ओपनिंग और अति विश्वास ले डूबा
अनवर जे. अशरफ/राम यादवट्वेंटी-20 क्रिकेट के विश्व विजेता भारत को खराब ओपनिंग और जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास ले डूबा। सहवाग की कमी भी ख़ूब खली और टीम टूर्नामेंट से ठीक पहले उनके नाम पर उपजे विवाद ने भी हार की बुनियाद रख दी। भारत के सलामी बल्लेबाजों ने टीम को मुश्किल में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विश्वकप चैंपियन रह चुकी टीम इंडिया की कलई सुपर-8 के पहले मैच से ही खुलने लगी। तेज और शॉर्ट गेंदों के सामने भारतीय ओपनर ढहने लगे और दोनों ही अहम मैचों में सलामी बल्लेबाजों ने टीम का बेड़ा गर्क कर दिया। तूफानी बल्लेबाज़ वीरेन्द्र सहवाग की कमी भी काफी खली और वीरू के बगैर गौतम गंभीर भी अधूरे-अधूरे ही दिखाई दिए।इंग्लैंड और वेस्टइंडीज, दोनों ही टीमों के खिलाफ भारत के ओपनर बल्लेबाजों ने सिर्फ 12-12 रन बनाए, जिसके बाद जाहिर है कि टीम पर दबाव बढ़ गया। सुरेश रैना के खराब फॉर्म ने टीम के प्रदर्शन को और उलझा दिया। तीन मैचों में रैना ने कुल 17 रन बनाए। इंग्लैंड के खिलाफ दो, वेस्टइंडीज के खिलाफ पाँच। यानी बेकार शुरुआत के बाद टीम को दबाव में लाने का पूरा जिम्मा रैना पर ही रहा।पूर्व विकेट कीपर सैयद किरमानी जब कहते हैं कि टीम इंडिया सहवाग की जगह पर सही ओपनर को नहीं चुन पाई, तो शायद बिलकुल सही कहते हैं। सहवाग की धुनाई भरी शुरुआत किसी भी विरोधी के हौसले पस्त कर देती है। पिछले विश्वकप में इसी इंग्लैंड के खिलाफ भारत ने पहले विकेट के लिए 136 रन बनाए थे, जिसके बाद टीम एकतरफा मुक़ाबले में जीत गई थी। सहवाग की बदौलत दूसरे मैचों में भी भारत ने बेहतरीन ओपनिंग की थी। अनिल कुंबले और प्रसन्ना भी मानते हैं कि भारत सहवाग का विकल्प नहीं खोज पाया।सहवाग को लेकर मीडिया में उठे सवाल और उसके जवाब में धोनी की आक्रामकता ने भी टीम की बहुत बड़ी ऊर्जा ले ली। मीडिया रिपोर्टों की सफाई के लिए माही मीडिया के सामने पूरी टीम की परेड कराने लगे। खेल से ज्यादा ध्यान विवादों और उन्हें शांत कराने पर लगा रहा।इसके साथ कप्तान धोनी का ज़रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास भी टीम को ले डूबा।हर हार के बाद धोनी कहते रहे कि उनसे ग़लती हो गई लेकिन आगे के मैच जीत कर इस गलती को पाट लेंगे, लेकिन कप्तान ने मैच जीतने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। पुरानी गलतियों से कोई सीख नहीं ली। रोहित शर्मा ने पाकिस्तान के खिलाफ अभ्यास मैच में भले ही टीम को अच्छी ओपनिंग दी हो, लेकिन असली मुकाबले में ढेर होते रहे। रैना नहीं चल रहे थे, लेकिन धोनी उन्हें जबरदस्ती चला रहे थे। हर बार नंबर तीन पर भेजा और हर बार रैना उल्टे पाँव पैवेलियन लौट आए।धोनी ने इसके अलावा वक्त से पहले बेवजह इस बात का एलान कर दिया कि वह खुद कभी नंबर तीन पर नहीं खेलेंगे। शायद ऐसे किसी बयान की जरूरत नहीं थी क्योंकि क्रिकेट पर जरूरत और मौके की नजाकत को देखते हुए बड़े बदलाव किए जाते हैं। धोनी के इस एलान ने विरोधी खेमों को कम से कम एक राज तो बता ही दिया।इन सबके बीच आसान शुरुआती मुक़ाबलों की वजह से भी टीम इंडिया वर्ल्ड कप की चुनौती नहीं भांप पाई।दो साल पहले जब ट्वेन्टी 20 क्रिकेट का पहला वर्ल्ड कप खेला गया, तब दुनिया इस छोटे खेल से अनजान थी। अंतरराष्ट्रीय टीमें खुद को इस खेल के लिए ढाल रही थीं और मुक़ाबलों में वैसा पैनापन नहीं था। आज दो साल बाद न सिर्फ टीमें 20 ओवर के क्रिकेट के लिए तैयार हो चुकी हैं, बल्कि आईपीएल जैसे मुक़ाबलों ने खिलाड़ियों में जबरदस्त तजुर्बा भी भर दिया है। टीम इंडिया की सोच का कोई कोना शायद इस बात में लगा था कि मजबूत टीम के साथ आसान जीत हासिल हो सकती है।वैसे लगातार लंबे वक्त तक लगातार क्रिकेट खेलने और भारत से बाहर रहने पर भी टीम इंडिया पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ा होगा। विश्वकप से ठीक पहले डेढ़ महीने तक दक्षिण अफ्रीका में ट्वेंटी-20 क्रिकेट के आईपीएल मुक़ाबले खेले गए।ज़ाहिर है, वहाँ सभी टीमों के खिलाड़ी थे लेकिन सबसे ज्यादा भागीदारी भारतीय क्रिकेटरों की ही थी।जीत के साथ अगर कप्तान की तारीफ़ होती है तो हार के साथ बुराई भी होगी, नाराजगी भी होगी। कप्तान के तौर पर छोटे वक्त में बड़ा नाम कमाने वाले धोनी को आगे एक संयमित और संतुलित टीम के साथ समझबूझ वाले फैसले लेने होंगे।