आदर्श शर्मा
हालिया समय में कई कलाकारों ने अपने पर्सनैलिटी राइट्स को सुरक्षित करवाने के लिए अदालतों का सहारा लिया है। ताजा मामला दक्षिण भारतीय अभिनेता नागार्जुन से जुड़ा है। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चिंता जताई थी कि उनके पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन हो रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा कि वे उनके पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को हटाने के लिए आदेश जारी करेंगे।
इससे पहले भी करण जौहर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अभिषेक बच्चन, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, सद्गुरु, रजत शर्मा और अरिजीत सिंह जैसे कई बड़े चेहरे कोर्ट जाकर अपने पर्सनैलिटी राइट्स सुरक्षित करवा चुके हैं। धर्मा प्रोडक्शंस की चीफ लीगल ऑफिसर राखी बाजपाई ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि व्यावसायिक लाभ और अपमानजनक कंटेंट बनाने के लिए सेलेब्रिटियों के नामों और तस्वीरों का गलत इस्तेमाल बढ़ा है, इसलिए यह इस समय की जरूरत है।
क्या होते हैं पर्सनैलिटी राइट्स
पर्सनैलिटी राइट्स को हिंदी में व्यक्तित्व अधिकार कहा जाता है। ये अधिकार एक व्यक्ति के नाम या पहचान का व्यावसायिक शोषण होने से बचाते हैं। कानूनी फर्म जेपी एसोसिएट्स की वेबसाइट के मुताबिक, व्यक्तित्व अधिकार का तात्पर्य किसी व्यक्ति के अपने नाम, चेहरे, आवाज, पहचान, तस्वीरों और अन्य विशेषताओं के व्यावसायिक उपयोग को नियंत्रित करने की क्षमता और अधिकार से है।
इसे ऐश्वर्या राय के उदाहरण से समझते हैं, जिनके व्यक्तित्व अधिकार हाल ही में कोर्ट ने सुरक्षित किए हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उनके नाम या पहचान का इस्तेमाल टी-शर्ट, मग, पोस्टर या कोई डिजिटल कंटेंट बनाने में नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि उनकी छवि बिगाड़ने के मकसद से भी उनके नाम, चेहरे या तस्वीरों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।
अभिनेता अनिल कपूर के मामले में तो कोर्ट ने कहा था कि उनके बात करने के अंदाज, हाव-भाव और उनके मशहूर संवाद "झकास” का अनधिकृत इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने कहा था कि एआई के जरिए भी उनकी पहचान का दुरुपयोग नहीं किया जा सकेगा। वहीं, जैकी श्रॉफ के मामले में कोर्ट ने कहा था कि उनके नाम के साथ-साथ उनके उपनाम, आवाज और उनके द्वारा बोले जाने वाले शब्द "भिड़ू” का भी अनधिकृत इस्तेमाल नहीं हो सकेगा।
क्यों पड़ती है इन अधिकारों की जरूरत
जानकारों के मुताबिक, सेलेब्रिटियों को मुख्य रूप से दो वजहों से अपने पर्सनैलिटी राइट्स को सुरक्षित करवाने की जरूरत पड़ती है। पहली वजह है कि उनके नाम, पहचान, आवाज या तस्वीरों का व्यावसायिक तौर पर दुरुपयोग किया जाता है। दूसरी वजह है कि एआई टूल्स की मदद से उनके अपमानजनक डीपफेक्स या अन्य अश्लील कंटेंट बनाया जाता है। यह समस्या सबसे ज्यादा महिला सेलेब्रिटियों के सामने आती है।
द हिंदू की खबर के मुताबिक, ऐश्वर्या राय ने अपनी याचिका में कहा था कि कई वेबसाइट और अज्ञात लोग एआई के जरिए उनका चेहरा लगाकर पॉर्नोग्राफिक और अश्लील कंटेंट बना रहे हैं और उसे साझा कर रहे हैं। इस याचिका पर कोर्ट ने कहा था, "जब एक मशहूर व्यक्ति की पहचान को उसकी सहमति के बिना इस्तेमाल किया जाता है तो इससे ना सिर्फ उसे व्यावसायिक नुकसान होता है, बल्कि यह उसके गरिमा के साथ जीने के अधिकार को भी प्रभावित करता है।”
अरिजीत सिंह के मामले में एक कंपनी ने एआई टूल्स की मदद से उनकी आवाज की आर्टिफिशियल रिकॉर्डिंग तैयार कर ली थीं। जैकी श्रॉफ के मामले में ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म और एआई चैटबॉट्स उनके नाम और तस्वीरों आदि का दुरुपयोग कर रहे थे। टीवी पत्रकार रजत शर्मा के मामले में उनके चेहरे और आवाज का इस्तेमाल कर डीपफेक्स वीडियो बनाए जा रहे थे और उत्पादों का प्रचार किया जा रहा था। ऐसी परेशानियों से बचने के लिए ही सेलेब्रिटी पर्सनैलिटी राइट्स सुरक्षित करवाने के लिए कोर्ट का रूख कर रहे हैं।
पर्सनैलिटी राइट्स के लिए क्या हैं कानून
कानूनी मामलों की वेबसाइट बार एंड बेंच' के मुताबिक, भारतीय कानून में व्यक्तित्व अधिकारों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। ट्रेडमार्क एक्ट, 1999 में भी इन अधिकारों का जिक्र नहीं किया गया है। हालांकि, अदालतों ने कई मामलों में इन अधिकारों को कानूनी मान्यता दी है। लेकिन फिर भी पर्याप्त विधायी ढांचा ना होने की वजह से व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा में मुश्किलें आती हैं।
बार एंड बेंच के मुताबिक, व्यक्तित्व अधिकारों को सुरक्षित करवाने के लिए लोगों को ट्रेडमार्क कानूनों, कॉपीराइट कानूनों और संवैधानिक सिद्धांतों जैसे अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का हवाला देना पड़ता है, तब कहीं जाकर बात बनती है। इस वजह से अदालतों के फैसलों में भी असमानता देखने को मिलती है और इन्हें लागू करने में भी दिक्कत आती है।
ऐसे में अब यह मांग भी उठने लगी है कि व्यक्तित्व अधिकारों के लिए एक विशेष कानूनी ढांचा बनाया जाना चाहिए। जानकारों का कहना है कि इसके लिए ऐसा कानूनी ढांचा होना चाहिए जो अनधिकृत शोषण से सुरक्षा की गारंटी दे और अभिव्यक्ति की आजादी एवं लोगों के आर्थिक हितों के बीच में भी एक संतुलन बनाए।