रेल की छत की जब मैं बात करूँ तो आप समझ लें कि मेरा मतलब रेल के उस यात्री डिब्बे से है, जिसके अंदर टिकट लेकर जितने लोग बैठते हैं, उससे कहीं ज्यादा उसकी छत पर नजर आते हैं। शाहरुख खान और लालू यादव तो अब बता रहे हैं कि रेल की छत पर भी गाना-बजाना हो सकता है, मगर इस देश की आम आबादी तो यह उपयोग न जाने कब से जानती है, शायद रेल आने के भी पहले से। क्योंकि गाना-बजाना तो हमारे देश में रेल से भी पहले मौजूद था। रेल तो अभी सौ साल पहले ही आई है।
अभी तक आम रेलयात्री को यह डर रहता था कि रेल की छत पर बैठना गैरकानूनी है। जब शाहरुख ने मलाइका अरोड़ा खान के साथ 'चल छैंयाँ-छैंयाँ' किया तो भी यही समझा गया कि हिन्दी फिल्मों में सच जैसा तो कुछ होता नहीं है, ...तो इसका भी क्या भरोसा।
मगर जब लालू यादव ने बिहार में रेल की छत पर महफिल जमाई तो जनता ने मान लिया कि अब तक छत का उपयोग कर उन्होंने कोई गलती नहीं की है। सही भी है, डिब्बे में जगह नहीं और पूरी की पूरी छत यूँ ही खाली जा रही है तो यह सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग नहीं तो और क्या है? आश्चर्य होता है कि इतने रेल मंत्री आए, मगर किसी ने भी छत पर नजर नहीं डाली और अंदर ही अंदर सुधार करते रहे।
लालू यादव की यह योजना यदि सफल हो गई तो भारत का नाम रोशन हो जाएगा। अभी ऑस्ट्रेलिया बराबर आबादी भारतीय रेल में रोज पाई जातीहै। उम्मीद करें कि छत सेवा शुरू होने पर हमारी आधी आबादी छत पर ही नजर आएगी। इससे रेल विभाग को भी फायदा होगा... कि दो-दो ट्रेन एक जगह से नहीं चलाना पड़ेगी, डिब्बे नहीं बढ़ाना पड़ेंगे, हर स्टेशन पर ट्रेन रोकना नहीं पड़ेगी... क्योंकि छत पर बैठे लोग तोवहीं से छलाँग लगा देते हैं। यह भी किया जा सकता है कि लंदन दर्शन कराने वाली बसों की तरह रेल की छत पर सीट भी लगा दी जाए। मगर ऐसा सिर्फ लंबी दूरी की रेलों में ही किया जाए।
दूसरी रेलों में छत का खुला खेल फर्रूखाबादी जैसा उपयोग ही किया जाना चाहिए। खुली छत के उपयोग से यह भी फायदा होगा कि ट्रेन के डिब्बे पटरी छोड़ेंगे तो छत के यात्री बच जाएँगे। इस वजह से मुआवजा भी नहीं देना पड़ेगा और रेल का यह दावा भी पूरा होगा किहम यात्रियों की पूरी सुरक्षा करते हैं।
रेल मंत्रालय चाहे तो रेल की छत के उपयोग से मालगाड़ी की सनातन-कमी को भी दूर कर सकता है। यदि दूर की गाड़ियों की छत को सुविधा वाली बना दें और अंदर माल रखवा दें तो एक तीर से दो शिकार हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि मालगाड़ी की छत को भी यात्रियों के लिए खोल दिया जाए। यात्री गाड़ियाँ तो वैसे ही मालगाड़ी जैसी ही लगती हैं ...तो अब मालगाड़ी को यात्री गाड़ी की तरह बनाने में देर नहीं होनी चाहिए। इससे रेल मंत्रालय यह भी दावा कर सकेगा कि हम माल और यात्री को एक नजर से देखते हैं, भेदभाव नहीं करते हैं।