भारत के लिए भाग्यशाली रहे गावस्कर
सुनील गावस्कर ने 1983 में भारत के विश्व कप अभियान में छह मैच में केवल 59 रन बनाए, लेकिन वे टीम के लिए भाग्यशाली रहे, क्योंकि जिस मैच में भी यह महान सलामी बल्लेबाज क्रीज पर उतरा, उसमें भारतीय टीम को जीत मिली। भारत ने 1983 विश्व कप में फाइनल की जीत तक कुल आठ मैच खेले, लेकिन इनमें से दो मैच में टीम प्रबंधन ने गावस्कर को अंतिम एकादश में नहीं चुना। संयोग से भारत इन दोनों मैच में हार गया। भारतीय टीम ने अपने अभियान की शुरुआत तब दो बार के चैंपियन वेस्टइंडीज की अजेय मानी जा रही टीम को 34 रन से हराकर की। इसमें गावस्कर ने 19 रन बनाए। जिम्बाब्वे के खिलाफ लिटिल मास्टर चार रन ही बना पाए, लेकिन भारत इस मैच में पाँच विकेट से जीत गया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गावस्कर को अंतिम एकादश में नहीं उतारा गया तथा कृष्णामाचारी श्रीकांत के साथ रवि शास्त्री ने पारी का आगाज किया। भारतीय कप्तान कपिल देव के ऑलराउंड प्रदर्शन के बावजूद यह मैच टीम 162 रन के बड़े अंतर से हार गई। वेस्टइंडीज के खिलाफ अगले मैच में भी गावस्कर को बाहर रखा गया और इसमें भारतीय टीम को 66 रन से हार का मुँह देखना पड़ा। टीम प्रबंधन शायद गावस्कर से जुड़े भाग्य को समझ गया और उसने जिम्बाब्वे के खिलाफ अगले मैच में इस पूर्व कप्तान को अंतिम एकादश में रख दिया। गावस्कर पहले ओवर में शून्य पर आउट हो गए, लेकिन भारत ने कपिल की एतिहासिक 175 रन की पारी के बूते पर यह मैच 31 रन से जीता। गावस्कर इसके बाद फाइनल तक प्रत्येक मैच में खेले और भारत ने हर मैच में जीत दर्ज की। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम लीग मैच में गावस्कर के बल्ले से केवल नौ रन निकले, लेकिन मदनलाल और रोजर बिन्नी की शानदार गेंदबाजी से भारत ने 118 रन के विशाल अंतर से जीत दर्ज की। इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में गावस्कर ने इस टूर्नामेंट में अपना सर्वाधिक स्कोर 25 रन बनाया। भारत ने मोहिंदर अमरनाथ के ऑलराउंड प्रदर्शन तथा यशपाल शर्मा और संदीप पाटिल की शानदार बल्लेबाजी से यह मैच छह विकेट से जीता। वेस्टइंडीज के खिलाफ फाइनल में गावस्कर दो रन बनाकर पवेलियन लौट गए और भारत की पूरी टीम 183 रन पर लुढ़क गई, लेकिन कपिल देव के रणबांकुरों ने 43 रन से जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया।