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Last Updated : मंगलवार, 19 नवंबर 2019 (19:09 IST)

ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच की SG गुलाबी गेंद की बेहद दिलचस्प कहानी

ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच की SG गुलाबी गेंद की बेहद दिलचस्प कहानी - interesting story of SG pink ball of day-night test match
नई दिल्ली। इन दिनों गुलाबी गेंद (Pink ball) की चर्चा पूरी भारतीय क्रिकेट बिरादरी में इसलिए हो रही है क्योंकि देश में पहली बार भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाला ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच कोलकाता के ईडन गार्डन पर इसी गेंद से 22 नवम्बर से शुरू होने जा रहा है। जो गुलाबी गेंद इस वक्त सुर्खियों में है, उसे खास प्रक्रिया और आम गेंदों की तुलना में कई दिनों की मेहनत के बाद तैयार किया जाता है।
 
गुलाबी रंग में रंगा कोलकाता : बीसीसीआई के नए मुखिया और पूर्व कप्तान सौरव गांगुली गुलाबी गेंद को लेकर काफी रोमांचित हैं। यही कारण है कि भारतीय क्रिकेट इतिहास के पहले डे-नाइट टेस्ट को यादगार बनाने के लिए पूरे कोलकाता शहर को ही गुलाबी रंग में रंग दिया गया है। लेकिन डे-नाइट प्रारूप में इस्तेमाल की जाने वाली इन गुलाबी गेंदों के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है, जिसे तैयार करने में नियमित कूकाबूरा गेंदों की तुलना में करीब 8 दिन का समय लगता है।
 
भारतीय क्रिकेटरों को पसंद हैं SG गेंदें : मेजबान भारतीय टीम सीरीज के दूसरे और अंतिम डे-नाइट टेस्ट को एसजी गुलाबी गेंदों से खेलेगी जबकि नियमित टेस्ट में सफेद रंग की कूकाबूरा गेंदों से खेला जाता है। SG गेंदें यानी की सैंसपेरिल्स ग्रीनलैंड्स क्रिकेट गेंदों को भारतीय खिलाड़ी खासा पसंद करते हैं और भारत में रणजी ट्रॉफी जैसा घरेलू टूर्नामेंट भी इन्हीं एसजी गेंदों से खेला जाता है।
बॉल का चमड़ा ‍भी विदेश से आता है : एसजी ब्रांड उत्तरप्रदेश के मेरठ में वर्ष 1950 से ही इन गेंदों का निर्माण कर रहा है। गुलाबी गेंदों की बात करें तो यह नियमित गेंदों की तुलना में काफी अलग है और इस एक गेंद को तैयार करने में कारीगरों को 8 दिन का समय लगता है जबकि आम गेंदें दो दिन में तैयार हो जाती हैं। इन गेंदों को मुख्य रूप से मशीनों के बजाय हाथों से तैयार किया जाता है और इसमें उपयोग होने वाला चमड़ा भी विदेश से ही आयात किया जाता है।
 
गेंद पर लगती है 3 प्रकार की सिलाईयां : गेंद का अंदरुनी हिस्सा कार्क और रबड़ से तैयार किया जाता है। इसका वजन 156 ग्राम होता है और इसकी परिधि 22.5 सेंटीमीटर की होती है। इस गेंद में 3 प्रकार की सिलाईयां लगाई जाती हैं, जिसमें एक को लिप स्टिच कहा जाता है जबकि बाकी दो गेंद के दोनों हिस्सों पर होती हैं, जिसमें कुल 78 टांके रहते हैं। दोनों हिस्सों के टांके ओस में गेंदबाजों को इस गेंद को बेहतर ढंग से पकड़ने में मददगार होते हैं।
 
पिंग बॉल की चमक देर तक कायम : गुलाबी गेंदों की बनावट से अधिक इनके रंग को लेकर काफी चर्चा होती है। दरअसल ये गेंदें फ्लट लाइट में उपयोग की जाती हैं, इसलिए इनके गुलाबी रंग को अधिक चटकीला बनाने के लिए इस पर गहरे रंग से रोगन किया जाता है। आम गेंदों की तुलना में अधिक रोगन से हालांकि इनके व्यवहार में लाल गेंदों की तुलना में बदलाव आ जाता है। आम लाल गेंदों की चमक जहां 60 से 70 मिनट तक बरकरार रहती है वहीं गुलाबी गेंदों की चमक मैच के 2 से 3 सत्रों तक बरकरार रह सकती है।
8 दिन की प्रक्रिया के बाद तैयार होती हैं गेंद : गुलाबी गेंदों को बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले चमड़े को रंगने के अलावा गेंद तैयार होने के बाद भी इन गेंदों की चमक बढ़ाने के लिए इस पर और कोटिंग की जाती है। ऐसे में इन गेंदों को बनाने की प्रक्रिया भी करीब 8 दिन लेती है। 
 
पहले टेस्ट के लिए 72 गुलाबी गेंदें : एसजी कंपनी भारत और बांग्लादेश  के बीच 22 नवंबर से होने वाले मुकाबले के लिए कुल 6 दर्जन या 72 एसजी गुलाबी गेंदें मुहैया कराएगा, जो दोनों देशों के लिए 'पहला गुलाबी गेंद मुकाबला' होगा।
 
रिवर्स स्विंग मुश्किल : हालांकि यदि मैदान पर व्यवहार की बात करें तो इन गेंदों को अधिक स्विंग में मददगार समझा जाता है लेकिन इनसे रिवर्स स्विंग मुश्किल होता है। ऐसे में डे-नाइट टेस्ट के दौरान पिच का भी खेल पर काफी असर होगा।
 
तीन दिन में खत्म हो गया था पहला टेस्ट : ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच गुलाबी गेंद से पहला डे-नाइट टेस्ट खेला गया था, जो तीन दिन में ही समाप्त हो गया था और मैच में बल्लेबाजों को रन बनाने में काफी मुश्किल आई थी। ऐसे में देखना होगा कि ईडन गार्डन मैदान पर एसजी गुलाबी गेंदें किसके लिए मददगार साबित होंगी?
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