नई दिल्ली। लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लेकर बीसीसीआई और कोर्ट की लड़ाई अब चरम पर पहुँच चुकी है। 8 अक्टूबर से इंदौर में भारत-न्यूज़ीलैंड के बीच होने वाला तीसरा टेस्ट भी इसकी लपेट में आता हुआ दिख रहा है। बीसीसीआई इस टेस्ट को कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए एक बड़े मोहरे के रूप में इस्तेमाल करता हुआ दिख रहा है।
दरअसल, सारी लड़ाई कोर्ट द्वारा बीसीसीआई के पैसों पर कसी गई नकेल को लेकर है। कोर्ट की फटकार और लोढ़ा समिति की सिफारिशों से बचने का रास्ता ढूँढते हुए बीसीसीआई ने कई राज्य इकाइयों के खाते में बड़ी रकम स्थानांतरित करने की कोशिश की। जस्टिस लोढ़ा ने इस पर तथा समिति की अन्य सिफारिशों को ना माने जाने को लेकर कड़ी आपत्ति ली। इसी को देखते हुए कोर्ट ने बीसीसीआई द्वारा इन पैसों को अन्य खातों में ना जमा करने को लेकर बैंकों को लिखा है। ये बात बीसीसीआई को गहरे तक चुभ गई। उन्होंने इसे मुद्दा बना लिया है।
बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर पहले ही कह चुके हैं कि लोढ़ा समिति की सारी सिफारिशों को नहीं माना जा सकता। उधर समिति के अध्यक्ष जस्टिस आरएम लोढ़ा ने ख़ुद कहा है कि टेस्ट मैच को लेकर कोई संकट नहीं होना चाहिए। टेस्ट मैच एक रूटीन प्रक्रिया है। हमने रूटीन कामों के लिए पैसे पर कोई रोक नहीं लगाई है। सबसे बड़ी बात ये है कि क्रिकेट चलना चाहिए और अच्छे से चलना चाहिए।
जस्टिस लोढ़ा- टेस्ट मैच एक रूटीन प्रक्रिया है। हमने रूटीन कामों के लिए पैसे पर कोई रोक नहीं लगाई है। सबसे बड़ी बात ये है कि क्रिकेट चलना चाहिए और अच्छे से चलना चाहिए।
अनुराग ठाकुर- लोढ़ा समिति की सारी सिफारिशें व्यावहारिक नहीं हैं। सबको नहीं माना जा सकता। उन्हें हमारी प्रक्रिया और परेशानी को भी समझना होगा।
सबसे अहम बात ये है कि इस पूरे मामले को लेकर 6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई है। पैसों के लेन-देन और इंदौर टेस्ट को लेकर भी स्थिति उसी के बाद स्पष्ट हो पाएगी। उधर न्यूज़ीलैंड किकेट बोर्ड ने भी श्रृंखला रद्द होने की ख़बरों से इंकार किया है। पर बोर्ड इस समय लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लेकर आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में ही नज़र आ रहा है। इसमें दाँव पर इंदौर टेस्ट भी लगा हुआ है।
क्या है लोढ़ा समिति की सिफारिशें?
* लोढा समिति की सबसे अहम सिफारिश तो यही है कि एक राज्य में एक ही क्रिकेट संघ हो जो पूर्ण सदस्य हो और जिसे वोट देने का अधिकार हो। इसने यह भी कहा है कि रेलवे, सर्विसेज और यूनिवर्सिटियों की अहमियत घटाकर उन्हें एसोसिएट मेंबर का दर्जा देना चाहिए।
* समिति का यह भी मानना है कि आईपीएल और बीसीसीआई की गवर्निंग बॉडीज अलग-अलग होनी चाहिए.इसने आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल के लिए सीमित स्वायत्तता की सिफारिश की है।
* समिति के मुताबिक बीसीसीआई पदाधिकारियों की योग्यता के मानदंड बनाए जाने चाहिए। पदाधिकारी बनने के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति मंत्री या सरकारी अधिकारी न हो, उसने बीसीसीआई में किसी पद पर नौ साल या तीन कार्यकाल न गुजारे हों। किसी भी बीसीसीआई पदाधिकारी को लगातार दो बार से ज्यादा का कार्यकाल नहीं मिलना चाहिए।
* समिति ने आईपीएल के पूर्व चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर सुंदर रमन को क्लीन चिट दे दी है। 2013 में जब आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग का घोटाला उजागर हुआ तो आयोजन की कमान उनके ही हाथ में थी। रमन ने नवंबर 2015 में इस्तीफा दे दिया था।
* समिति ने यह भी कहा है कि सट्टेबाजी को वैध बना दिया जाना चाहिए जिसके लिए भीतर से ही कोई व्यवस्था हो।
* रिपोर्ट में यह भी प्रस्ताव है कि खिलाड़ियों की अपनी एक एसोसिएशन बने।
* समिति ने एक स्टीयरिंग कमेटी बनाने की सिफारिश भी की है जिसके अध्यक्ष पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई हों और मोहिंदर अमरनाथ, डायना इदुलजी और अनिल कुंबले उसके सदस्य हों।
* रिपोर्ट के मुताबिक बोर्ड में क्रिकेट संबंधी मसलों को निपटाने की जिम्मेदारी पूर्व खिलाड़ियों को दी जानी चाहिए।
* समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि बीसीसीआई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के दायरे में लाया जाना चाहिए।
* रिपोर्ट के मुताबिक बोर्ड में क्रिकेट संबंधी मसलों को निपटाने की जिम्मेदारी पूर्व खिलाड़ियों को दी जानी चाहिए जबकि इससे इतर मामले संभालने के लिए सीईओ, उसके छह सहायक मैनजरों और दो समितियों वाली एक व्यवस्था हो।