बाल गीत : श्रम के अखाड़े
गर्मी हो या जाड़े जी,
हमने पढ़े पहाड़े जी।
सुबह-सुबह रट्टा मारा,
गिनती सौ तक पढ़ डाली।
फिर सीखी उलटी गिनती,
सौ से ज़ीरो तक वाली।
पन्ने ढेरों लिख डाले,
लिख-लिख कर कई फाड़े जी।
दो से लेकर दस तक के,
पढ़े पहाड़े बीसों बार।
शाम ढले तक किसी तरह,
करना थे सारे तैयार।
भूल गए लेकिन सब कुछ,
पापा खूब दहाड़े जी।
एक चित्त होकर पढ़ना,
मम्मी जी का कहना है।
सद-उपयोग समय का हो,
यह जीवन का गहना है।
विजय श्री दिलवाते हैं,
श्रम के सभी अखाड़े जी।
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