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Last Modified: मंगलवार, 9 नवंबर 2021 (14:11 IST)

अपनी कप्तानी की आलोचना को कोचिंग से मिटाने का द्रविड़ के पास सुनहरा अवसर, लेकिन सामने होंगी यह चुनौतियां

अपनी कप्तानी की आलोचना को कोचिंग से मिटाने का द्रविड़ के पास सुनहरा अवसर, लेकिन सामने होंगी यह चुनौतियां - Rahul Dravid eyes to vanish captaincy fiasco before taking role of head coach
नई दिल्ली: अपनी कप्तानी के कार्यकाल में राहुल द्रविड़ ने 'सुपरस्टार पॉवर' का स्याह चेहरा देखा था। उन्होंने भारत की पारी तब समाप्ति की घोषणा की थी, जब सचिन तेंदुलकर 194 रन पर खेल रहे थे। तब उनकी खूब आलोचना हुई थी। इसके अलावा अक्सर कप्तान के रूप में उनकी रणनीतियों को भी रक्षात्मक कहा जाता था। उनकी कप्तानी कार्यकाल में कुछ सीनियर खिलाड़ियों ने उनकी बात नहीं मानी, कुछ ने अपना बल्लेबाज़ी क्रम बदलने से मना कर दिया।

उनकी कप्तानी की सबसे बड़ी कालिख रही वनडे विश्वकप 2007 जिसमें भारत को बांग्लादेश जैसी टीम से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद टीम श्रीलंका से भी हार गई और वनडे विश्वकप के राउंड रॉबिन राउंड में भी जगह नहीं बना पायी। भारत 3 में से 2 मुकाबले हारकर वनडे विश्वकप से बाहर हो गई।

कुल मिलाकर आख़िर में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। भारत जब टी-20 विश्वकप में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना पहला मैच खेलने ही वाला था उसके 1-2 दिन पहले ही राहुल द्रविड़ ने वनडे की कप्तानी छोड़ दी। हालांकि इससे पहले वह टीम इंडिया को साउथ अफ़्रीका में पहली टेस्ट जीत और इंग्लैंड में सीरीज़ जिता चुके थे। फिर भी उनके कार्यकाल को 'अधूरा' माना जाता है।राहुल द्रविड़ ने 79 वनडे मैचों में कप्तानी की जिसमें टीम इंडिया को 42 में जीत मिली और 33 में हार।

भारत के सीमित ओवर क्रिकेट में द्रविड़ के संन्यास लेने के बाद से कुछ ख़ास बदलाव नहीं हुआ है। टीम के अधिकतर बल्लेबाज़ शीर्ष तीन में बल्लेबाज़ी करना चाहते हैं, जब गेंद नई और कठोर होती है। 2006/07 में जब द्रविड़ कप्तान और ग्रेग चैपल कोच हुआ करते थे, तब भी यह समस्या उभरी थी। तब उन्होंने टीम के सबसे वर्सटाइल बल्लेबाज़ों को मध्य क्रम में भेज दिया था। अब वह इस समस्या का क्या समाधान लाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।
 

स्टार कल्चर से करने होंगे दो दो हाथ

शायद यही कारण है कि लंबे समय से राहुल द्रविड़ टीम इंडिया के कोच का पद संभालने के लिए अनिच्छुक थे। अब जब वह तैयार हो गए हैं, तो उनके सामने फिर से वही चुनौतियां हैं जो उनके कप्तानी के दौरान आईं थी। टीम इंडिया में अभी भी सुपरस्टार खिलाड़ियों की भरमार है।

भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो सीरीज़ जीत चुकी है, इंग्लैंड में सीरीज़ जीत से बस एक कदम दूर है, घर में अपराजेय है और पिछले आठ आईसीसी टूर्नामेंट के कम से कम सेमीफ़ाइनल तक पहुंची है।

टी-20 में तो उन्हें रोहित शर्मा के साथ टीम संभालनी है लेकिन टेस्ट और वनडे में विराट कोहली के साथ टीम संभालना थोड़ा मुश्किल होगा। विराट की इससे पहले कोच अनिल कुंबले से भी अनबन हो गई थी और उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। वहीं राहुल द्रविड़ तो अनिल कुंबले से भी ज्यादा अनुशासित कोच माने जाते हैं। ऐसे में टीम के बड़े खिलाड़ियों के प्रति उनका क्या व्यवहार रहता है यह देखने योग्य होगा।

