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Written By DW
Last Modified: बुधवार, 20 अगस्त 2025 (10:49 IST)

पीएम मोदी और आरएसएस के बीच चल क्या रहा है?

हाल ही में आरएसएस प्रमुख के बयानों से संकेत मिलते हैं कि केंद्र सरकार और संघ के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही। लालकिले से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरएसएस के जिक्र और तारीफ को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

modi bhagwat
समीरात्मज मिश्र
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ दिन पहले 75 साल की उम्र के बाद नेताओं को स्वेच्छा से रिटायर हो जाने और दूसरों को मौका देने की नसीहत दी थी। यह बात उन्होंने संघ के दिवंगत नेता मोरोपंत पिंगले के संदर्भ में कही थी लेकिन माना जा रहा है कि इसके जरिए वो ये संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे रहे हैं जो अगले महीने 75 साल के हो जाएंगे। हालांकि इसी साल मोहन भागवत भी 75 साल के हो जाएंगे और उनके मुताबिक, यह बात उन पर भी लागू होती है।
 
इस बयान के कुछ दिन बाद एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने सरकार को स्वास्थ्य और शिक्षा के मामलों में आड़े हाथों लिया। उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर चिंता जताई। इससे पहले भी सरकार को कई मुद्दों पर वो घेर चुके हैं। उनके अलावा, आरएसएस के कुछ और नेता भी सजातिगत जनगणना पर अब बीजेपी ने क्यों कहा, हांरकार की कार्यशैली पर सवाल उठा चुके हैं।
 
इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार लालकिले की प्राचीर से अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रहे आरएसएस का गौरव गान किया। उन्होंने कहा, "मैं गर्व से एक ऐसी संस्था का जिक्र करना चाहता हूं जो इस साल अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रही है। सौ साल पहले, आरएसएस की स्थापना हुई थी। राष्ट्र के लिए ये सौ साल की सेवा एक गर्व और सुनहरा अध्याय है। चरित्र निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ, मां भारती की सेवा करने के उद्देश्य से, स्वयंसेवकों ने एक सदी से मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।”
 
पहली बार लालकिले से आरएसएस का जिक्र
यह पहली बार था जब लालकिले की प्राचीर से किसी प्रधानमंत्री ने आरएसएस का जिक्र किया है और वो भी उसकी गौरव गाथा बताने के लिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं और 2025 में उन्होंने लगातार बारहवीं बार लालकिले की प्राचीर से बतौर प्रधानमंत्री भाषण दिया लेकिन उन्होंने भी इसके पहले कभी भी स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए अपने भाषण में आरएसएस का जिक्र नहीं किया था। उनके भाषण में आरएसएस की प्रशंसा को संघ के साथ सरकार के ठंडे पड़ रहे रिश्तों में गर्मी लाने की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है।
 
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तो मोदी के भाषण के तत्काल बाद ट्वीट किया और तंज कसते हुए कहा कि ‘पीएम मोदी की कुर्सी मोहन भागवत की कृपा पर टिकी है। लाल किले से आरएसएस की तारीफ करके उन्होंने भागवत को खुश करने की कोशिश की है।'
 
राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि राजनीतिक विश्लेषक भी इन सब घटनाक्रम के राजनीतिक मायने यही निकाल रहे हैं कि आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है।
 
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता लंबे समय से बीजेपी और आरएसएस को कवर कर रहे हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "आरएसएस और बीजेपी में टकराव तो 2014 से ही चल रहा है। यही नहीं, पहले भी यानी आडवाणी और वाजपेयी के दौर में भी चला करता था। लेकिन आरएसएस और बीजेपी दोनों की अपनी मजबूरियां हैं कि वो एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ सकते। बीजेपी को भले ही लगता है कि अब उसे आरएसएस की जरूरत नहीं है लेकिन सच्चाई यह है कि जरूरत दोनों को एक-दूसरे की है और दोनों इस बात को समझते भी हैं। हां, मोदी के युग में बीजेपी जब काफी मजबूत हो गई तो उसने आरएसएस को इग्नोर करना शुरू कर दिया लेकिन आरएसएस की भी मजबूरी है कि वो बीजेपी को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी को इतनी जल्दी और मजबूत स्थिति में खड़ा नहीं कर सकेगा।”
 
शरद गुप्ता कहते हैं कि लालकिले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरएसएस की तारीफ इसीलिए की ताकि आरएसएस खुश हो जाए। उसे ये पता चले कि उसका बीजेपी में एक सम्मान आज भी वैसे ही है जैसे एक परिवार में किसी बुजुर्ग सदस्य का।
 
