Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) ,
रविवार, 3 जून 2007 (08:29 IST)
स्पिनरों के पड़ सकते हैं लाले
अनिल कुंबले के बाद कौन। इसका जवाब भारतीय क्रिकेट बोर्ड के पास नहीं है और इसीलिए स्पिनरों का गढ़ कहे जाने वाले भारत में अभी ऐसा कोई भी स्पिनर नहीं दिखायी देता, जो टेस्ट मैचों में टीम की जीत का सूत्रधार बन सके।
ईरापल्ली प्रसन्ना, बिशनसिंह बेदी, श्रीनिवास वेंकटराघवन और बीएस चंद्रशेखर जैसी स्पिन चौकड़ी अब शायद ही देखने को मिले। भारत में 60 और 70 के दशक में स्पिनरों की खान हुआ करती थी और उस जमाने के स्पिनरों ने दूसरे देशों के गेंदबाजों को फिरकी की इस कला को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
जब यह चौकड़ी अवसान पर थी, तब दिलीप दोषी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। बीच में नरेंद्र हिरवानी, मनिंदर सिंह, राजेश चौहान और वेंकटपति राजू जैसे स्पिनर आए लेकिन केवल कुंबले ने ही स्पिन परंपरा को आगे बढ़ाया। हरभजनसिंह ने उन्हें अच्छा सहयोग दिया, लेकिन इस परंपरा में आगे कोई नाम जुड़ता नहीं दिख रहा है जिससे पूर्व क्रिकेटर भी चिंतित हैं।
स्पिन चौकड़ी के नायक बेदी इसके लिए बीसीसीआई को जिम्मेदार ठहराते हैं। उन्होंने कहा सबसे बड़ी समस्या है कि हमें अपनी ताकत का अंदाजा ही नहीं है। बेदी ने ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था अपनाने के लिए बोर्ड की आलोचना करते हुए कहा कि असंतुलित व्यवस्था की वजह से ही ऐसा हो रहा है। हमें अपनी क्षमता का अनुमान ही नहीं है। सैयद किरमानी स्पिन के प्रति बरते जा रहे ढुलमुल रवैये से नाखुश लगे। उन्होंने कहा हमारे जमाने में देश के पास विश्व के बेहतरीन स्पिनर थे। वैसे खिलाड़ी शायद ही देखने को मिलें। हमारे जमाने में वनडे नहीं थे तो टेस्ट मैचों पर ही ध्यान दिया जाता था। पहले गेंदबाजों के हिसाब से पिच बनाई जाती थी।
भारत को कई मैचों में जीत दिलाने वाले कुंबले वन डे से विदाई ले चुके हैं। हरभजन ने भी अपने दूसरा के प्रयोगों से मैच में रोमांच पैदा किया, लेकिन उनके अस्त्रों की धार लगता है कुंद पड़ गई है। अब रमेश पोवार राजेश पवार और पीयूष चावला जैसे कुछ खिलाड़ी ही ऐसे हैं जो स्पिन परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं।
अपनी विविधतापूर्ण गेंदबाजी के लिए मशहूर निखिल चोपड़ा ने कहा जी हाँ कमी तो साफ दिखाई दे रही है। अगर हम अभी नहीं संभले तो टेस्ट जीतना ही मुश्किल हो जाएगा। हमारे जमाने में कोचिंग में सीमेंट पर गेंदबाजी कराई जाती थी। जिससे गेंद ज्यादा टर्न लेती थी और उसमें ज्यादा घुमाव होते थे।
स्पिनरों की कमी से लगता है कि भारत अपनी क्रिकेट का पारंपरिक स्वरूप खोता जा रहा है। क्रिकेट में व्यावसायिकता का स्पिन पर उलटा प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा देश में तेज गेंदबाजों को अधिक बढ़ावा देना और तेज पिच बनाने की मुहिम भी स्पिन गेंदबाजी पर गहरा आघात है।
चोपड़ा ने कहा अब हर पाँच किमी की दूरी पर एक कोचिंग अकादमी है और समस्या शुरूआती दौर से ही होती है। अगर बेसिक्स ही मजबूत नहीं होगा तो गेंदबाजी में भी इसका असर होगा इसलिये जब किसी स्पिनर का खराब दौर होता है तो वह संभल नहीं पाता। अब गुणवत्ता के बजाय मात्रा पर ध्यान दिया जाता है।