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Written By ND

मेरे शहर में आकर देखिए!

व्यंग्य

मेरे शहर में आकर देखिए! -
डॉ. अखिलेश बार्च
जब सारी दुनिया में तरक्की की बाढ़ आ रही हो और मेरा छोटा-सा शहर इससे बच जाए, यह कैसे संभव है? मेरे शहर में भी पिछले कुछ सालों से तरक्की (?) घुटने मोड़कर आ बैठी है। जहाँ पहले गिट्टी की फेयर वेदर सड़कें या कोलतार पुती सड़कें थीं, वहाँ अब सीमेंट की सड़कें हो गई हैं। शहर और आसपास के गाँवों के लोग लोन से ली गई मोटरसाइकलों पर दनदनाते हुए शहर की सड़कों पर बेतहाशा दौड़ते हैं।

एक दोपहिया पर तीन लोग बैठते हैं, सबसे आगे वाले के हाथ में सेलफोन रहता है, जिसे वह कान से चिपकाए तेजी से गाड़ी चलाते जाता है। उसे तो भय नहीं लगता पर मेरा शंकालु मन किसी हादसे के भय से विकल होता रहता है कि यदि मोटरसाइकल इसी गति से चलते हुए टकरा गई और तीन सवारों में से एक, दो बच भी गए तो भी निश्चित ही गंभीर रूप से घायल तो होंगे ही।

मुझे सड़क पर चलते समय लगता है जैसे मेरे शहर में कोई रेस या प्रतिस्पर्धा हो रही है जिसमें कृषि उपज मंडी या जीनिंग प्रेसिंग की ओर जा रही बैलगाड़ियों, ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, ट्रकों, ऑटो रिक्शा, ताँगों के साथ-साथ कार चालकों और दोपहिया वाहन चालकों ने भी पूरे उत्साह से भाग लिया है। आज की तारीख में किसी को कुछ भी समझाना बेकार है। जिसे आप समझाएँगे, वह उलटकर आप पर ही आक्रमण करने लग जाएगा। इसलिए सब ओर से आँख मूँदकर चलने में ही समझदारी है।

ND


तकनीकी तरक्की की मिसालों में मोटरसाइकलों और मोबाइल के साथ-साथ बैंक की एटीएम मशीनों ने चार चाँद लगा दिए हैं। इस मशीन के पारदर्शी रूम के बाहर वैसे तो सुरक्षाकर्मी रहता है, और ढेर सारे नियम भी चस्पा किए हुए हैं, लेकिन हमारे शहर की जनता निर्भिक है। वह किसी नियम की परवाह नहीं करती। बैंक वाले कितना भी समझाते रहें कि इस कक्ष में एक बार में एक ही व्यक्ति आए जिससे कि आपके कोड वर्ड की गोपनीयता भंग नहीं हो पर हमारे यहाँ एटीएम कक्ष में जब तक लंबी क्यू अंदर मौजूद नहीं हो, तब तक लोगों को मजा ही नहीं आता।

सुरक्षाकर्मी या तो मौन रहता है या चाय पीने चला जाता है या ऊपर नीचे ऐसे चिंतन की मुद्रा में देखता है कि लगता है इससे कुछ उम्मीद करना ही बेकार है। यदि कोई ग्राहक दूसरे किसी व्यक्ति को एटीएम कक्ष में घुसने से रोकता है तो झगड़े की पूरी संभावना है-'यहाँ टेम किसके पास है जो बाहर खड़ा रहे। जहाँ करना हो कर दो हमारी कम्पलेन।'

यदि आप बाहर खड़े हो जाएँ और एटीएम कक्ष में कुछ लोगों के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करें तो आपके पीछे से आने वाले लोग आपको धक्का देते हुए एटीएम कक्ष में घुस जाएँगे और आप हाथ मसलते रह जाएँगे।

जब आपका धैर्य चूक जाएगा तो या तो बैंक में इस अव्यवस्था की शिकायत करेंगे या किस से झगड़ा कर बैठेंगे। बैंक में शिकायत का कोई खास असर नहीं होगा। बैंक अधिकारी कहेगा,-'हम तो लोगों को समझा-समझाकर थक गए हैं। भगवान जाने यहाँ के लोग कैसे हैं। सर, आप तो समझदार हैं, किसी और समय आकर पैसे निकाल लीजिए।' यदि आपने लोगों को समझाने की कोशिश की और आपका झगड़ा हो गया तो सब लोग आपको ही दोषी मानेंगे,-'अच्छे भले सब लोग मशीन से पैसे निकाल रहे थे, जाने कहाँ से ये आकर लोगों को नियम समझाने लगे।'

जब एक-दो बार इस तरह की शिकायतों या झगड़ों का हश्र देख लेंगे तो आगे से आप भी क्यू में लगकर नियम (?) से एटीएम का उपयोग सीख जाएँगे।

वैसे एटीएम ने एक रास्ता निकाल लिया है। वह स्वयं हर चौथे-छठे दिन काम करना बंद कर देती है। बैंक प्रबंधन, एटीएम खराब है।' का सूचना पट्ट लगा देता है। कुछ समय आराम के बाद मशीन फिर काम करने लगती है। छुट्टी के एक दिन पहले बैंक प्रबंधन इसमें इतने पैसे रखता है कि रविवार या छुट्टी के दिन स्वयमेव लोग एटीएम में कार्ड डालकर दूसरों को सूचना दे देते हैं कि एटीएम में पैसे खत्म हो गए हैं...!