्योगपति हैं। अब कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि पूरे देश की गरीबी उड़नछू हो जाए, एक साथ।

हमारे आध्यात्मिक प्रवचनकार, साधु-संत प्रारंभ से ही गरीबी को अमीरी से उत्तम मानते आए हैं। यह बात दीगर है कि वे स्वयं प्रवचन देते-देते, गरीबी रेखा से कभी के ऊपर आ गए हैं। यह भी उनके आध्यात्मिक चमत्कार के कारण हुआ है। यदि हम भी बाबा रामदेव की तरह योग करें तो हमारी निर्धनता भी शर्तिया मिट जाएगी। किंतु हम ठहरे पक्के आलसी। अतः गरीब के गरीब बने हुए हैं तो इसमें बाबा-साधु-महात्माओं का क्या कुसूर है?

बाबाओं के आशीर्वाद से हमारे देश की गरीबी भी काफी कम हुई है। हाल में ही एक-एक फ्लेट, एक सौ करोड़ में बिक गए हैं। होटलों के एक कमरे का किराया ही एक लाख रु. हो गया है। सरकार द्वारा भी 'सेज' बनवाकर कई किसानों को गरीबी से ऊपर उठाने का प्रयत्न किया गया है। किंतु नाश हो इन कृषकों का पट्ठे, नंदीग्राम करने लगते हैं। जब वे स्वयं ही अमीर बनना नहीं चाहते तो सरकार को दोष देने से क्या लाभ?

मंत्रीजी ने भी प्रण कर लिया है कि गरीबी उन्मूलन दिवस से वे शनैः-शनैः गरीबी मिटाएँगे। प्रथम डम्पर आदि खरीद कर अपनी एवं अपने परिवार की, तत्पश्चात अपने निकट रिश्तेदारों की, इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की भी मिटाएँगे, क्योंकि चुनाव में तो वे ही काम आएँगे। तत्पश्चात निश्चित ही आम लोगों की गरीबी मिटाने के लिए वे अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे।