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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 9 जनवरी 2024 (19:22 IST)

अयोध्या का राम मंदिर: किसी के लिए सपना, किसी के लिए खून भरी यादें

अयोध्या का राम मंदिर: किसी के लिए सपना, किसी के लिए खून भरी यादें - Ayodhya's Ram temple a dream for some, bloody memories for others
-सीके/एसएम (एएफपी)
 
Ram Temple of Ayodhya : संतोष दुबे के लिए राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह आजादी के दिन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है जबकि मोहम्मद शाहिद के लिए 6 दिसंबर, 1992 बस खून भरी यादों की तारीख है। राम मंदिर अलग-अलग भावनाओं का प्रतीक है। भारत में कई लोगों के लिए अयोध्या में होने वाला राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह एक पुराने सपने का सच होना है लेकिन मोहम्मद शाहिद जैसे मुसलमानों के लिए यह दिन सिर्फ खून से सनी यादें लेकर आएगा।
 
52 साल के शाहिद को 1992 का वह दिन स्पष्ट रूप से याद है, जब धार्मिक उन्माद के माहौल में कुदालों और हथौड़ों से लैस सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था और अपने पीछे मौत और बर्बादी का एक लंबा सिलसिला छोड़ गए थे।
 
शाहिद ने एएफपी को बताया, 'मेरे पिता को एक भीड़ ने एक गली में दौड़ा दिया। उन पर कांच की एक टूटी बोतल से वार किया और फिर उन्हें जिंदा जला दिया।' शाहिद ने आगे बताया, 'मेरे चाचा का भी बेरहमी से खून कर दिया गया। हमारे परिवार के लिए वह एक लंबी, काली रात थी।'
 
चुनाव अभियान की शुरुआत
 
मस्जिद का विध्वंस एक ऐसा भूकंप था जिसके झटके पूरे देश में महसूस किए गए। कई जगहों पर दंगे छिड़ गए जिनमें करीब 2,000 लोग मारे गए। मृतकों में अधिकांश मुसलमान थे।
 
22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक भव्य समारोह में जिस मंदिर का उद्घाटन करेंगे, उसे उसी बाबरी मस्जिद की जगह बनाया गया है। मोदी की पार्टी बीजेपी ने दशकों तक राम मंदिर के निर्माण के लिए अभियान चलाया। बीजेपी-आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
 
गुलाबी बलुआ पत्थर और संगमरमर से बने इस मंदिर परिसर के निर्माण की अनुमानित लागत 20 अरब रुपए है। सरकार का कहना है कि पूरी की पूरी धनराशि जनता से मिले चंदे से जुटाई गई है। कई लोग मंदिर के उद्घाटन को आने वाले लोकसभा चुनाव के अभियान की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं।
 
उम्मीद की जा रही है कि मंदिर के दरवाजे खोल दिए जाने के बाद अयोध्या में हजारों तीर्थयात्री आएंगे। शाहिद उनके बारे में सोच कर ही कांप उठते हैं। वे कहते हैं, 'मेरे लिए यह मंदिर बस मौत और बर्बादी का प्रतीक है।' 
 
सपना या डरावनी सच्चाई?
 
56 साल के संतोष दुबे मस्जिद को गिराने वाली भीड़ का हिस्सा थे। वे कहते हैं कि 22 जनवरी को मंदिर का उद्घाटन देश के उस दिन से 'ज्यादा महत्वपूर्ण' होगा जिस दिन 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। उन्होंने एएफपी को बताया, 'मैंने मंदिर के लिए अपना खून और पसीना बहाया है। सभी हिन्दुओं के लिए उनके जीवनभर का एक सपना सच हो रहा है।'
 
दुबे याद करते हैं कि कैसे 1992 में विध्वंस के 1 दिन पहले हजारों धार्मिक कार्यकर्ता अयोध्या में इकट्ठा हुए थे। उन्होंने बताया, 'वह सब सुनियोजित था। हमने मस्जिद को गिराने का दृढ़ निश्चय कर लिया था, चाहे जो हो जाए।' दुबे समेत करीब 50 पुरुष रस्सियों की मदद से मस्जिद के केंद्रीय गुंबद पर चढ़ गए और हथौड़ों से वार कर उसे मलबे में बदल दिया।
 
दुबे उस उन्माद में मस्जिद की छत पर से गिर पड़े थे और उनकी 17 हड्डियां टूट गई थीं। उसके बाद उन्होंने लगभग 1 पूरा साल आपराधिक षड्यंत्र और धार्मिक दुश्मनी फैलाने के आरोप में जेल में गुजारा। बाद में एक अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। वे बताते हैं, 'लेकिन मुझे कोई अफसोस नहीं है। मैंने जो किया, उस पर मुझे गर्व है। मेरा जन्म भगवान राम की सेवा करने के लिए हुआ है। वो भारत की आत्मा हैं।'
 
दुबे ने यह भी बताया कि उसके बाद जो खूनखराबा हुआ, उससे वह विचलित नहीं हुए। वह कहते हैं, 'मैं राम के लिए अपना जीवन दे सकता हूं और राम के लिए जीवन ले भी सकता हूं। कुछ मुसलमान मारे गए तो क्या हुआ? इस मुद्दे के लिए कई हिन्दुओं ने भी अपने जीवन का त्याग किया है।'
 
क्या और मस्जिदें गिरेंगी?
 
जहां कभी मस्जिद हुआ करती थी, वह स्थान दशकों तक खाली पड़ा रहा। सालों के कानूनी दांव-पेंच के बाद 2019 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के निर्माण की अनुमति दे दी। अदालत ने एक नई मस्जिद के निर्माण का भी आदेश दिया।
 
इसके लिए अयोध्या से करीब 25 किलोमीटर दूर जमीन के एक टुकड़े को चिह्नित किया गया। इस समय वहां बस एक खाली मैदान और एक सूनी दीवार है जिस पर चिपके एक पोस्टर पर 'निर्माणाधीन मास्टरपीस' लिखा है। मस्जिद के प्रस्तावित नक्शे की एक तस्वीर भी लगी है।
 
इस परियोजना के लिए चंदा इकट्ठा करने का काम अभी शुरू नहीं हुआ है, क्योंकि अयोध्या के मुसलमान समुदाय में कई लोग दूरदराज की यह जगह दिए जाने से खुश नहीं हैं। उधर अदालत के फैसले ने एक्टिविस्ट समूहों को दूसरे स्थानों पर भी ऐसी मस्जिदों के खिलाफ दावे करने का बल दे दिया है जिन्हें उनके हिसाब से मुगलकाल में हिन्दू मंदिरों के ऊपर बनाया गया था।
 
अयोध्या में मुसलमानों की एक स्थानीय संस्था के अध्यक्ष आजम कादरी आशंका जताते हैं कि और कई मस्जिदों का वही हश्र हो सकता है, जो बाबरी मस्जिद का हुआ। उन्होंने एएफपी को बताया, 'मुसलमानों को चैन से जीने दिया जाना चाहिए और उनके प्रार्थना के स्थल उनसे नहीं छीने जाने चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई खत्म होनी चाहिए। सिर्फ प्यार और भाईचारा होना चाहिए।'
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