उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया से बातचीत के सारे आधिकारिक रास्ते बंद कर रहा है। मंगलवार को उत्तर कोरिया ने इसका ऐलान किया। विश्लेषक मान रहे हैं कि इस कदम का उद्देश्य प्रायद्वीप में संकट पैदा करना है।
पिछले हफ्ते से ही उत्तर कोरिया दक्षिण के खिलाफ कठोर धमकियों की झड़ी लगाए हुए हैं। दक्षिण में रहने वाले बागी उत्तर कोरियाई कार्यकर्ता सीमा के पार से उत्तर कोरियाई शासन की आलोचना वाले पर्चे भेज रहे हैं। ये कार्यकर्ता यह काम नियमित रूप से करते हैं लेकिन इस वक्त उत्तर कोरियाई शासन ने इसी को मुद्दा बना लिया है।
हाल के दिनों में उत्तर कोरिया के अधिकारियों ने देशभर में नागरिकों की बड़ी-बड़ी रैलियां कर अपने लिए समर्थन की शपथ दिलाई है। इन सबके बीच कोरियाई देशों का आपसी संबंध एक तरह से ठहरा हुआ है। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के बीच 2018 में 3 मुलाकातों के बावजूद संबंधों में सुधार की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।
मंगलवार को उत्तर कोरियाई ऐलान के बाद दोनों देशों में आधिकारिक बातचीत के सारे चैनल बंद हो गए हैं। इसका तुरंत कोई असर तो महसूस नहीं होगा, क्योंकि बीते कई महीनों से उत्तर कोरिया, दक्षिण से कोई बातचीत नहीं कर रहा है। दोनों पक्षों की हॉटलाइन पर टेस्ट कॉल के अलावा नामभर की ही बातचीत होती है।
अब से 2 साल पहले उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सिंगापुर में मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात को बड़ी घटना माना गया था, लेकिन उसकी दूसरी बरसी के 3 दिन बाद कोरियाई देशों के बीच तनाव का नया सिलसिला शुरू हुआ है।
इस तरह के बैलूनों से पर्चे भेजते हैं उत्तर कोरियाई बागी
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत बीते साल हनोई में हुई बातचीत के बाद से ही अटकी हुई है। तब प्रतिबंध हटाने के बदले उत्तर कोरिया की कुछ गतिविधियों को बंद करने की चर्चा हुई थी। बातचीत के आगे नहीं बढ़ने से उत्तर कोरिया झुंझलाया हुआ है, क्योंकि उसे रियायतें नहीं मिल रही हैं। इस बीच उसने हथियार कार्यक्रम को छोड़ने की दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाया है।
उत्तर और दक्षिण की हॉटलाइनें बंद
फिलहाल उत्तर कोरिया ने अपनी नाराजगी का रुख अमेरिका की बजाय सिओल की ओर कर रखा है। बीते महीनों में उसने कई हथियारों का परीक्षण किया है और दूसरे कई तरीकों से भी दक्षिण कोरिया को उकसाने की कोशिश की है। पिछले महीने दोनों देशों को विभाजित करने वाले विसैन्यीकृत क्षेत्र में उत्तर कोरिया ने दक्षिण के एक पोस्ट पर गोलीबारी भी की।
उत्तर कोरिया की सरकारी न्यूज एजेंसी केसीएनए का कहना है कि मंगलवार दोपहर से उत्तर कोरिया उत्तर और दक्षिण के बीच संपर्क रेखा को पूरी तरह बंद कर देगा। इसमें सेना की हॉटलाइन के साथ ही उत्तर कोरिया के सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी के मुख्यालय और दक्षिण के राष्ट्रपति कार्यालय के बीच संचार भी शामिल हैं। दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय का कहना है कि डेडलाइन खत्म होने के बाद उत्तर कोरिया को किए गए कॉल का कोई जवाब नहीं मिला।
किम यो जोंग
केसीएनए के मुताबिक संपर्क रेखा खत्म करने का फैसला किम यो जोंग और सत्ताधारी पार्टी के वाइस चेयरमैन किम योंग चोल ने लिया है। किम यो जोंग, किम जोंग उन की बहन और उनकी प्रमुख सलाहकार हैं। इस फैसले ने देश की सत्ता में किम यो जोंग के बढ़ते दखल को भी दिखाया है। पिछले हफ्ते उन्होंने एक बयान जारी कर दक्षिण कोरिया के साथ हुए एक सैन्य समझौते को रद्द करने और दोनों देशों के बीच संपर्क के लिए बने दफ्तर को बंद करने की बात कही थी। कोरोना वायरस के कारण इस दफ्तर में कई महीनों से काम पहले ही बंद था।
दक्षिण पर दबाव की रणनीति
मंगलवार को जारी उत्तर कोरिया के बयान में बार-बार उन बागियों की आलोचना की गई है, जो उत्तर कोरिया में बैलूनों और बोतलों के जरिए पर्चे बांटते हैं। इन पर्चों में उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग की उनके हथियार कार्यक्रम और मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए आलोचना रहती है। उत्तर कोरिया के बयान में इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया गया है।
केसीएनए ने दक्षिण कोरिया को 'दुश्मन' करार देते हुए कहा है कि इसने अंतर कोरियाई रिश्तों को तबाही की ओर धकेल दिया है। हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि दक्षिण कोरियाई अधिकारियों के साथ आमने-सामने बैठने की जरूरत नहीं है और उनसे चर्चा करने के लिए कोई मुद्दा नहीं है।
विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर कोरिया का यह कदम दक्षिण पर दबाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। कोरिया रिस्क ग्रुप के निदेशक आंद्रेई लानकोव ने कहा कि यह उत्तर कोरिया की रणनीति है। वो दक्षिण को यह दिखाना चाहते हैं कि आर्थिक छूटों की उनकी मांग की पूरी तरह से अनदेखी नहीं की जा सकती।
कोरिया रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल स्ट्रैटजी से जुड़े विश्लेषक शिन बेओम चुल का कहना है कि उत्तर कोरिया हल्के स्तर के उकसावे के जरिए यहां हलचल तेज करना चाहता है। उनका कहना है कि वह दक्षिण कोरिया की उत्तर को लेकर नीतियों में उलटफेर करना चाहता है। किम यो जोंग के इंचार्ज रहते यह एक बार की बात नहीं होगी। वे दक्षिण कोरिया के साथ शुरुआत कर रहे हैं और फिर यह सख्त रवैया अमेरिका तक जाएगा।
दोनों कोरियाई देश तकनीकी रूप से 1953 से ही जंग लड़ रहे हैं। उस वक्त दोनों देशों के बीच युद्धविराम तो हुआ लेकिन शांति समझौता आज तक नहीं हो सका है। उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उसके हथियार कार्यक्रम की वजह से कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे है। हालांकि उसके बाद भी उत्तर कोरिया ने हाल के महीनों में कई परीक्षण किए हैं। वह अकसर उन्हें मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम कहता है लेकिन जापान और अमेरिका उन्हें बैलिस्टिक मिसाइल बताते हैं।
एनआर/एमजे (एएफपी)