जब जेपी नड्डा ने कहा था ‘बीजेपी को आरएसएस की जरूरत नहीं'
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने साफतौर पर कहा था कि ‘बीजेपी अब काफी बड़ी हो चुकी है और उसे अब आरएसएस की जरूरत नहीं है।'
 
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 240 सीटें मिलीं जबकि उसका लक्ष्य चार सौ से ज्यादा सीटें पाने का था। और माना गया कि नड्डा के इस बयान ने भी इस हार में बड़ी भूमिका निभाई क्योंकि आरएसएस का कैडर बीजेपी को जिताने में उस उत्साह और ऊर्जा से नहीं लगा जैसा कि 2014 और 2019 में लगा था। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत कई बार परोक्ष रूप से इन बातों का जिक्र कर चुके हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उन्होंने कहा था, "जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, गर्व करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।”
 
मोहन भागवत ने मणिपुर को लेकर पीएम मोदी की चुप्पी पर भी कटाक्ष किया था। खैर, चुनाव के बाद बीजेपी को आरएसएस की अहमियत समझ में आई और रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश होने लगी। बतौर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी अपने दो कार्यकाल पूरा करने के बाद तीसरे कार्यकाल में इस साल मार्च में पहली बार नागपुर में आरएसएस के दफ्तर में गए। और अब प्रधानमंत्री ने पहली बार लालकिले की प्राचीर से संघ की प्रशंसा की है।
 
हालांकि आरएसएस के वरिष्ठ नेता और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके राम माधव संघ और मोदी के बीच कोई टकराव नहीं देखते। हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में राम माधव ने कहा कि इस तरह की अटकलें समय-समय पर लगाई जाती हैं। उनके मुताबिक, "बीजेपी और आरएसएस एक ही वैचारिक परिवार का हिस्सा हैं और दोनों के बीच कहीं कोई टकराव और मतभेद नहीं हैं। विपक्ष को जब कोई मुद्दा नहीं मिलता, तो आरएसएस को आगे लाया जाता है और कहा जाता है कि आरएसएस और बीजेपी के बीच मनमुटाव है।”
 
मनमुटाव की खबरें
मनमुटाव की बातें राम माधव सिरे से भले ही खारिज कर रहे हों लेकिन संघ प्रमुख के तमाम बयानों और 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आरएसएस को मिल रही खास तवज्जो को देखते हुए, मनमुटाव की खबरों को पूरी तरह खारिज करना आसान भी नहीं है। पिछले दस साल यानी अपने पहले दो कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरएसएस या फिर उसके प्रमुख को इतना महत्व देते कभी नहीं दिखे। यूपी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता नाम न बताने की शर्त पर यहां तक कहते हैं कि ‘मोदी के युग में तो आरएसएस को ही शक्तिहीन कर दिया गया है। अब वो खुद बीजेपी का कृपापात्र बनकर रह गया है।' 
 
आरएसएस और बीजेपी के बीच मनमुटाव और टकराव का ताजातरीन उदाहरण ये है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव इसी खींचतान में अटका हुआ है। अध्यक्ष जेपी नड्डा एक्सटेंशन पर चल रहे हैं।हिंदी का दक्षिण भारत में विरोध राजनीति है या कुछ और
 
75 साल के होने पर पद छोड़ेंगे मोदी?
लेकिन एक सवाल ये भी उठता है कि 75 साल की उम्र के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या खुद 75 साल के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ेंगे? वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता को ऐसा नहीं लगता। वो कहते हैं, "संघ प्रमुख जब 75 साल पर रिटायर होने की बात कर रहे हैं तो वो खुद के लिए भी ऐसा कह रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी पद छोड़ देंगे, ऐसा संभव नहीं लगता।” वो आगे कहते हैं, "निश्चित तौर पर मोहन भागवत का संदेश तो उन्हीं के लिए था और इस संदेश के सिग्नल को मोदी ने पकड़ा न हो, ये भी संभव नहीं है। पर पीएम पद छोड़ने की जो बात है तो इसका तो सवाल ही नहीं है।"  भारत में होने लगी मुगल, तुगलक, अकबर, औरंगजेब।के नाम से भी दिक्कत​​​​​​​
 
2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने, उससे पहले 12-13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव के परिणाम आए थे। 29 मई को मोदी तो पीएम के तौर पर शपथ लेनी थी लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से ठीक एक दिन पहले दिया। यानी संसदीय दल के नेता चुन लिए जाने के बाद भी गुजरात के सीएम का पद उन्होंने नहीं छोड़ा। इस तथ्य का हवाला देते हुए शरद गुप्ता कहते हैं, "ऐसे व्यक्ति से कैसे उम्मीद करते हैं कि वो 75 साल पूरा होने पर पीएम पद छोड़ देंगे। वो ये पद तब तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक हटा न दिए जाएं।"
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