बाल गीत : बोझ करो कम बस्ते का
अगर कहीं चिड़िया के पापा,
मम्मी उसे भेजते शाला।
और टांग देते कंधे पर,
उसके, बस्ता सुंदर काला।
तो उनकी यह नन्ही बिटिया ,
पढ़ती नए-नए नित पाठ।
लेकिन थक जाने के कारण,
पढ़ती सोलह दूनी आठ।
वज़नदार बस्ता है उसका,
नहीं उठा पाती है बोझ।
गिरने लगी रोज गश खाकर,
चल पाती वह कितने रोज!
अपनी सखियों के संग मिलकर,
उसने कर दी है हड़ताल।
'बोझ करो कम, अब बस्ते का',
खबर भेज दी है भोपाल।
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