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Written By ND

खुदा करे...धड़ाम न हों

व्यंग्य

खुदा करे...धड़ाम न हों -
के.पी.सक्सेना
ND
मिर्जा मियाँ धीमी आँच पर चढ़ी हांडी की तरह अंदर ही अंदर खदक रहे थे। साँसे पुराने हारमोनियम की धौंकनी की तरह चल रही थी। कुर्ते तले तोंद भी कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार की तरह अप एंड डाउन हो रही थी। रह रह कर पास रखे कटोरे से पानी घूँट कर अल्लाह कह उठते थे। मैं मिलने पहुँचा तो सीले हुए पटाखे जैसे फुस्स से फटे और बोले, 'लल्ला, वे धड़ाम हो गए और तुम्हें कोई हमदर्दी नहीं? सिंपैथी का एक पोस्ट कार्ड ही डाल देते न! मैंने हैरत से पूछा, "छुछलइयाँ न खेलों मिर्जा ! कौन धड़ाम हो गए? बात धो-पोंछकर कहा करो!'

मिर्जा ने कटोरे से थोड़ा पानी गटका, तोंद दो तीन बार उछाल कर बोले, 'मैं जनाब लालू परसाद और उनकी मोहतरमा राबड़ी देवी की बात कर रहा हूँ। खुदा समझे मंच बनाने वालों को! अमाँ दोनों जने हेलीकाप्टर से उतर कर बिहार की एक चुनाव सभा में भाषण करने के तईं मंच पर चढ़े। मंच उनका और चमचों का बोझ न झेल पाया और चरमरा कर टूट गया। भय्या लालू और भाभी मोहतरमा धड़ाम से नीचे गिरे। खुदा का शुक्र है कि चोटें नहीं आईं। मेरे जैसा सींक सलाई होता तो बदन के सारे कलपुर्जे बिखर गए होते। चुनाव से पहले ही धड़ाम हो लेना कोई अच्छा शगुन नहीं है। खैर, बाद में दोनों ने कहीं अलग ऊँची जगह खड़े होकर भाषण देने और अल्लम-गल्लम वादे करने की रस्म पूरी की।

कुर्ते तले हाथ फेरकर तोंद की तसल्ली देते हुए मिर्जा बोले, 'लल्ला मियाँ अपनी उम्र पकने तक मैंने कितनों को ही धड़ाम होते और फिसलते देखा है। राजनीति की रपटन पर कदम जमाकर टिके रहना कोई खालाजी का घर नहीं है। कितनों का ही मंच धाँय से धड़ाम हो गया या रपट गए। एक पुराना किस्सा अर्ज करता हूँ, लल्ला। एक बार नेहरू जी संसद भवन की सीढ़ियों से उतर रहे थे। एक जगह पाँव फिसला और नीचे धड़ाम होने को हो गए। पीछे चल रहे राष्ट्रकवि दिनकर जी ने उन्हें संभाल लिया। नेहरू जी ने शुक्रिया अदा किया। दिनकर जी बोले, "पंडित जी, इस देश की राजनीति जब-जब लड़खड़ाएगी, साहित्य ही उसे संभालेगा! वह भी क्या लोग थे मियाँ!'

ND
दो प्याली चाय का ऑर्डर अंदर फेंक कर मिर्जा बोले, 'लल्ला, तुम खुद निज नैनन से देख रहे हो कि इस धड़ाम में भ्रष्टाचार का धक्का कितना जबरदस्त है। एक से एक फन्ने खाँ सीबीआई की चूहेदानी में फँसा पड़ा है। क्या से क्या हो गए! मगर वहीं मसल कि गर्मियों में नदियाँ भले ही सूख जाएँ मगर गटर का गंदा पानी बहता रहता है। भले ही धड़ाम हो जाएँ मगर भ्रष्टाचार का गटर जारी है ।'

कटोरे से आखिरी घूँट लेकर मिर्जा बोले, 'हम तो कहें लल्ला कि जब तक भ्रष्टाचार की फिसलन गीली रहेगी, धड़ाम-धड़ाम जारी रहेगा। जब खुद के हाथों में तेल लगा हो तो चोर क्या पकड़ोगे। अब पब्लिक को सब दिखाई देता है कि कौन कितने पानी में खड़ा है। काठ की हांडी बार-बार चूल्हे नहीं चढ़ पाएगी। अब सुई की नोक से कब तक हम कुआँ खोदते रहेंगे। हम तो बस इतना चाहे हैं मियाँ कि ईमान और नेकनीयती की जमीन पर हमारे रहनुमाओं के कदम जमे रहें और खुदा करे कोई धड़ाम न हो। बस आमीन...!