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अगले पेज पर : क्या जवाब दिया खरगोश ने
खरगोश शान्ति से जवाब देने लगा, 'कहां का तुम्हारा घर? कौन सा तुम्हारा घर? यह तो मेरा घर है। पागल हो गए हो तुम। अरे! कुआं, तालाब या पेड़ एक बार छोड़कर कोई जाता है तो अपना हक भी गवां देता हैं। यहां तो जब तक हम हैं, वह अपना घर है। बाद में तो उसमें कोई भी रह सकता है। अब यह घर मेरा है। बेकार में मुझे तंग मत करो।'
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अगले पेज पर : कौन मिलेगा धर्मपंडित
उस पेड़ के पास से एक नदी बहती थी। वहां पर एक बड़ी सी बिल्ली बैठी थी। वह कुछ धर्मपाठ करती नजर आ रही थी। वैसे तो यह बिल्ली इन दोनों की जन्मजात शत्रु है लेकिन वहां और कोई भी नहीं था इसलिए उन दोनों ने उसके पास जाना और उससे न्याय लेना ही उचित समझा। सावधानी बरतते हुए बिल्ली के पास जा कर उन्होंने अपनी समस्या बताई।
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क्या कहा बिल्ली ने, पढ़ें अगले पेज पर
'अरे रे !! यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, हिंसा जैसा पाप नहीं इस दुनिया में। दूसरों को मारने वाला खुद नरक में जाता है। मैं तुम्हें न्याय देने में तो मदद करूंगी लेकिन झूठे को खाने की बात है तो वह मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं एक बात तुम लोगों को कानों में कहना चाहती हूं, जरा मेरे करीब आओ तो!!'
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क्या हुआ जब दोनों गए बिल्ली के पास, चलें अगले पेज पर
खरगोश और चिड़ा खुश हो गए कि अब फैसला हो कर रहेगा। वे उसके करीब गए। और करीब गए। बिलकुल करीब गए। फिर क्या? करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़ कर और मुंह से चिड़े को बिल्ली ने नोंच लिया। दोनों का काम तमाम कर दिया।
अपने शत्रु को पहचानते हुए भी उस पर विश्वास करने से खरगोश और चिड़े को अपनी जानें गवांनी पड़ीं।
सच है, शत्रु से संभलकर और हो सके तो चार हाथ दूर ही रहने में भलाई होती है।