कविता : पानी न होता...
- डॉ. रामनिवास 'मानव'
पानी न होता यदि धरा पर,
बोलो हम फिर क्या पीते?
और बिना पानी के भैया,
पल-भर भी कैसे जीते?
क्या बिन पानी पौधे उगते,
फसलें लगती हरी-भरी?
खिलते फूल क्या रंग-बिरंगे,
क्या फलों की लगती झड़ी?
कैसे बिजली बादल बनते,
कैसे फिर वर्षा होती?
कैसे नदियां निर्झर बहते,
सागर देता क्यों मोती?
ओस न गिरती, धुंध न होती,
देख न इन्द्रधनुष पाते।
कुएं-ताल और बावड़ियां,
बिलकुल सूख सभी जाते।
बर्फ न होती, दूध न होता,
बनती लस्सी फिर कैसे?
घर के बर्तन, फिल्टर, कूलर,
लगते खाली सब जैसे।
बिन पानी जग सूना लगता,
नीरस हो जाता जीवन।
अत: बचाएं हम पानी को,
पानी ही है सच्चा धन।
साभार- देवपुत्र