दक्षिण पाकिस्तान के एक गांव में बच्चों के एचआईवी से पीड़ित होने की पुष्टि हो रही है और सैकड़ों मां बाप बदहवासी के आलम में हैं। लोगों का आरोप है कि एक डॉक्टर ने संक्रमित सीरिंज का इस्तेमाल कर मासूमों को यह बीमारी दी है।
सिंध प्रांत में लरकाना के बाहरी इलाके में मौजूद गांव के पांच कमरों में बच्चों की जांच चल रही है। यहां लोगों की भारी भीड़ है और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पहुंची पुलिस बारीकी से परिजनों पर नजर रख रही है। स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक बीते एक महीने में यहां 400 से ज्यादा एचआईवी से संक्रमित लोगों की पहचान हुई है जिनमें बहुत से बच्चे हैं।
'झोला छाप' डॉक्टरों और मेडिकल मानकों का पालन ना होने की वजह से यह नौबत आई है। गरीब गांव में इस संकट ने लोगों में भय और गुस्सा भर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि या तो इसके पीछे कोई बड़ी चूक हुई है या फिर मुमकिन है कि बच्चों के एक स्थानीय डॉक्टर ने जान बूझ कर यह हरकत की है। बच्चों की जांच के लिए बने अस्थायी क्लीनिक में मौजूद डॉक्टर ने बताया, "वे दर्जनों की तादाद में आ रहे हैं।" क्लीनिक में भी इन बच्चों की जांच के लिए पर्याप्त उपकरण और लोग नहीं हैं।
मुख्तार परवेज बड़ी व्यग्रता से अपनी बच्ची के परीक्षण का इंतजार कर रहे हैं, उन्हें डर है कि उसका बुखार शायद एचआईवी की वजह से है। दूसरे कई लोगों को पहले ही पता चल चुका है कि उनका बच्चा संक्रमित है। निसार अहमद को तीन दिन पहले बच्चे के संक्रमित होने का पता चला। वे दवा की तलाश में हैं। निसार गुस्से में कहते हैं, "मैं शाप देता हूं उसे (डॉक्टर को) जिसकी वजह से ये बच्चे संक्रमित हुए हैं।" उनके पास ही इमाम जादी अपने पांच बच्चों के साथ खड़ी हैं जिनका परीक्षण होना है। उनके पोते में संक्रमण का पहले ही पता चल चुका है। उन्होंने कहा, "पूरा परिवार परेशान है।"
सिंध में इस मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का कहना है कि जिस डॉक्टर पर आरोप है वह खुद भी एचआईवी संक्रमित पाया गया है। पास के शहर की एक जेल में बंद डॉक्टर ने आरोपों से इनकार किया है कि उसने जान बूझ कर मरीजों में एचआईवी वायरस इंजेक्शन से डाले हैं। डॉक्टर ने शिकायत की कि उसे जेल में आम अपराधियों के साथ रखा गया है।
जिन बच्चों में एचआईवी का पता चला है उनके मां बाप के लिए सरकार की जांच का कोई बहुत महत्व नहीं है अगर उन्हें इस बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी और जरूरी दवाइयां नहीं मिलती। उन्हें यह भी डर है कि उनके दूसरे बच्चे भी इनके संपर्क में रहने के कारण कहीं संक्रमित ना हो जाएं।
लोगों को चिंता है कि एचआईवी के संपर्क में आने के कारण उनके बच्चों का भविष्य अंधेरे में है। खासतौर से ऐसे देश में जहां लोगों में इस बीमारी या फिर इसके इलाज के बारे में बहुत कम जानकारी है। एक रोती हुई मां ने कहा, "अब उसके साथ कौन खेलेगा? और किन के साथ वह बड़ी होगी, कौन उससे शादी करना चाहेगा?" उनकी चार साल की बेटी में एचआईवी का पता चला है।
लंबे समय तक पाकिस्तान में एचआईवी के ज्यादा मामले नहीं दिखे लेकिन अब यह बीमारी वहां खतरनाक रूप से फैल रही है। खास तौर से यौनकर्मियों और नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वालों में। केवल 2017 में देश भर में एचआईवी के 20 हजार नए मामलों का पता चला। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक फिलहाल एशिया में पाकिस्तान दूसरा ऐसा देश है जहां एचआईवी सबसे तेजी से फैल रहा है।
पाकिस्तान की बढ़ती आबादी पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ बढ़ाती जा रही है, सरकार इस पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं करती। इस वजह से गरीब और ग्रामीण इलाकों के लोग झोला छाप डॉक्टरों और नीम हकीमों के भरोसे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएआईडीएस ने एक बयान में कहा है, "सरकार की कुछ रिपोर्टों के मुताबिक करीब 6 लाख झोलाछाप डॉक्टर पाकिस्तान में काम कर रहे हैं। इनमें से करीब 270,000 तो केवल सिंध प्रांत में ही हैं।"
प्रांतीय स्वास्थ्य अधिकारियों का भी कहना है कि इन क्लीनिकों में मरीजों के बीमारी या वायरस से संक्रमित होने का बहुत खतरा है क्योंकि यहां इलाज के लिए इंजेक्शन देना सबसे पहला काम माना जाता है। सिंध में एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के प्रोग्राम मैनेजर सिकंदर मेमन ने बताया, "पैसा बचाने के लिए ये झोलाछाप डॉक्टर एक ही सिरिंज से इंजेक्शन देते हैं। एचआईवी के फैलने की यह सबसे बड़ी वजह हो सकती है।"
कराची की आगा खां यूनिवर्सिटी में संक्रामक बीमारियों की विशेषज्ञ बुशरा जमील का कहना है कि बड़ी संख्या में अयोग्य डॉक्टर के साथ ही, "सिरिंज का दोबारा इस्तेमाल, असुरक्षित रूप से खून चढ़ाना और दूसरे असुरक्षित तरीकों" ने हाल के वर्षों में एचआईवी मामलों में बहुत इजाफा किया है।
एनआर/एके (एएफपी)