सीरिया और इराक में आतंकी संगठन आईएस अब हार की कगार पर पहुंच गया है। लेकिन समस्याएं अब भी नहीं थमी। इन दिनों जर्मनी में आईएस कैंपों से लौटी महिलाओं के साथ आए बच्चों का क्या किया जाए, इस पर बहस चल रही है।
कौन नहीं चाहता कि दुनिया से आतंकवाद खत्म हो जाए। लेकिन आज जब सीरिया और इराक में आतंकी संगठन आईएस अपनी हार की कगार पर खड़ा है, तो दुनिया को एक और समस्या नजर आने लगी है। जर्मनी में इन दिनों एक बहस जोरों पर है। बहस इस बात पर कि आईएस के खात्मे के बाद उन महिलाओं और बच्चों का क्या होगा, जो अप्रत्यक्ष रूप से इस संगठन से जुड़े थे।
दरअसल पिछले कुछ सालों में कई महिलाओं ने कथित रूप से आईएस में शामिल होने के लिए जर्मनी छोड़ दिया था। देश से निकलने के बाद इन महिलाओं ने आईएस लड़ाकों से शादी की और इन शादियों से कई बच्चे भी हुए। लेकिन अब सवाल है कि जो महिलाएं बच्चों के साथ अब आईएस से वापस लौट रहीं है, उनके साथ क्या किया जाए।
विशेषज्ञों की राय
जर्मनी में कई लोग मानते हैं कि जो भी वापस आ रहे हैं, उनसे बच्चों को अलग कर दिया जाए। लेकिन विशेषज्ञों को यह आसान नहीं लगता। जर्मनी के राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में बच्चों और किशोरों के संरक्षण से जुड़ी कार्यकारी संस्था में काम करने वाली नोरा फ्रीत्शे के मुताबिक इस विकल्प पर सोचना भी आसान नहीं है।
उन्होंने कहा, "ऐसे बच्चों के लिए हमेशा ही खतरा बना हुआ है। सिर्फ इतना कह देने से काम नहीं चलेगा कि इनके मां-बाप कट्टर इस्लामिक विचारधारा के हैं। हमें बच्चों के हितों पर ध्यान देना होगा, न कि उनके मां-बाप की सोच पर।" नोरा कहती हैं कि किसी बच्चे को अपने परिवार से अलग करने पर निर्णय से पहले, अन्य विकल्पों पर भी सोचा जाना चाहिए। मसलन, परिवारों को परामर्शी सेवाएं देना।
बच्चों का पालन-पोषण
ऐसा भी कहा गया है कि मां-बाप के अपराध का मतलब यह नहीं है कि बच्चे की भलाई को खतरे में डाला जाए। वर्तमान में जर्मन अदालतें यह मान रही हैं कि आईएस लड़ाकों के साथ रहने वाली महिलाओं को आतंकी समूह का सदस्य नहीं कहा जा सकता। क्योंकि पुरुषों की तरह वे इन संगठनों में निष्ठा को लेकर कोई कसम या शपथ नहीं लेती। लेकिन संघीय अभियोजन कार्यालय इन महिलाओं के साथ कड़ा रुख अपनाने का समर्थक है।
अभियोजन कार्यालय का तर्क है कि ये महिलाएं इन आतंकी संगठनों को मजबूत बनाने का काम करती हैं। पत्नी और मां के तौर पर ये उन लड़ाकों की मदद करती हैं। साथ ही अपने बच्चों की ऐसे परवरिश करती हैं कि वे बच्चे आगे चलकर इन संगठनो में शामिल हों। हालांकि अभियोजन पक्ष, सुप्रीम कोर्ट में इस दलील के साथ एक बार हार चुका है। लेकिन अब सवाल है कि क्या इस पक्ष का भी आकलन किया जाना चाहिए, ताकि यह समझा जा सके कि एक बच्चे की भलाई में यह कहां तक जुड़ा है।
कुल कितने बच्चे?
जर्मन सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2012 से लेकर अब तक जर्मनी से करीब 960 लोगों ने आईएस में शामिल होने के लिए इराक और सीरिया का रुख किया। इसमें लगभग 200 महिलाएं थीं। सरकार का कहना है कि इसमें से एक तिहाई, मतलब करीब 50 महिलाएं अब तक वापस आ चुकी हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक लौटने वाली हर महिला के साथ कम से कम एक बच्चा तो है। सरकार ने बताया कि जो बच्चे इन महिलाओं के साथ वापस लौटे हैं, उनमें से कई शिशु हैं। लेकिन देश की घरेलू सुरक्षा एजेंसी के पास इसे लेकर कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है। दरअसल फेडरल कार्यालय (बीएफवी) के पास 14 साल से कम उम्र के बच्चों का डाटा इकट्ठा करने की अनुमति नहीं है। साथ ही यह पता करना भी मुश्किल है कि विदेशों में अपने प्रवास के दौरान महिलाओं के कितने बच्चे थे।
बच्चों के पास नहीं विकल्प
बीएफवी के प्रमुख हंस गेऑर्ग मासेन ने हाल में ही चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि युद्ध क्षेत्र और कट्टरपंथी आतंकी समूह के बीच से लौटे बच्चे अब यहां समाज में घुल-मिल रहे हैं। मासेन के मुताबिक बहुत से बच्चों का पूरी तरह ब्रेनवॉश किया जा चुका है और कट्टरपंथ की ओर इनका झुकाव साफ नजर आता है। आईएस बच्चों को नए जमाने का लड़ाकू कह कर उनका प्रचार कर रहा है। मासेन ने कहा, "इस माहौल में इनका लौटना और द्वितीय श्रेणी जिहादियों की तरह इनकी परवरिश खतरनाक हो सकती है।"
अतीत छोड़ने का मौका
वॉयलेंस प्रिवेंशन नेटवर्क (वीपीएन) के थोमास म्यूके इस तर्क से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा, "जहां तक बच्चों की बात है, मैं नहीं मानता कि वे कट्टरपंथी हैं।" म्यूके मानते हैं कि बच्चे एक विचारधारा को मानते हैं लेकिन उन्होंने इसको अपनाया नहीं होता क्योंकि बच्चों पर यह विचारधारा थोपी जाती है। म्यूके का मानना है कि बच्चे पीड़ित हैं। इसलिए यह जरूरी है कि वे एक स्वस्थ माहौल में पले-बढ़ें। वे कहते हैं कि इन बच्चों को अपने अतीत को पीछे छोड़ने का मौका मिलना चाहिए। म्यूके को लगता है कि इन बच्चों को थेरेपी की भी जरूरत होती है ताकि वे अपने अनुभवों से छुटकारा पा सकें। उनके मुताबिक बच्चों के विकास में समाज एक सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।
ऊटा श्टाइनवेयर/एए