हालांकि यह टीम इंडिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण और बदलाव का समय है। टीम के कई प्रमुख खिलाड़ी अपने करियर के लगभग अंतिम पड़ाव पर हैं। कप्तान विराट कोहली ने टी20 की कप्तानी छोड़कर इसके संकेत भी दे दिए हैं। उनके उपकप्तान रोहित शर्मा, उम्र में उनसे बड़े ही हैं। इसके अलावा शमी, आश्विन, पुजारा और रहाणे जैसे कई खिलाड़ी 30 की उम्र को पार कर चुके हैं।

चयनकर्ताओं के साथ कोच द्रविड़ को भी इस बदलाव के दौर में बहुत सावधान रहना होगा। इससे पहले के टीम मैनेजमेंट को टीम के अंदर किसी ख़ास चुनौती का सामना करना पड़ा था। कप्तान कोहली के सामने भी कोई अधिक वरिष्ठ या कठिन कैरेक्टर नहीं था। बीच में कोच अनिल कुंबले आए थे, तो उन्हें दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से हटना पड़ा।

सीमित ओवरों के क्रिकेट में करना होगा सुधार

मैदान में द्रविड़ के लिए चुनौतियां बहुत सीधी-सीधी हैं। भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट में पहले से अच्छा कर रही है, लेकिन सीमित ओवर की क्रिकेट में टीम का हाल उतना अच्छा नहीं है। वह लगातार आईसीसी टूर्नामेंट के नॉकआउट मैचों में पराजित हो रही है और विश्व की सबसे बड़ी टी20 लीग होने के बावजूद अभी टी20 विश्व कप के पहले राउंड से ही बाहर होने की कगार पर है।

इस समय भारतीय क्रिकेट के पास प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, वास्तव में कहें तो उनके पास खिलाड़ियों की खदान है। द्रविड़ और नए कप्तान को इन प्रतिभाओं का उपयोग सीमित ओवर क्रिकेट में बहुत बुद्धिमत्ता से करना होगा। जो भी भारतीय क्रिकेट की प्रतिभाओं को जानते हैं, वे सीमित ओवर क्रिकेट में भारत की हालिया विफलताओं पर आश्चर्य करते हैं।

2 विश्वकप से होगा द्रविड़ के काम का मूल्यांकन

द्रविड़ के कार्यकाल में दो सीमित ओवर के विश्व कप होने हैं। अगले साल ऑस्ट्रेलिया में फिर से टी20 विश्व कप है, जबकि 2023 में भारत वन डे विश्व कप की मेजबानी करेगा। द्रविड़ के कार्यकाल का मूल्यांकन कहीं न कहीं इन्हीं दोनों टूर्नामेंट के परिणामों के आधार पर होगा।

खिलाड़ी, कप्तान और कोच के रूप में द्रविड़ का अनुभव काफी विस्तृत है। वह राष्ट्रीय टीम के अलावा दुनिया के सबसे कठिन लीग आईपीएल में भी कप्तान और कोच रह चुके हैं। यह अनुभव उनके काम आएगा। इसके अलावा उनके सामने अधिकतर वही खिलाड़ी होंगे, जिनको उन्होंने अंडर-19, इंडिया-ए या एनसीए के कार्यकाल के दौरान प्रशिक्षण दिया है।

खिलाड़ियों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी एक चुनौती

इसके अलावा खिलाड़ियों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी द्रविड़ के लिए एक चुनौती होगी। कप्तान कोहली भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भारत के व्यस्त क्रिकेटिंग शेड्यूल पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। शायद अब यह समय की मांग है कि भारत, इंग्लैंड के तर्ज पर सीमित ओवर की एक बिल्कुल ही अलग टीम खड़ी करे। बीसीसीआई की रज़ामंदी के साथ वह ऐसा बिल्कुल कर सकते हैं।

द्रविड़ के कार्यकाल में टेस्ट क्रिकेट का शेड्यूल बहुत आसान है। भारत को साल के अंत में साउथ अफ़्रीका का दौरा करना है, जो कि अभी अपने सर्वश्रेष्ठ फ़ॉर्म में नहीं हैं। इसके अलावा उन्हें अधूरे सीरीज़ का एक टेस्ट मैच खेलने के लिए इंग्लैंड जाना है, जिसमें वे पहले से ही बढ़त हासिल किए हुए हैं। हालांकि टीम में कई ऐसे टेस्ट विशेषज्ञ खिलाड़ी हैं, जिनकी निरंतरता पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते रहे हैं। द्रविड़ को इन सवालों का भी जवाब ढूंढ़ना होगा।
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