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जंगल में दिवाली
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ओमप्रकाश चोरमापिछली दिवाली पर बबलू बंदर पहुँच गए एक शहर के अंदर देखके शहर की अद्भुत दिवाली ठानी, जंगल में मनाऊँगा दिवाली साल बीत गया, दिवाली में दिन रह गए चार दिवाली मनाने का उसने जंगल में किया प्रचार सबने दे दी सहमति, बजा-बजाकर ताली तैयारी की सारी जिम्मेदारी बंदरजी पर डाली झटपट से बंदरजी पहुँच गए बाजार दिवाली का सारा सामान लाए वहाँ से मार जगमगा उठा दीपों से दिवाली पर जंगल सबने खाई खूब मिठाई, छाया मंगल ही मंगल अंत में फिर शुरू हुआ आतिशबाजी का दौर आधी रात होने आई थी, दूर थी अभी भोर फुलझड़ियों, चकरी से सबको मजा आया फिर बंदरजी ने एक सुतली बम जलाया। सुतली बम से ज्योंही हुआ एक बड़ा धमाका घबराकर सब इधर-उधर भागे, थर्राया सारा इलाका पलभर में ही हो गया, सारा जंगल खाली इस तरह मनी जंगल में अनोखी दिवाली।