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हाथी के सपने में तितली!
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अशोक चतुर्वेदीहाथी जागा सुबह सवेरेदेखा गड़बड़ सपनादंग रह गया सोच-सोचकररूप दिखा जो अपना।कानों में पंख फूटे थेपूंछ बनी पतवार थीटांग हो गई मेंढ़क जैसीदांतों पर तलवार थी।घनी भौंह आंखों के ऊपरमूंछ लगी थी सूंड परतिलक अनोखा बना हुआ थाउसके चौड़े मूंड पर।वजन हो गया इतना हलकासोच-सोचकर मनवा पुलकाउड़-उड़कर वह चूस रहा थामधुर पराग हर एक फूल का।दूर खड़ी तितली शरमातीमन ही मन खूब मुसकातीजम जाता जो साथ इसीसेझटपट अपना ब्याह रचाती।