तालिबान और अमेरिका के बीच दोहा में शांति वार्ता चल रही है। लेकिन इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान की शांति को भंग करने में जुटा है। अफगानिस्तान में आईएस का फैलना भारत और बाकी दक्षिण एशिया के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
17 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक शादी समारोह में हुए आत्मघाती हमले में 63 लोगों की मौत हो गई। इस धमाके की जिम्मेदारी आईएस से जुड़े हुए एक आतंकी संगठन ने ली है। यह शादी हजारा शिया समुदाय के लोगों की थी। इस समुदाय के लोग सुन्नी-बहुल अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अकसर कट्टर सुन्नियों के निशाने पर होते हैं। आईएस भी इन्हें निशाना बनाकर हमले करता रहता है।
इस हमले के चश्मदीद दूल्हे के एक रिश्तेदार ने डीडब्ल्यू से बताया, "हमारे देश में कुछ भी सुरक्षित नहीं है। वो हमारे स्कूलों, स्पोर्ट्स क्लबों को निशाना बनाते रहे हैं। अब वो हमारी शादियों में भी बम धमाके करने लगे हैं।" इस हमले के बाद पूरे देश में आक्रोश का माहौल है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि वो अपने देश से आईएस का सफाया कर देंगे। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि आईएस अफगानिस्तान में और मजबूत हो रहा है। अब इसके साथ कई सारे तालिबान लड़ाके भी जुड़ सकते हैं। कई सारे तालिबानी जिहादी दोहा में अमेरिका के साथ चल रही तालिबान की शांति वार्ता से खुश नहीं हैं। हालांकि तालिबान ने इस हमले की निंदा की है और इसमें किसी भी तरह शामिल होने से इंकार किया है।
पैर जमा रहा है आईएस
अफगानिस्तान में अभी तक आईएस में शामिल लोग पहले पाकिस्तानी तालिबान में रहे हैं। ये लोग तालिबान छोड़कर आईएस में भर्ती हो गए। तालिबान और आईएस के बीच अफगानिस्तान में 2014 के आखिर से ही लड़ाई जारी है। आईएस ने जनवरी 2015 में अफगानिस्तान के पूर्वी हिस्से में अपना दबदबा बना लिया था। आईएस और तालिबान दोनों ही अफगानी सरकार के विरोधी हैं। लेकिन इन दोनों की विचारधारा और नेतृत्व में मतभेद हैं। इसी के चलते दोनों गुटों के बीच हिंसक झड़पें होती रहती हैं। दोनों ही गुट सरकार को हटाकर अफगानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण करना चाहते हैं।
अगर अफगानिस्तान में देखा जाए तो तालिबान आईएस से ज्यादा ताकतवर है। तालिबान अपने आप को मुख्य विपक्षी इस्लामिक समूह बताता है। तालिबान का लक्ष्य पश्चिमी देशों की कथित समर्थक सरकार को बर्खास्त कर अफगानिस्तान में इस्लामिक राज्य की स्थापना करना है। जबकि आईएस का लक्ष्य अफगानिस्तान को दक्षिण एशिया के लिए अपना बेस बनाने का है। जिससे वो इस इलाके के बाकी देशों में अपना विस्तार कर सके। काबुल में रहने वाले अफगानी राजनीतिक विश्लेषक युनूस फकूर कहते हैं, "आईएस की करतूतें इतनी हिंसक हैं कि दोनों की तुलना करने पर लोग तालिबान को बेहतर समझते हैं।"
सांप्रदायिक बंटवारा
शादी में हुआ बम धमाका आईएस का शिया समुदाय पर पहला हमला नहीं है। अफगानिस्तान में आईएस ने शियाओं पर 2017 और 2018 में कई बार हमले किए। अधिकांश हमले शियाओं के धार्मिक स्थलों पर किए गए जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। काबुल में रहने वाले सुरक्षा विश्लेषक वाहिद मुजदाह कहते हैं कि आईएस कहीं ना कहीं अफगानिस्तान के लोगों के बीच सांप्रदायिक बंटवारा करना चाहता है। वो कहते है, "अफगानिस्तान में पैर जमाने में आईएस को तालिबान से कड़ी चुनौती मिल रही है। अगर आईएस को यहां खुद को स्थापित करना है तो उसे स्थानीय सुन्नी कट्टरपंथियों की मदद चाहिए। इसलिए वो लगातार शियाओं पर हमले कर खुद को तालिबान से अलग दिखाना चाह रहा है।"
अफगानिस्तान के सुरक्षा जानकार आशंका जता रहे हैं कि आईएस देश का सांप्रदायिक बंटवारा कर दो हिस्सों में तोड़ सकता है। हालांकि मुजदाह इस राय से इत्तेफाक नहीं रखते। वो कहते हैं, "अफगानी शियाओं पर हर हमले के बाद इस्लाम के हर पंथ के धार्मिक नेता पीड़ितों के पक्ष में खड़े होते हैं और ऐसे हमलों की निंदा करते हैं। लेकिन अगर सरकार ने ऐसे हमलों को रोकने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए तो एक तो बंटवारे की आशंका गहरा सकती है।"
मध्य पूर्व से दक्षिण एशिया की ओर
इराक और सीरिया में भारी नुकसान उठाने के बाद आईएस ने 2017 से अफगानिस्तान की ओर ध्यान देना शुरू किया। इराक और सीरिया में आईएस की हार के बाद जानकारों ने आशंका जताई थी कि बड़ी संख्या में आईएस के लड़ाके अफगानिस्तान या पाकिस्तान जा सकते हैं। हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी में काम कर रहे दक्षिण एशिया विशेषज्ञ जीगफ्रीड ओ वोल्फ कहते हैं, "इराक और सीरिया में हारने के बाद अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आईएस की गतिविधियों में बढ़ोत्तरी दिख सकती है। क्योंकि आईएस को अपनी आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए एक नई जगह की जरूरत होगी।"
आईएस की मौजूदगी अब अफगानिस्तान के नरसंहार तक ही सीमित नहीं रह गई है। दूसरे राज्यों में भी आईएस ने अपनी पकड़ मजबूत की है। सुरक्षा के हिसाब से सुरक्षित माने जाने वाले उत्तरी इलाकों में भी इसकी मौजूदगी है। आईएस या आईएस समर्थक समूहों के हमले पाकिस्तान में भी हुए हैं। जानकारों का मानना है कि आईएस को पाकिस्तानी कट्टरपंथी संगठनों का समर्थन मिल सकता है क्योंकि वो शियाओं के खिलाफ हैं और पाकिस्तान में ईरान के प्रभाव का विरोध करते हैं। अफगानी सरकार हमेशा से पाकिस्तान पर तालिबान का समर्थन करने और दूसरे चरमपंथी समूहों की मदद से वहां की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाती रही है।
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान फिलहाल आईएस को अपना सहयोगी नहीं मानता है। वो नहीं मानता कि आईएस दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की कोई मदद कर सकता है। लेकिन हो सकता है भविष्य में चीजें बदल जाएं क्योंकि सऊदी की वहाबी विचारधारा दोनों को एकजुट करने का काम कर सकती है। आईएस का पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्रभुत्व बढ़ना भारत के लिए भी खतरा हो सकता है।
माऊद सैफुल्ला/आरएस